बढ़ते एनपीए से बैंकों की नैया डगमगाई तो उन्हें संभालने के लिए वित्त मंत्रालय द्वारा उठाए गए सख्त कदमों का असर एक साल में ही दिखने लगा। पहली बार फर्जी बैलेंस शीट्स पर जारी होने वाले लोन की संख्या अप्रत्याशित रूप से घटी है। इसी तरह लोन के सख्त नियमों की वजह से फ्राड में उल्लेखनीय कमी आई है। महज एक साल में लोन की आड़ में होने वाले फ्राड की संख्या 4600 से घटकर 1600 रह गई। बैलेंस शीट की धोखाधड़ी से जुड़े फ्राड के मामले 34 से घटकर 14 रह गए। बैंकों के फ्राड को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ है। इस रिपोर्ट में एक लाख रुपए से ऊपर के फ्राड शामिल किए गए हैं।
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रिपोर्ट में बताया गया है कि बैंकों को चूना दस रास्तों से लगाया जाता है। इसमें नंबर वन लोन केस आते हैं। दूसरे नंबर पर बैलेंस शीट की धोखाधड़ी है। तीसरे नंबर पर कार्ड और इंटरनेट है। इसके बाद डिपाजिट, चेक और कैश से जुड़ी धोखाधड़ी का नंबर आता है।
लोन और बैलेंस शीट से अरबों के घोटाले
देश के टॉप 50 एनपीए मामलों में 80 फीसदी फ्राड लोन और बैलेंस शीट के दम पर किए गए हैं। पहले ब्रांड बनाना, उसकी ब्रांडिंग करके बड़ा बनाना, फिर उसकी आड़ में भारी भरकम बैलेंस शीट दिखाकर बैंकों से तगड़ा लोन लेना...इस मोडस आपरेंडी पर आरबीआई ने सीधे प्रहार किया। जिसका परिणाम ये हुआ कि बड़ी रकम के फ्राड में उल्लेखनीय कमी आई है।
एमएसएमई सेक्टर की हालत खराब
सरकारी बैंकों के कारपोरेट लोन ग्राहकों में 25 फीसदी ने मोरेटोरियम सुविधा का लाभ लिया। 64 फीसदी छोटे उद्यमियों ने लोन मोरेटोरियम लिया। 36 फीसदी व्यक्तिगत खाताधारक और 30 फीसदी अन्य श्रेणी के ग्राहकों ने लोन मोरेटोरियम लिया। निजी बैंकों में खुले कारपोरेट ग्राहकों में से 16 फीसदी और एमएसएमई सेक्टर के 83 फीसदी ग्राहकों ने मोरेटोरियम लिया। निजी बैंकों के आधे व्यक्तिगत खाताधारकों ने भी इस मोरेटोरियम सुविधा ली। विदेशी बैंक के खाताधारकों की स्थिति अच्छी नहीं है। इनके कुल कारपोरेट एकाउंट्स में से 27 फीसदी और एमएसएमई के 52 फीसदी ने इस सुविधा को उठाया। केवल 8 फीसदी व्यक्तिगत खाताधारकों ने इस सेवा का फायदा लिया। एनबीएफसी के 42 फीसदी कारपोरेट एकाउंट और 67 फीसदी छोटे उद्यमियों ने इसे अपनाया।