फिच रेटिंग्स ने बृहस्पतिवार को कहा कि लॉकडाउन की पाबंदियों में राहत से आर्थिक गतिविधियों के जोर पकड़ने के बावजूद गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों (एनबीएफआई) को निकट अवधि में नकदी और परिसंपत्तियों की गुणवत्ता के जोखिम का सामना करना पड़ेगा। रेटिंग एजेंसी ने कहा कि ये जोखिम कोरोना वायरस महामारी के कारण उधार लेने वालों की पुनर्भुगतान क्षमताओं के प्रभावित होने के साथ ही ऋण अदायगी के स्थगन के प्रभाव को दर्शाते हैं।
यह भी पढ़ें: 750 करोड़ के घोटाले में जीवीके ग्रुप के चेयरमैन के खिलाफ सीबीआई ने दर्ज किया केस
फिच ने कहा कि ऋण अदायगी के स्थगन, जिसे आरबीआई ने अगस्त तक बढ़ा दिया है, का नकदी प्रवाह पर असर उद्योग में एक जैसा नहीं है। यह कुछ एनबीएफआई की नकदी प्रोफाइल को अधिक प्रभावित करता है और आगामी देनदारियों को चुकाने या पुनर्वित्त करने की उनकी क्षमता पर दबाव डालता है। फिच ने अनुमान जताया कि निकट भविष्य में नकदी प्रवाह महामारी से पूर्व के स्तर के मुकाबले कम रहेगी और आर्थिक गतिविधियों के गति पकड़ने के साथ ही इसमें धीमे-धीमे सुधार होगा।
बैंक समाधान रूपरेखा में संशोधन जमाकर्ताओं का भरोसा बनाये रखने में करेगा मदद: मूडीज
मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत के बैंक समाधान की रूपरेखा में किया गया संशोधन क्रेडिट के लिहाज से सकारात्मक है, क्योंकि इससे जमाकर्ताओं के विश्वास को बनाये रखने में मदद मिलेगी। सरकार ने बैंकिंग विनियमन अधिनियम 1948 में 26 जून को संशोधन किया। इससे भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को किसी कमजोर बैंक के समाधान के लिये उसके जमाकर्ताओं व ऋणदाताओं पर कोई रोक लगाये बिना, उसकी पूंजी पुनर्गठित कर या किसी अन्य बैंक में उसका विलय कर समाधान निकालने की सहूलियत मिल गई है।
मूडीज ने एक बयान में कहा, "संशोधित समाधान प्रक्रिया क्रेडिट के लिहाज से सकारात्मक है, क्योंकि यह जमाकर्ताओं के विश्वास को बनाये रखने और कमजोर बैंक से जमा राशि को डूबने से बचाने में मदद करेगी।