मांग बढ़ी तो दीये बनाने लगे BEd व CTET पास, BPSC TRE की कर रहे हैं तैयारी
रविनंदन पंडित ने बीएड, पीजी राजनीति शास्त्रत्त् और टेट व सीटेट भी क्वालीफाई किया हुआ है। अभी बीपीएससी की भी तैयारी कर रहे हैं। ट्यूशन पढ़ाकर खर्च चलाता है। मांग बढ़ने पर दीये बना रहे हैं।
बिहार के भागलपुर में पीरपैंती के बारा पंचायत के बदलूगंज के मजदूर श्रीकांत पंडित के पुत्र रविनंदन पंडित भी दीपावली को लेकर खुद से चाक चलाकर मिट्टी के दीया और ढिबरी बना रहे हैं। उन्होंने बताया कि बाजार में मांग अधिक देख मैंने भी दीया और ढिबरी बनाना शुरू किया है। उसने बताया कि उसने बीएड, पीजी राजनीति शास्त्रत्त् और टेट व सीटेट भी क्वालीफाई किया हुआ है। अभी बीपीएससी की भी तैयारी कर रहे हैं। ट्यूशन पढ़ाकर खर्च चलाता है।
वहीं मिट्टी के दीये की बढ़ी मांग से कारीगरों में खुशी है। बारा पंचायत के बदलूगंज में मिट्टी का दीया बनाने में जुटे कारीगर रंजित पंडित, ब्रह्मदेव पंडित, विनय पंडित, विजय पंडित, अनिल पंडित, ऋषि पंडित, राम स्वरूप पंडित आदि ने बताया कि खर्च और मेहनत के हिसाब से कुछ नहीं बचता है, लेकिन संतोष इस बात का है कि इस बार डिमांड अधिक है। उन्होंने बताया कि एक टेलर लाल मिट्टी, 6 हजार गोयठा और 10 से 12 क्विंटल कोयला और दो हजार गभोरी लगता है। तब 20 हजार दीया और ढिबरी बनता है। इसके लिए दो महीने तक दिन-रात मेहनत करना पड़ता है। जबकि दीया 100 रुपया सैकड़ा और ढिबरी 200 रुपया सैकड़ा बिकता है।
जबकि बिहार सरकार की ओर से कोई सहायता नहीं मिलती है। यदि इलेक्ट्रिक चाक मिल जाय तो कुछ आसानी होगी। लोगों ने बताया कि कुछ खास नहीं बचता परंतु अधिक बिक्री होने से खुशी इतनी मिलती है कि हम सारे गम भूल जाते हैं।
- दीपावली पर मिट्टी के दीये की बढ़ी मांग से स्थानीय कारीगरों में खुशी
- चायनीज दीयों की तुलना में इस बार देसी दीये की अधिक हो रही है मांग
दीपावली पर बाजार तरह-तरह के दीयों से सज चुका है। देसी से लेकर रंग-बिरंगे चायनीज दीये बाजार में मिल रहे हैं। लेकिन बाजार में चायनीज दीयों से अधिक देसी दीयों की मांग है। बाजार में दीयों की मांग देख बीएड और पीजी की पढ़ाई पूरी कर चुका छात्र भी चाक पर दिये गढ़ने के काम में जुट गया।
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