Hindi Newsबिज़नेस न्यूज़World MSME Day What is the compulsion of more than 68 percent of the working population

World MSME Day: 68 फीसद से अधिक कामकाजी आबादी की क्या है मजबूरी?

  • World MSME Day: भारत एक महत्वपूर्ण दौर में है, जहां 68% से अधिक आबादी कामकाजी आयु वर्ग (15-64 वर्ष) में है और औसत आयु 28 वर्ष है।

Drigraj Madheshia नई दिल्ली, हिन्दुस्तान संवाददाताThu, 27 June 2024 08:16 AM
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World MSME Day: एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु, और मध्यम उद्योग) दिवस एक वैश्विक उत्सव है, जो इन्वोशन, आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने में एमएसएमई द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका का सम्मान करता है। यह एमएसएमई उद्योग के योगदान के महत्व को उजागर करता है। एमएसएमई का समर्थन करने के प्रमुख तरीकों में से एक है, विशेष रूप से जमीनी स्तर पर प्रभावी मेंटरिंग प्रदान करना है।

पूर्व राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन की बेटी लक्ष्मी वेंकटरमन वेंकटेशन, जो भारतीय युवा शक्ति ट्रस्ट की संस्थापक और प्रबंध ट्रस्टी हैं, ने बताया कि भारत एक महत्वपूर्ण दौर में है, जहां 68% से अधिक आबादी कामकाजी आयु वर्ग (15-64 वर्ष) में है और औसत आयु 28 वर्ष है। हालांकि, हम एक दोहरी चुनौती का सामना कर रहे हैं और वह है, उच्च प्रशिक्षित कार्यबल की कमी और कई पारंपरिक रूप से शिक्षित युवाओं के पास रोज़गार लायक कौशल की कमी। लगभग 48% इंजीनियरिंग ग्रेजुएट को बेरोजगार माना जाता है, जिनके लिए फिर से प्रशिक्षण में उल्लेखनीय निवेश की जरूरत है।

वेंकटेशन ने हिंदुस्तान को बताया कि युवाओं में खास तौर पर छोटे शहरों और गांवों में, सामूहिक उद्यमिता को प्रोत्साहित करना, बेरोजगारी दर को कम करने का एक प्रभावी उपाय हो सकता है। हालांकि, इन जमीनी स्तर के उद्यमियों को लोन की कमी और व्यवसाय शुरू करने और इसके प्रबंधन के लिए पर्याप्त मार्गदर्शन न मिल पाने जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

बाजार की समझ और व्यवसाय प्रबंधन से जुड़े कौशल की कमी

कई महिलाओं और युवा उद्यमियों को तकनीकी ज्ञान, बाजार की समझ और व्यवसाय प्रबंधन से जुड़े कौशल की कमी का सामना करना पड़ता है। इन कमियों को परामर्श, प्रशिक्षण और व्यक्तिगत या छोटे-छोटे समूहों में सलाह देकर सबसे बेहतर तरीके से दूर किया जा सकता है।

ऐसे में क्या करना चाहिए

हर उस स्थान पर मेंटरों का एक समूह बनाना महत्वपूर्ण है, जहां संभावित उद्यमी संवाद करते हैं और सरकार, बैंकों, शैक्षणिक संस्थानों और निजी कंपनियों के संस्थागत ढांचे के भीतर मेंटरिंग की व्यवस्था बेहद जरूरी है। इसके लिए क्षमता निर्माण और सहायता (हैंडहोल्डिंग) की जरूरत होती है, जिससे इन मेंटरों की मानसिकता में बदलाव होता है और उसके बाद ये मेंटर नए-नवेले उद्यमियों का मार्गदर्शन और उनकी मदद कर सकते हैं।

एमएसएमई के लिए मेंटरिंग क्यों जरूरी

इस तरह मेंटरिंग, एमएसएमई के लिए उत्प्रेरक हो सकती है, लोगों के बीच धन सृजन को लोकतांत्रिक बना सकती है और इसे ग्रामीण क्षेत्रों और वंचित वर्ग के युवाओं के लिए सुलभ बना सकती है। इसके लिए औपचारिक प्रशिक्षण और अंतर्राष्ट्रीय मान्यता के जरिये मेंटरों को तैयार करने और उनको सपोर्ट करने के लिए उल्लेखनीय मात्रा में संसाधन की व्यवस्था करने की जरूरत है।

पिछले कुछ वर्षों में यह सामने आया है कि केवल कौशल और वित्तपोषण ही पर्याप्त नहीं है। उद्यमियों की मेंटरिंग इसकी महत्वपूर्ण कड़ी है, जो गायब है। मेंटरिंग, भारत की प्राचीन गुरु-शिष्य परंपरा से प्रेरणा लेते हुए राष्ट्रीय उद्यमिता सहायता प्रणाली की आधारशिला बन सकती है।

संभव है कि हर किसी का स्वाभाविक रूप से मेंटर बनने की ओर झुकाव न हो, लेकिन आवश्यक कौशल सीखा जा सकता है। मेंटरशिप प्रोग्राम्स को विकसित और परिष्कृत करने से कुशल और मान्यता प्राप्त मेंटरों का एक कैडर तैयार हो सकता है। यह मॉडल, देश के ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में कारगर साबित हुआ है और इसे दुनिया भर में अपनाया जा रहा है।

उदाहरण से समझें

उदाहरण के लिए, एक युवा इंजीनियरिंग स्नातक को सिम रेसिंग पैडल बनाने के लिए अपनी एमएसएमई यूनिट शुरू करने और उसका विस्तार करने में मदद की गई। कोविड के दौरान वह असहाय महसूस करने लगा, ऐसे में उसे उसके मेंटर ने भारत और विदेशी बाज़ारों में घरेलू गेमर्स को ध्यान में रखने की सलाह दी। आज, वह नौजवान उद्यमी 40 से अधिक देशों में निर्यात करता है और उसके ग्राहक मुख्य रूप से उत्तरी अमेरिका और यूरोप में हैं।

आने वाले दिनों में एक राष्ट्रीय स्तर पर यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कोई भी उद्यमी मेंटरिंग की सहायता से वंचित न रहे। उद्यमी और कुशल भारत के निर्माण के लिए मेंटरिंग आवश्यक है, जो सतत आर्थिक विकास और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है।

मार्गदर्शन और सहायता की आवश्यकता

उभरते उद्यमियों को जिस मार्गदर्शन और सहायता की आवश्यकता है, उसे प्रदान कर हम अपने छोटे शहरों और गांवों में मौजूद प्रतिभा के विशाल भंडार को अवसर प्रदान कर सकते हैं। इससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा, रोज़गार के अवसर पैदा होंगे और देश की जीडीपी की वृद्धि में योगदान मिलेगा। 

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