Hindi Newsकरियर न्यूज़accused of Pakistani spy was not given post of judge despite passed up hjs won after 7 years

पाकिस्तान का जासूस होने का लगा था आरोप, चयन होने के बावजूद नहीं दिया गया जज पद, 7 साल बाद मिली जीत

  • प्रदीप कुमार पर 2002 में पाकिस्तान के लिए जासूसी करने का आरोप लगाया गया था। उसे 2014 में मुकदमे में बरी कर दिया गया था।

Pankaj Vijay लाइव हिन्दुस्तानThu, 12 Dec 2024 12:07 PM
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति को एचजेएस कैडर के न्यायिक अधिकारी के पद पर नियुक्त करने का आदेश दिया है। उसे जासूसी के आरोपों के कारण लगभग सात साल पहले इस पद पर नियुक्त करने से मना कर दिया गया था। न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह एवं न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने कहा कि राज्य के पास ऐसा कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि याची ने किसी विदेशी खुफिया एजेंसी के लिए काम किया है। मुकदमे में उसे बरी किया जाना सम्मानजनक है। खंडपीठ ने कहा कि याची को दो आपराधिक मुकदमों में सम्मानपूर्वक बरी किया गया था, और किसी भी मामले में अभियोजन पक्ष की कहानी में सच्चाई का कोई तत्व नहीं पाया गया तथा उन आदेशों को अंतिम रूप दे दिया गया है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि याची को बरी किए जाने से उस पर लगा कलंक प्रभावी रूप से मिट जाना चाहिए था। उसे किसी भी निराधार संदेह से मुक्त होकर अपने जीवन और करियर में आगे बढ़ने की अनुमति मिल जानी चाहिए थी। याची प्रदीप कुमार पर 2002 में पाकिस्तान के लिए जासूसी करने का आरोप लगाया गया था। उसे 2014 में मुकदमे में बरी कर दिया गया था। मुकदमा 2004 में शुरू हुआ था। हालांकि 2016 में यूपी उच्चतर न्यायिक सेवा (सीधी भर्ती) परीक्षा में अंतिम चयन के बावजूद उसे नियुक्ति पत्र देने से इनकार कर दिया गया था।

खंडपीठ के समक्ष अतिरिक्त मुख्य स्थायी अधिवक्ता ने तर्क दिया था कि याची पर 2002 में दुश्मन देश पाकिस्तान के लिए जासूस के रूप में काम करने के गंभीर आरोप थे और उसे राज्य सरकार के विशेष कार्य बल (एसटीएफ) और सैन्य खुफिया के संयुक्त अभियान में गिरफ्तार किया था। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यद्यपि आपराधिक मुकदमे विफल हो गए, फिर भी राज्य सरकार के पास यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त सामग्री थी कि याची के चरित्र को प्रमाणित नहीं किया जा सकता है और इस प्रकार वह नियुक्ति के लिए पूरी तरह से अयोग्य था।

खंडपीठ ने कहा कि मुकदमे के दौरान ऐसा कोई सबूत पेश नहीं किया गया जिससे साबित हो सके कि याची ने देश के हितों के खिलाफ काम किया है या किसी साजिश में शामिल रहा है या आईपीसी की धारा 124-ए के तहत कोई अपराध किया है। इसके अलावा उसे मुकदमे में बाइज्जत बरी कर दिया गया। न्यायालय ने इस रुख को भी खारिज कर दिया कि याची का मूल्यांकन उसके पिता के पिछले कार्यों के आधार पर किया जाना चाहिए। जिन्हें रिश्वतखोरी के आरोपों के कारण 1990 में न्यायाधीश पद से बर्खास्त कर दिया गया था।

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