CBSE vs ICSE : सीबीएसई या आईसीएसई, छात्रों के लिए किस बोर्ड में जाना आसान रहता है
CBSE vs ICSE : आमतौर पर आठवीं कक्षा या 10वीं कक्षा पास करने के बाद माता पिता बच्चों को एक बोर्ड से दूसरे बोर्ड में ट्रांसफर करते हैं। लेकिन क्या वाकई में एक बोर्ड से दूसरे बोर्ड में जाना आसान होता है? क्या इससे भविष्य में या जेईई या नीट की तैयारी में कोई फायदा होता है?

CBSE vs ICSE : हर साल हजारों बच्चे अपनी फैमिली के कहीं दूसरे स्थान पर शिफ्ट होने या फिर बेहतर रिजल्ट व करियर की आशा में एक बोर्ड से दूसरे बोर्ड में स्विच करते हैं। बहुत से स्टूडेंट्स इसलिए भी बोर्ड बदलते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उसका पैटर्न जेईई मेन जैसे इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम या मेडिकल एंट्रेंस नीट की तैयारी के लिए ज्यादा मुफीद है। आमतौर पर आठवीं कक्षा या 10वीं कक्षा पास करने के बाद माता पिता बच्चों को एक बोर्ड से दूसरे बोर्ड में ट्रांसफर करते हैं। लेकिन क्या वाकई में एक बोर्ड से दूसरे बोर्ड में जाना आसान होता है? क्या इससे भविष्य में या जेईई या नीट की तैयारी में कोई फायदा होता है?
जब 15 साल की दिशा 10वीं के बाद कोलकाता के आईसीएसई स्कूल से दिल्ली के सीबीएसई स्कूल में गई, तो उसने सोचा कि जिंदगी आसान हो जाएगी। अपने एक्सपीरियंस को याद करते हुए दिशा कहती हैं,'सभी ने मुझसे कहा था कि सीबीएसई बोर्ड का पैटर्न हल्का है, जेईई और नीट की तैयारी के लिए ज्यादा बेहतर है। लेकिन जब मैंने पहली बार परीक्षा दी तो मेरा प्रदर्शन बहुत खराब रहा। वे पेपर में एक लाइन वाले एनसीईआरटी के उत्तर चाहते थे न कि वे निबंध टाइप, जिसके लिए हमें पहले आईसीएसई में ट्रेंड किया गया था।'
एक अन्य छात्र राहुल ने सीबीएसई से आईसीएसई में शिफ्ट किया। उन्होंने कहा, 'सीबीएसई में एक एनसीईआरटी की किताब ही काफी थी। अचानक आईसीएसई में मुझे तीन पाठ्यपुस्तकों और साप्ताहिक प्रोजेक्ट्स को एक साथ संभालना पड़ा। मुझे उस गति से सिलेबस कवर करने की आदत नहीं थी।'रेडिट पर छात्र ने पोस्ट में बताया 'मुझे आईसीएसई बोर्ड में 93 फीसदी अंक मिले और मैं 11वीं पास करने के लिए बहुत संघर्ष कर रहा हूं, तो यह इस मिथक को तोड़ देता है कि सीबीएसई में जाना आसान है।' रेडित पर एक और छात्र ने आगे कहा, 'मैंने 11वीं में आईसीएसई से सीबीएसई में दाखिला लिया और यह मेरे लिए बहुत मुश्किल था। बोर्ड बदलने के बाद परीक्षा के पैटर्न और सिलेबस कवर करने की गति के मुताबिक खुद को काफी एडजस्ट करना पड़ता है।
आईसीएसई बोर्ड की पढ़ाई से उत्साहित एक स्टूडेंट्स ने कहा, ‘आईसीएसई साफ तौर पर बहुत आगे है। आईसीएसई में सीबीएसई की तुलना में अधिक गहराई के साथ टॉपिक व सिलेबस कवर कराया जाता है। आईसीएसई में एप्लीकेशन बेस्ड करिकुलम रहता है। इसमें एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज को भी बढ़ावा दिया जाता है।’
पराग नाम के एक छात्र ने रेडिट पर अपना अनुभव साझा करते हुए कहा, 'मैंने कक्षा 9 में सीबीएसई से आईसीएसई में दाखिला लिया। यह बहुत कठिन था। सीबीएसई में मेरे हमेशा 98 फीसदी से अधिक अंक आते थे, लेकिन आईसीएसई में मैं बस 90 फीसदी अंक प्राप्त कर पाया। कक्षा 9 सचमुच डरावनी थी।'
असल में सीबीएसई बोर्ड का चलन पूरे हिंदी पट्टी वाले राज्य और पुणे व नागपुर जैसे शहरों में काफी है। आईसीएसई कोलकाता, बेंगलुरु जैसे पुराने महानगरों और ओडिशा व असम जैसे पूर्वी हिस्सों में केंद्रित है, जहां इसकी अच्छी अंग्रेजी की पढ़ाई व संतुलित शिक्षा के चलते इसकी काफी प्रतिष्ठा है।
तनाव को दर्शाते हैं कर्नाटक के आंकड़े
इंटीग्रेटेड कोचिंग और कम बोझ के लालच में 2024 में 84000 से ज्यादा आईसीएसई और सीबीएसई छात्र राज्य बोर्ड के प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों में चले गए। हालांकि केरल में आईसीएसई और सीबीएसई से पलायन कम हुआ है क्योंकि केंद्रीय बोर्ड के छात्र प्रवेश परीक्षाओं में राज्य बोर्ड के साथियों से लगातार बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं।
माता-पिता कंफ्यूजन में
माता-पिता के लिए बोर्ड बदलने का फैसला कभी आसान नहीं होता। इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली की एक अभिभावक शालिनी गुप्ता कहती हैं, 'हमने अपनी बेटी के शुरुआती वर्षों के लिए आईसीएसई को इसलिए चुना क्योंकि इससे उसे अंग्रेजी और कम्युनिकेशन में आत्मविश्वास मिला। लेकिन जब कक्षा 11 आई, तो हमने उसे प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए सीबीएसई में ट्रांसफर कर दिया। यह काफी दिक्कत देने वाला था। उसे दोस्त, शिक्षक, अपना पूरा रुटीन बदलना पड़ा, लेकिन हमें लगा कि यह जरूरी है। एजुकेशन कंसल्टेंट रमेश टंडन कहते हैं कि परिवारों को लंबे समय के नजरिए से सोचना चाहिए। यदि आपकी प्राथमिकता जेईई या नीट है, तो सीबीएसई बेहतर है। यदि आप मजबूत कम्युनिकेशन स्किल के साथ एक संपूर्ण शिक्षा चाहते हैं, तो आईसीएसई आपके लिए उपयुक्त है। गलती यह होती है कि बच्चे को बिना तैयार किए बोर्ड बदल दिया जाता है।'
बात सिर्फ एकेडमिक की नहीं
मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि बोर्ड बदलना जितना अकादमिक है, उतना ही सामाजिक भी है। आईसीएसई स्कूल, जो अक्सर एक्टिविटीज से भरपूर होते हैं, के स्टूडेंट्स को परीक्षा बेस्ड सीबीएसई स्कूल वाला मौहाल अजब सा लग सकता है। स्टूडेंड्टस अचानक खुद को बेमेल महसूस करते हैं।'
आईसीएसई से सीबीएसई में जाना कागज पर भले ही आसान लगे, लेकिन छात्र इसे पढ़ाई के लिहाज से निराशाजनक बताते हैं। सीबीएसई से आईसीएसई में जाना और भी ज्यादा कठिन है। ज्यादा मेहनत चाहिए होती है। साथ ही तुलनात्मक रूप से ज्यादा एडजस्ट करना होता है। बहरहाल यह एक कठिन रास्ता है। असल में बोर्ड आपका भविष्य तय नहीं करते, लेकिन गलत समय पर गलत बदलाव आपकी यात्रा को और भी कठिन बना सकता है।




