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कारोबार के अनुकूल बनानी होंगी नीतियां, ताकि बाजार को मिले ताकत: कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन

केंद्र सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमणियन ने शनिवार (22 फरवरी) को कहा कि आर्थिक उदारीकरण के बाद चहेते औद्योगिक घराने के साथ साठ-गांठ से नीति बनाने का चलन कम हुआ है। हालांकि, देश को...

कारोबार के अनुकूल बनानी होंगी नीतियां, ताकि बाजार को मिले ताकत: कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन
एजेंसी,मुंबईSat, 22 Feb 2020 11:39 PM
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केंद्र सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमणियन ने शनिवार (22 फरवरी) को कहा कि आर्थिक उदारीकरण के बाद चहेते औद्योगिक घराने के साथ साठ-गांठ से नीति बनाने का चलन कम हुआ है। हालांकि, देश को इससे पूरी तरह उबरने में अभी समय लगेगा। उन्होंने कहा कि तरक्की के लिए कारोबार के अनुकूल नीतियां बनानी होंगी।

सुब्रमणियन ने कहा, जब पूरे कारोबार जगत को ध्यान में रखकर नीतियां बनाई जाएंगी, तभी बाजार के अदृश्य हाथों को बल मिलेगा और यही देश को पांच हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य तक पहुंचाएगा। आईआईटी कानपुर के अपने सहपाठियों और छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, कारोबारियों से यारी दोस्ती को ध्यान में रखकर नीतियां बनाने से सिर्फ खास-खास लोगों को ही लाभ मिलता है। हमें बाजार के अदृश्य हाथों को ताकत देने के लिए इससे बचने की जरूरत है। हमें कारोबार के अनुकूल नीतियां बनानी होंगी तभी देश में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया जा सकेगा। हालांकि, इसमें अभी कुछ और दूरी तय करने की जरूरत है।

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सुब्रमणियन ने कहा कि आरोप लगता रहा है कि स्वतंत्रता के बाद से 1991 में हुए उदारीकरण तक सिर्फ कुछ कारोबारियों को ध्यान में रखकर नीतियां बनाई गईं। उन्होंने दावा किया कि अब इसमें बदलाव आया है। उन्होंने कहा कि दूरसंचार स्पेक्ट्रम आवंटन पर 2011 में कैग की रिपोर्ट आने के बाद ऐसी कंपनियों में निवेश पर कमाई काफी कम रही जो संपर्कों वाली कंपनी मानी जाती हैं।

मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा कि क्रोनी कैपिटलिज्म के साथ एक दिक्कत है, यह आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिये कारोबार का बेहतर मॉडल नहीं है। उन्होंने कहा कि हमें हमेशा ऐसे रचनात्मक विध्वंस पर ध्यान देना चाहिए, जहां पहले से मौजूद कॉरपोरेट घरानों को चुनौतियां मिलती हों। सुब्रमणियन ने नीति निर्माण की प्रक्रिया में अर्थव्यवस्था के हालिया सिद्धांतों पर ही निर्भर हो जाने और कौटिल्य के अर्थशास्त्र जैसे प्राचीन ग्रंथों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर देने को भी गलत बताया। उन्होंने कहा कि पिछले 100 साल में जो लिखा गया, सिर्फ वही विद्वता नहीं है बल्कि यह सदियों पुरानी चीज है।

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