9 हफ्तों के पीक पर पहुंची राष्ट्रीय बेरोजगारी दर, ग्रामीण क्षेत्र ने बढ़ाई चिंता
भारत में कल बेरोजगारी दर गत 16 अगस्त को समाप्त सप्ताह में नौ सप्ताह के शीर्ष पर पहुंच गई। ये आकंड़े अर्थशास्त्रियों के इस तर्क के बिल्कुल सटीक बैठते हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि बेरोजगारी में आई...

भारत में कल बेरोजगारी दर गत 16 अगस्त को समाप्त सप्ताह में नौ सप्ताह के शीर्ष पर पहुंच गई। ये आकंड़े अर्थशास्त्रियों के इस तर्क के बिल्कुल सटीक बैठते हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि बेरोजगारी में आई पिछली गिरावट कृषि गतिविधियों में गिरावट की वजह से थी और यह गिरावट अस्थाई प्रकृति की थी। पिछले सप्ताह राष्ट्रीय बेरोजगारी दर 9.1 फीसदी तक पहुंच गई जो 9 अगस्त को समाप्त सप्ताह में 8.67 फीसदी पर थी। सेंटर ऑफ मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के ताजा आंकड़ों में यह बात सामने आई है। यह पिछले नौ सप्ताह का सबसे तेज आंकड़ा है। गत 14 जून के बाद एक बार फिर बेरोजगारी दर ने इस स्तर को पार किया है। सीएमआईई के आंकड़ों के मुताबिक यह दर पूरे जुलाई महीने की सकल बेरोजगारी दर 7.43 फीसदी से भी ज्यादा है और कोविड 19 के देश में पैर फैलाने से पहले दर्ज मासिक बेरोजगारी दर से भी अधिक है।
ग्रामीण क्षेत्र पर टिकी हैं नजरें
गत समाप्त सप्ताह में ग्रामीण बेरोजगारी दर 8.86 फीसदी पर पहुंच गई जो इससे पहले 8.37 फीसदी थी। बीते 14 जून को बेरोजगारी दर 10.96 फीसदी थी। हालिया समय में 12 जुलाई को सबसे न्यूनतम ग्रामीण बेरोजगारी दर दर्ज की गई थी। उस समय बुवाई का काम तेजी पर था और पिछले साल की तुलना में ज्यादा जमीन पर बुवाई हुई थी। विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्र पर अर्थव्यवस्था की नजरें टिकी हुई हैं और उम्मीद की जा रही है कि आर्थिक तेजी से वहीं से रफ्तार मिलेगी। लेकिन वहां बेरोजगारी के आंकड़ों चिंता में डालने वाले हैं।
शहरों में चुनौतियां बरकरार
आंकड़ों के मुताबिक गत सप्ताह में शहरी बेरोजगारी दर 9.61 फीसदी दर्ज हुई जो इससे पहले 9.31 फीसदी थी। शहरी बेरोजगारी में लगातार दूसरे सप्ताह तेजी दर्ज हुई है। विशेषज्ञ मानते हैं कि शहरों में अभी बेरोजगारी का बढ़ना मध्यम अवधि में जारी रह सकता है। वहीं गांवों में प्रवासी मजदूरों के आने से रोजगार के मोर्चे पर दबाव बना हुआ है।
खर्च करने की क्षमता पर असर
रोजगार बढ़ने से अर्थव्यवस्था में खर्च करने वालों की संख्या में इजाफा होता है। इससे वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ती है। ऐसी स्थिति में कंपनियां उत्पादन बढ़ाती हैं। इसके जरिये कर के रूप में कुछ हिस्सा सरकारी खजाने में भी जाता है। ऐसी स्थिति में सरकार कमजोर और जरूरतमंदों के लिए अधिक खर्च करने की स्थिति में होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था को गति और मजबूती मिलती है।