रुपये की गिरावट का आपकी जेब पर होगा सीधा असर
डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमतों में जारी गिरावट की बड़ी वजह आयात निर्भरता को माना जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि देश का आयात बिल दिनों दिन बढ़ता जा रहा है, जिससे हमें ज्यादा डॉलर खर्च करने होते...
डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमतों में जारी गिरावट की बड़ी वजह आयात निर्भरता को माना जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि देश का आयात बिल दिनों दिन बढ़ता जा रहा है, जिससे हमें ज्यादा डॉलर खर्च करने होते हैं और उसकी मांग बढ़ती जा रही है।
डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत करीब डेढ़ साल के सबसे कमजोर स्तर पर पहुंच गई है और पिछले एक महीने में करीब सवा दो रुपये की कमजोरी देखने को मिली है। वित्त वर्ष 2017-18 में भारत का तेल आयात बिल साढ़े सात लाख करोड़ के पार पहुंच गया था। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के साथ परमाणु समझौता तोड़ने की घोषणा की है, जिसके बाद कच्चे तेल के दाम में और उछाल आया है। आशंका है कि इसकी कीमत जल्द ही 80 डॉलर प्रति बैरल के पार जा सकती है।
जानकारों का कहना है कि अगर अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार होता है, ब्याज दरें बढ़ती हैं और कच्चे तेल में तेजी बनी रहती है तो आरबीआई को डॉलर के साथ मैदान में कूदना होगा। हालांकि एक सीमा तक ही रुपये को गिरने से रोका जा सकेगा।
आरबीआई का दखल
रुपये में गिरावट को रोकने के लिए रिजर्व बैंक भी कदम उठाता है। आरबीआई सरकारी बैंकों के जरिये डॉलर की खरीदारी करता है, ताकि देश में डॉलर की मांग और आपूर्ति के बिगड़ते संतुलन को संभाला जा सके। सूत्र बताते हैं कि पिछले हफ्ते जैसे ही एक डॉलर की कीमत 67 रुपये के पार गई रिजर्व बैंक ने सरकारी बैंकों के माध्यम से डॉलर की खरीदारी की है। हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है।
विदेशी निवेश घटा
विदेशी निवेशकों ने आकर्षक रिटर्न के भरोसे भारतीय बाजारों में पैसा लगाया था। अब अमेरिकी बॉन्ड्स से भी उन्हें अच्छा रिटर्न मिल रहा है और वे वापस जा रहे हैं। इससे एफपीआई में करीब 23 हजार करोड़ से ज्यादा की बिकवाली हुई है। डॉलर की मांग बढ़ी और रुपये के मुकाबले महंगा होता गया।
कच्चे तेल के दाम बढ़ें
वर्ष 2014 के मुकाबले इस साल कच्चे तेल की कीमतों में करीब 20 फीसदी का उछाल आया है। चूंकि भारत अपने इस्तेमाल का अधिकतर हिस्सा आयात करता है, जिसके लिए उसे डॉलर में भुगतान करना होता है। इसका सीधा असर रुपये पर पड़ा है।
आयातित सामान महंगा होगा
जो भी सामान विदेश से आयात किया जाता है जैसे मोबाइल, टीवी, विदेश में बनने वाली कारें, विदेश सामानों के कल-पुर्जे, विदेशी दवाएं, कपड़े और जूते-चप्पल सहित विदेशी कंपनियों के सौंदर्य प्रसाधनों की कीमतें भी महंगी हो जाएंगी।
गहनों की चमक बढ़ेंगी
देश में सोना और हीरे का बड़ा हिस्सा आयात किया जाता है और इसकी कीमत डॉलर में ही चुकानी होती है। लिहाजा सोने-चांदी के दाम में भी *रुपये के कमजोर होने का असर देखा जा रहा है।
विदेश में घूमना जेब पर भारी
रुपये की कमजोरी छुट्टियों में विदेश घूमने की योजना का बजट बिगाड़ सकती है। अमेरिका घूमने जाने के लिए पैकेज 3 महीने पहले 2 लाख 70 हजार रुपये में मिलता था जो अब 3 लाख के करीब हो गया है। यानी करीब 10 फीसदी की सीधी चोट। ये खर्च आपके हवाई किराये, होटल, लोकल ट्रांसपोर्ट, खाने-पीने जैसी चीजों के जरिये बढ़ेगा।
तेल की कीमतें बढ़ेंगी
कच्चे तेल के दाम डॉलर में चुकाए जाते हैं तो अगर डॉलर मजबूत होता गया तो तेल खरीदने के लिए पहले के मुकाबले ज्यादा रुपये खर्च करने होंगे। इससे डीजल-पेट्रोल भी और महंगा होगा।
महंगाई बढ़ेगी
डीजल के दाम बढ़ने से सब्जियां और रोजमर्रा में इस्तेमाल की जाने वाली चीजों के दाम बढ़ेंगे। जैसे प्याज नासिक जैसी मंडियों से पहुंचता है, जिसका भाड़ा डीजल की कीमत बढ़ने से ज्यादा हो जाएगा।
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