ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News BusinessNo cost emi buy now and payment later understand math then shopping

नो कॉस्ट EMI, अभी खरीदे और बाद में भुगतान का समझें गणित फिर करें खरीदारी

त्योहारों के इस मौसम में बिक्री बढ़ाने के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन रिटेलर बंपर छूट और कैशबैक ऑफर कर रहे हैं। इसके साथ ही ब्याज मुक्त किस्त (नो कॉस्‍ट ईएमआई) और अभी खरीदे और बाद में भुगतान करें (बाय...

नो कॉस्ट EMI, अभी खरीदे और बाद में भुगतान का समझें गणित फिर करें खरीदारी
नई दिल्ली। एजेंसीSat, 31 Oct 2020 08:47 AM
ऐप पर पढ़ें

त्योहारों के इस मौसम में बिक्री बढ़ाने के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन रिटेलर बंपर छूट और कैशबैक ऑफर कर रहे हैं। इसके साथ ही ब्याज मुक्त किस्त (नो कॉस्‍ट ईएमआई) और अभी खरीदे और बाद में भुगतान करें (बाय नाउ पे लैटर) जैसी स्‍कीम लेकर आए हैं। बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की स्कीम का मकसद ग्राहकों का ध्‍यान खींचना और बिक्री बढ़ाना होता है। हालांकि, सभी लुभावनी स्कीम में छुपी हुई लागत होती है। इस स्कीम के जरिये खरीदारी करने पर कहीं ज्‍यादा कीमत चुकानी पड़ सकती है। ऐसे में अगर आप भी दिवाली के उपलक्ष्य में इन स्कीम के जरिये खरीदारी करने की सोच रह हैं तो हम आपको पूरा ब्योरा दे रहे हैं।

ब्याज मुक्त किस्त संभव ही नहीं

विशेषज्ञों का कहना है कि ब्याज मुक्त किस्त (नो कॉस्ट ईएमआई) जैसी स्कीम सुनने में अच्छी लगती है लेकिन वास्तविक में ऐसा होना संभव नहीं है। बैंक कभी भी बिना ब्याज के लोन दे ही नहीं सकते हैं। दरअसल, जीरो-कॉस्‍ट ईएमआई मार्केटिंग का हथकंडा है। ब्याज को किसी न किसी तरह से ग्राहकों से वसूल लिया जाता है। ये स्कीम दो तरह से काम करती हैं। इसमें एक तरीके का इस्तेमाल ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म अक्सर उपयोग करते हैं।

यह भी पढ़ें: फ्लिपकार्ट, अमेजन दिवाली सेल: स्मार्टफोन पर मिल रही है 40,000 रुपये तक की छूट, यहां है बेस्ट डील

एक साथ भुगतान करने पर शायद आपको जो छूट मिलता, उसे वे ब्याज लागत को कवर करने वाले बैंक या वित्तीय संस्थान को दे देते हैं। दूसरा तरीका यह है कि प्रोडक्ट के मूल्य के साथ ही ब्याज की लागत जोड़ दी जाती है। जीरो-कॉस्‍ट ईएमआई स्‍कीमों के मामले में ब्‍याज लागत पर लगने वाले जीएसटी का भार उपभोक्ता पर डाला जाता है।

बाय नाउ, पे लेटर

अभी खरीदे और बाद में भुगतान (बाय नाउ, पे लैटर) स्‍कीम क्रेडिट कार्ड की तरह काम करती है। यह ग्राहकों को कोई उत्पाद खरीदने पर उसका भुगतान कुछ समय बाद शुरू करने की सहूलियत देती है। यह भुगतान मासिक किस्‍तों में किया जा सकता है। अगर बताई गई तय तारीख से पहले ग्राहक पूरा भुगतान कर देते हैं तो ब्‍याज का बोझ नहीं पड़ता है। हालांकि, ईएमआई का विकल्‍प चुनने पर ब्‍याज लगता है। इस स्कीम में भुगतान इस बात पर निर्भर करता है कि मर्चेंट के साथ समझौता कैसा है। अगर निर्धारित अवधि के भीतर भुगतान कर दिया जाता है तो कोई ब्‍याज नहीं पड़ता है। ऐसा नहीं करने पर ब्‍याज/पेनाल्‍टी का बोझ उठाना पड़ता है। ऐसे लोन/क्रेडिट पर ब्‍याज की दर अमूमन 30 फीसदी तक हो सकती है।

ब्याज के बराबर छूट

अक्सर ई-कॉमर्स कंपनियां ब्याज के बराबर छूट ऑफर करती है। मान लीजिए, आप जो फोन खरीदना चाहते हैं, उसकी कीमत 15 हजार रुपये है। तीन महीने की ईएमआई प्लान में 15% की दर से ब्याज वसूला जाता है। इस तरह आपको 2,250 रुपये का ब्याज देना होता है। आप फोन की जो कीमत अदा करते हैं, उसे दो भागों में बांटा जाता है। एक हिस्सा रिटेलर के पास जबकि दूसरा हिस्सा ब्याज के रूप में बैंक या अन्य वित्तीय संस्थान के पास जाता है। अब अगर आपने पूरे पैसे देकर फोन खरीदें तो आपको 12,750 रुपये ही देने होंगे। इस तरह, अगर आपने तीन महीने की ईएमआई पर फोन लिया तो 2,250 रुपये की छूट हटाकर और ब्याज की रकम जोड़कर आपको हर महीने 5 हजार रुपये देने होंगे।

स्कीम में खरीदारी करने से बचें

अधिकांश बैंक अमेजन, फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स वेबसाइट से सामान खरीदने पर नो कॉस्ट ईएमआई का विकल्प देते हैं। हालांकि, हो सकता है कि अगर आप नकद वस्तु खरीदने पर उस पर मिलने वाला छूट ईएमआई पर मिलने वाले ब्याज से अधिक हो। कई बार आप ईएमआई के चक्कर में ज्यादा महंगा सामान खरीद लेते हैं और आपका बजट गड़बड़ा जाता है।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें