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निर्मला सीतारमण को मिला वित्त मंत्रालय, इन 5 आर्थिक चुनौतियों से होगा निपटना

पीएम मोदी के मंत्रिमंडल में वित्त मंत्रालय का पदभार निर्मला सीतारमण को सौंपा गया है। दूसरी बार सत्ता में आई मोदी सरकार से उम्मीदें पहले से अधिक हैं। हालांकि, सरकार के समाने चुनौतियां भी कम...

निर्मला सीतारमण को मिला वित्त मंत्रालय, इन 5 आर्थिक चुनौतियों से होगा निपटना
हिटी नई दिल्ली।Fri, 31 May 2019 02:19 PM
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पीएम मोदी के मंत्रिमंडल में वित्त मंत्रालय का पदभार निर्मला सीतारमण को सौंपा गया है। दूसरी बार सत्ता में आई मोदी सरकार से उम्मीदें पहले से अधिक हैं। हालांकि, सरकार के समाने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। मोदी सरकार और उनके वित्त मंत्री को नौकरी के अवसर, अर्थव्यवस्था में सुस्ती, निर्यात को बढ़ाने जैसे कई अहम चुनौतियों से जल्द से जल्द निपटना होगा।

वित्तीय विशेषज्ञों के मुताबिक, सरकार और वित्त मंत्री के समाने पहली और बड़ी चुनौती है खपत या खरीदारी को बढ़ाना। रियल एस्टेट में सुस्ती के बाद अब ऑटो सेक्टर भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है। गाड़ियों की बिक्री अप्रैल महीने में साढ़ सात के निचले स्तर पर पहुंच गई। भारतीय वाहन निर्माताओं के संगठन सियाल के आंकड़ों के मुताबिक, दोपहिया समेत सभी प्रमुख वीइकल वाहनों में अप्रैल में बिक्री में गिरावट दर्ज की गई। इसकी वजर रही शहरी के साथ ग्रामिण एरिया में वाहनों की मांग में कमी। यह सिर्फ ऑटो सेक्टर का हाल नहीं है।

पिछले चार महीनों का आंकड़ा देंखे तो तेल, सोना और चांदी को छोड़कर प्रमुख जरूरी वस्तुओं का आयत गिरा है। इससे पता चला है कि उपभोक्ता मांग में कमी आई है। आम लोग अनिश्चता के चलते पैसा खर्च करने और खरीदारी करने में हिचक रहे हैं। जीएसटी लागू होने के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था में निजी निवेश कम हुआ है। सरकार अपनी ओर से निवेश कर रही है। ऐसे में आरबीआई ब्याज दरों में कटौती कर मांग बढ़ाने की कोशिश कर सकती है। हालांकि, इसके साथ ही सरकार को ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में लोगों को विश्वास दिलाना होगा कि उनकी नौकरी या कारोबार सुरक्षित है। तभी जाकर खरीदारी बढ़ेजी जो अर्थव्यवस्था में गति देने का काम करेगी। 

सरकारी बैंकों और एनबीएफसी की हालत में सुधार
सरकार के लिए बदहाल पड़े सरकारी बैंकों की स्थिति में सुधार करना बेहद अहम होगा। 31 दिसंबर, 2018 तक सरकारी बैंकों का फंसा कर्ज (एनपीए) 8.64 खरब रुपये था। कई बैंकों का लगातार घाटा हो रहा है। वहीं आईएलएंडएफसी संकट से गैर बैंकिंग क्षेत्र (एनबीएफसी) की भी स्थिति नाजुक है। सरकार ने बैंकों की स्थिति में सुधार के लिए पूंजी डाले हैं लेकिन वह काफी नहीं होगा।  बैंकों की वित्तीय स्थिति कमजोर होने से मांग बढ़ाना मुश्किल होगा। ऐसा इसलिए कि बैंक देश में लोन की जरूरत को पूरा नहीं कर पाएंगे।

निर्यात को बढ़ावा देना
किसी भी मजबूत देश की अर्थव्यवस्था उसके निर्यात पर निर्भर करती है। भारतीय अर्थव्यवस्था में निर्यात की भागीदारी 2018-2019 में कुल जीडीपी का 12.09 फीसदी था। वहीं यह 2004-05 में यह 11.78 फीसदी था। यह दर्शता है कि 14 साल के बाद भी निर्यात में मामूली बढ़ोतरी हुई है। भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, भारत का निर्यात श्रम आधारित अधिक है। कौशल उन्मुख निर्यात ने प्रदर्शन अच्छा नहीं है। इसके लिए सरकार को श्रम सुधार पर जोर देना होगा।

सरकारी कंपनियों की खस्ताल हालत
साल 1951 में केवल पांच केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम (पीएसयू) थे जिनकी संख्या अब बढ़कर 339 हो गई है। इसमें से कुछ ही कंपनियां मुनाफा कमा रही है। बहुत सारी कंपनियां घाटे में चल रही है। सरकार के समाने उन कंपनियां को लाभ में लाना बड़ी चुनौती होने वाली है। ऐसी कंपनियों को बेचने या बंद करने की कोई भी बात हंगामा खड़ा कर सकती है।

कृषि संकट
सरकार के सामने कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार बड़ी चुनौती बनने वाली है। 2004-05 में भारतीय जीडीपी में कृषि का योगदान 21 फीसदी था जो 2018-19 में गिरकर 13.14 फीसदी पर रह गया है। इसका मतलब है कि लोगों को कृषि को छोड़कर कोई दूसरा कारेबार करना चाहिए। हालांकि, यह हो नहीं रहा है। आज भी कृषि पर देश की 55 से 57 प्रतिशत आबादी निर्भर है।

बेरोजगारी
भारत की अनुमानित 130 करोड़ की जनसंख्या का 67 प्रतिशत हिस्सा 15-64 वर्षीय लोगों का है। इसमें नौकरी ढूंढ रहे लोग करीब 50 फीसदी से भी ज्यादा हैं। इतनी बड़ी आबादी के लिए नौकरी का प्रबंध करना किसी भी सरकार के लिए बड़ी चुनौती है।

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