खरीद रहे हैं गाड़ी: कार लोन लेने से पहले रखें इन 5 बातों का ध्यान
कार खरीदने के लिए लंबी अवधि का कर्ज न लेना ही बेहतर है। सामान्यतया तो कार लोन 4-5 साल का ही होता है, लेकिन कई कंपनियां सात साल के लोन की पेशकश भी करती हैं। ग्राहक भी कम ईएमआई के चक्कर में आकर लंबी...
कार खरीदने के लिए लंबी अवधि का कर्ज न लेना ही बेहतर है। सामान्यतया तो कार लोन 4-5 साल का ही होता है, लेकिन कई कंपनियां सात साल के लोन की पेशकश भी करती हैं। ग्राहक भी कम ईएमआई के चक्कर में आकर लंबी अवधि का लोन ले लेते हैं, लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि इससे ब्याज का बोझ बढ़ता है। विशेषज्ञों का कहना है कि साथ ही वाहन का भी साल दर साल अवमूल्यन होता है, जिससे उसकी वैल्यू भी कम होती जाती है।
कम रखें कार लोन की अवधि
विशेषज्ञों का कहना है कि लोन की अवधि जितनी कम रखी जाए उतना बेहतर है। कुछ बैंक या वित्तीय संस्थान एक्स शोरूम प्राइस का 80 फीसदी तक लोन देते हैं और कुछ ऑनरोड प्राइस पर भी सौ फीसदी तक लोन देने को तैयार रहते हैं। इसके अलावा प्रोसेसिंग फीस और अन्य तरह के चार्ज भी देने पड़ते हैं। ऐसे में कार के साथ नियम-शर्तों की तुलना करने के बाद ही लोन के लिए बैंक या वित्तीय संस्थान चुनने का निर्णय करें।
बैंक से लोन लेना समझदारी
कार पसंद आते ही हम जल्दबाजी में रहते हैं और लोन की नियम-शर्तों पर ध्यान नहीं देते। अक्सर हम डीलर से जुड़े गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों या बैंकों से लोन के लिए तुरंत हामी भर देते हैं। बेहतर है कि हम डीलर की बजाय बैंक से लोन लें। कार पसंद आते ही ऑटो लोन के लिए बैंक से संपर्क साध सकते हैं। इसमें भी कोई झंझट नहीं है।
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जान लें कैसे हो रही है EMI की गणना
आपको इस पर भी ध्यान देना चाहिए कि बैंक या संस्थान ईएमआई की गणना कैसे करते हैं। कुछ बैंक या संस्थान फिक्स्ड ईएमआई का विकल्प देते हैं और कुछ बदलती ब्याज दरों के हिसाब से फ्लोटिंग रेट का विकल्प देते हैं। ब्याज दर बढ़ने के जोखिम के साथ यह आप पर निर्भर करता है कि आप किसे चुनते हैं।
ब्याज दरों को समझें
बैंक की ब्याज दर 8-9% और डीलर से जुड़े संस्थानों की ब्याज दर 5-6 फीसदी है तो इसे सस्ता न समझें। दरअसल, बैंक रिड्यूसिंग बैलेंस यानी घटते मूलधन के हिसाब से ब्याज लेते हैं। इसमें ईएमआई हर महीने की कमोवेश एकजैसी रहती है।
प्रीपेमेंट चार्ज न हो तो बेहतर
ज्यादातर बैंक लोन की राशि समय से पहले चुकाने पर कोई फीस नहीं लेते। हालांकि कुछ बैंक या वित्तीय संस्थान तीन प्रतिशत तक फीस वसूलते हैं। लिहाजा लोन लेने से पहले इसकी जानकारी लेना भी बेहतर है। बैंक चाहते हैं कि ग्राहक किसी उत्पाद की कीमत का कुछ हिस्सा डाउनपेमेंट के तौर पर दें। जबकि डीलर पूरे पर लोन के लिए तैयार रहता है।
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