जनवरी में अभी और रुला सकती है महंगाई, 8 फीसदी से ऊपर जा सकती है महंगाई: एसबीआई रिपोर्ट
देश की आर्थिक वृद्धि की सुस्त पड़ती रफ्तार के बीच खुदरा के बाद थोक महंगाई दर में आए बड़े उछाल से सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। वित्तीय विशेषज्ञों का कहना है कि महंगाई बेकाबू होने से अर्थव्यवस्था की...
देश की आर्थिक वृद्धि की सुस्त पड़ती रफ्तार के बीच खुदरा के बाद थोक महंगाई दर में आए बड़े उछाल से सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। वित्तीय विशेषज्ञों का कहना है कि महंगाई बेकाबू होने से अर्थव्यवस्था की सुस्त रफ्तार को तेज करना और चुनौतीपूर्ण हो गया है।अर्थशास्त्री अरुण कुमार ने ‘हिन्दुस्तान' को बताया कि महंगाई में असमान उछाल आने का सीधा असर आम लोगों की खपत पर होगा क्योंकि उनका घर का बजट बढ़ेगा।
वह इसकी भरपाई खपत में कटौती कर करेंगे। इसके चलते बाजार में मांग और घटेगी जबकि सरकार अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज करने के लिए मांग बढ़ाने पर जोर दे रही है लेकिन, यह करना अब ज्यादा मुश्किल होगा क्योंकि महंगाई से आम लोगों की बचत कम होगी। आर्थिक सुस्ती से बाजार में उत्साह का माहौल नहीं है। नई नौकरी के अवसरों में कमी और वेतन बढ़ोतरी को लेकर अनिश्चितता का माहौल सरकार की राह में बड़ी बाधा है।
इससे पार पाने के लिए सरकार को पहले के मुकाबले और जोर लगाना होगा। इस विकट स्थिति से पार पाने के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था में जान फूंकना होगा।मनरेगा, स्वास्थ्य, शिक्षा और इंफ्रा पर बजट बढ़ाना होगा। इसके बाद ही सुधार की उम्मीद की जा सकती है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो हम गतिहीन महंगाई की स्थिति में जा सकते है जहां आर्थिक वृद्धि कमजोर रहने के साथ महंगाई दर ऊंची होती है। यानी ऐसी स्थिति जहां एक तरफ मुद्रास्फीति तो बढ़ रही है, वहीं दूसरी तरफ सकल मांग घट रही है।
आठ फीसदी से ऊपर जा सकती है महंगाई
एसबीआई की शोध इकाई इकोरैप रिपोर्ट के अनुसार, सब्जियों के दाम में वृद्धि को देखते हुए जनवरी माह के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित महंगाई आठ फीसदी से ऊपर जा सकती है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मार्च तक खुदरा मुद्रास्फीति सात प्रतिशत से ऊपर बनी रह सकती है। मंगलवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर में कमी नहीं आती है, हम गतिहीन मुद्रास्फीति (स्टैगफ्लेशन) की स्थिति में जा सकते है जहां आर्थिक वृद्धि कमजोर रहने के साथ महंगाई दर ऊंची होती है। रिपोर्ट के अनुसार महंगाई दर चालू वित्त वर्ष की शेष अवधि में 7% की दर से बनी रह सकती है।
रिजर्व बैंक ने केंद्र के पाले में गेंद डाली
आर्थिक सुस्ती को लेकर बढ़ती चिंता के बावजूद रिजर्व बैंक ने महंगाई को देखते हुए दिसंबर में नीतिगत ब्याज दरें नहीं घटाईं थी। इस तरह रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में कमी रोक कर अब मंदी से लड़ाई का बीड़ा सरकार की तरफ बढ़ा दिया है। अगली समीक्षा में भी रेपो रेट में कमी की उम्मीद नहीं है। सरकार के सामने दो चुनौतियां केंद्र सरकार के सामने दो मुख्य चुनौतियां हैं, पहला, बढ़ती कीमतों को काबू करना और दूसरा, आर्थिक विकास दर में तेजी लाना। आर्थिक मामलों के जानकारों का कहना है कि सरकार के लिए यह दोनों काफी बड़ी चुनौती होगी, जिससे निपटना आसान नहीं होगा।
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अर्थव्यवस्था में आ सकता है ठहराव रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के चीफ इकोनॉमिस्ट डीके जोशी ने कहा कहा, करीब से देखने पर पता चलता है कि महंगाई में उछाल अस्थाई प्रकृति का या किसी विशेष कारक की वजह से है। उन्होंने चेताया, नरम पड़ती आर्थिक वृद्धि के साथ जरूरत से ज्यादा ऊंची महंगाई अर्थव्यवस्था में ठहराव का खतरा बढ़ाती है।
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