भगोड़े आर्थिक अपराधियों के खिलाफ सेबी की सख्ती, अब नहीं खरीद सकेंगे शेयर
पूंजी बाजार नियामक सेबी ने भगोड़े आर्थिक अपराधियों पर किसी कंपनी में शेयरों का अधिग्रहण करने के लिये खुली पेशकश करने की रोक लगा दी है। इसके साथ ही सेबी की मामलों के निपटान नियमों को अधिक आकर्षक बनाने...
पूंजी बाजार नियामक सेबी ने भगोड़े आर्थिक अपराधियों पर किसी कंपनी में शेयरों का अधिग्रहण करने के लिये खुली पेशकश करने की रोक लगा दी है। इसके साथ ही सेबी की मामलों के निपटान नियमों को अधिक आकर्षक बनाने की भी योजना है ताकि मामलों को जल्द आगे बढ़ाया जा सके। हालांकि, जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों और भगोड़े आर्थिक अपराधियों से जुड़े मामलों का आपसी सहमति के आधार पर निपटान नहीं किया जायेगा।
न्यूज एजेंसी भाषा की रिपोर्ट के मुताबिक भगोडे आर्थिक अपराधियों को किसी कंपनी में शेयरों के अधिग्रहण से रोकने के पीछे नियामक का मकसद इस तरह के अपराधियों को किसी सूचीबद्ध कंपनी का नियंत्रण लेने से रोकना है। सेबी की 11 सितंबर को जारी अधिसूचना में कहा गया है, ''कोई भी व्यक्ति जो कि भगोड़ा आर्थिक अपराधी है वह खुली पेशकश के लिये सार्वजनिक रूप से घोषणा नहीं कर सकता है। ऐसा व्यक्ति शेयरों के अधिग्रहण के लिये प्रतिस्पर्धी पेशकश भी नहीं कर सकता है। वह लक्षित कंपनी का नियंत्रण अपने हाथ में लेने के लिये शेयरों का अधिग्रहण, वोटिंग राइट हासिल करने के लिये प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कोई लेनदेन भी नहीं कर सकता है।
कंपनियों पर जुर्माना अथवा नियम उल्लंघन के दूसरे मामलों के निपटान के बारे में सेबी ने कहा है कि कंपनी मामले को निपटाना चाहती है तो उसका भुगतान कंपनी के शीर्ष कार्यकारी अथवा जिम्मेदारी संभाल रहे निदेशकों द्वारा किया जायेगा। क्योंकि किसी कंपनी के खाते से जुर्माने का भुगतान होने से उसके शेयरधारकों को दोहरा झटका लग सकता है।
एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति से मिले सुझावों के आधार पर बदलावों और उसके बाद उन पर सार्वजनिक टिप्पणियां जो प्राप्त हुई है उनको लेकर सेबी बोर्ड की कल होने वाली बेठक में विचार विमर्श किया जायेगा।
पिछले कुछ सालों के दौरान निपटान किये जाने वाले मामलों में वृद्धि हुई है। नियामक भी चाहता है कि जो मामले गंभीर प्रकृति के नहीं हैं उनका भुगतान करके निपटान कर लिया जाये। वह इस तरीके को प्रोत्साहन दे रहा है। वर्ष 2017- 18 में 30 करोड़ रुपये का जुर्मान चुकाकर 200 मामलों को निपटाया गया। इससे पहले 2016- 17 में 13.5 करोड़ रुपये का भुगतान कर 103 मामले निपटाये गये।
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