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नौकरी के लिए सीक्यू बेहद जरूरी, जानें क्या है सीक्यू

आजकल दुनियाभर में कंपनियां, बैंक, कॉरपोरेट और फौजें भी भर्ती करने से पहले योग्य उम्मीदवार के बारे में काफी पड़ताल...

Kasturiलाइव हिन्दुस्तान,नई दिल्लीMon, 22 Jan 2018 04:35 PM

आईक्यू के साथ सीक्यू भी सुधारें

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आजकल दुनियाभर में कंपनियां, बैंक, कॉरपोरेट और फौजें भी भर्ती करने से पहले योग्य उम्मीदवार के बारे में काफी पड़ताल करती है। विभिन्न देशों में कंपनियों का विस्तार बढ़ रहा है जिसकी वजह से अब कंपनियां सिर्फ उम्मीदवारों की आईक्यू और बैकग्राउंड ही नहीं जांचती बल्कि उनकी सीक्यू भी चेक करती है। आज के दौर में नौकरी पाने के लिए सीक्यू बेहद अहम भूमिका निभाता है। सीक्यू मतलब कल्चरल कोशचेंट जिसके बारे में ज्यादातर उम्मीदवारों की पता नहीं होता। अगर आपकी कंपनी आपको नौकरी के दौरान किसे दूसरे देश में भेजती है तो उसके लिए सबसे पहले सीक्यू की जांच की जाती है। 
क्या है सीक्यू
जब आप किसी और देश, समाज या समुदाय के लोगों से मिलते हैं, तो उनकी जबान बोलने की कोशिश करते हैं। उनके जैसे हाव-भाव अपनाते हैं। उनसे करीबी रिश्ता बनाने की आप की ये कोशिश कल्चरल इंटेलीजेंस या सीक्यू कहलाती है। आप अपनी बॉडी लैंग्वेज बदलकर, सामने वाले के हाव-भाव की नकल कर के उसके जैसा दिखने की जो कोशिश करते हैं। वो अक्सर सामने वाले पर गहरा सकारात्मक असर डालती है। ये बहुत से करियर में काम का फन है। इसीलिए आजकल बैंक हों या दुनिया भर में तैनात होने वाली सेनाएं, सब, भर्ती के दौरान लोगों में इस हुनर के होने, न होने की पड़ताल करती हैं।
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 ग्लोबल होते करियर की जरूरत है सीक्यू

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आज दुनिया में सरहदों की पाबंदियां टूट रही हैं। ऐसे में आप की कामयाबी के लिए आईक्यू से ज्यादा जरूरी है सीक्यू। वैज्ञानिक हों या अध्यापक या फिर बैंक में काम करने वाले, सब के पास ये हुनर होना जरूरी है क्योंकि ऐसे करियर वाले, बहुत से लोगों के संपर्क में आते हैं। उनसे बात करते हैं। ये उनके काम के लिए जरूरी होता है। उनकी कामयाबी इसी बात पर टिकी होती है कि अलग-अलग देशों के लोगों से अच्छा तालमेल बना लें।  इसीलिए इन दिनों कंपनियों ने नौकरी से पहले सीक्यू लेवल चेक करना शुरू किया है।
तय सवालों से मापा है जाता है सीक्यू
किसी का भी सीक्यू कुछ तयशुदा सवालों से मापा जाता है। पहला होता है, सीक्यू ड्राइव, यानी दूसरे देश, समुदाय या संस्कृति के बारे में जानने-समझने की ख्वाहिश। फिर सीक्यू नॉलेज यानी किसी भी समुदाय के बारे में जानकारी और उसके और आप के समुदाय में फर्क की समझ होना। फिर सीक्यू स्ट्रैटेजी के सवालों से ये पता लगाया जाता है कि किसी और समाज या समुदाय के लोगों से तालमेल बिठाने की आप की रणनीति क्या है। इसके अलावा सीक्यू एक्शन से ये जानने की कोशिश होती है कि आप किस तरह से सामने वाले के साथ तालमेल बिठाते हैं। क्या आप झुकने के लिए तैयार होते हैं। क्या आप गिरगिट की तरह रंग बदलने में माहिर हैं। अगर किसी का सीक्यू कम है, तो वो सब को अपने ही नजरिए से देखने की कोशिश करेगा। 
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ज्यादा सीक्यू वालों को विदेश में आसानी से मिलती है नौकरी

ज्यादा सीक्यू वालों को विदेश में आसानी से मिलती है नौकरी3 / 3

2011 की एक स्टडी के मुताबिक, आईक्यू, इमोशनल इंटेलीजेंस और सीक्यू, ये तीन तरह की बुद्धिमत्ता होती है। ये तजुर्बा स्विस मिलिट्री एकेडमी में किया गया था। जहां पर काम करने वाले, अलग-अलग देशों से आए सैनिकों की मदद कर रहे थे। एक दूसरे के साथ काम कर रहे थे। जिसके पास ये तीनों तरह की अक्लमंदी भरपूर तादाद में है, वो तो सबसे अच्छा काम कर ही रहा था। मगर, इनमें भी जिसका सीक्यू ज्यादा था, वो तालमेल बनाने की रेस में सबसे आगे निकल गया था। जाहिर है कि जिनका सीक्यू ज्यादा होगा, उन्हें विदेश में नौकरी मिलने में आसानी होगी। नौकरी मिलने के बाद उनकी तरक्की भी तेजी से होगी। यही वजह है कि बहुत सी कंपनियां, कर्मचारी रखने से पहले लोगों के सीक्यू की पड़ताल कर रही हैं।
यहां जांचा जाता है सीक्यू
स्टारबक्स, ब्लूमबर्ग और अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी, मिशीगन इंटेलीजेंस सेंटर की मदद से भर्तियां करनी शुरू की हैं। ये सेंटर लोगों का सीक्यू जांचने में मदद करता है। डेविड लिवरमोर इस सेंटर के प्रमुख हैं। वो कहते हैं कि लोग सीखकर अपना सीक्यू बेहतर कर सकते हैं। खुद के तजुर्बे से बड़ा सबक कोई नहीं हो सकता। किसी खास देश की सभ्यता को समझना अलग बात है। अलग-अलग समाज और देश के लोगों के साथ अच्छा तालमेल बनाना अलग बात है। इसके लिए खास तरह का हुनर चाहिए। वो सीखते हुए विकसित किया जा सकता है। जो लोग, तमाम जगहों पर वक्त गुजारते हैं, उनके लिए ऐसा कर पाना आसान होता है। जिन लोगों के लिए अपना सीक्यू बेहतर करना मुश्किल है। यानी जो लोग अलग-अलग देशों और समुदायों के लोगों से तालमेल नहीं बैठा पाते हैं, उनके लिए तमाम कोर्स भी शुरू हो गए हैं। इसकी कोचिंग भी होती है। ऐसे ही कोर्स की मदद से बहुत से लोग तीन महीने में खुद को अरब देशों के माहौल में अच्छे से ढालते देखे गए हैं। वहीं बिना सीक्यू ट्रेनिंग के वहां जाने वाले लोगों को तालमेल बैठाने में 9 महीने या ज्यादा वक्त लग गया।