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होमबॉयर्स RERA को लंबित परियोजनाओं के मामले सुलझाने कि लिए मानते हैं बेहतर विकल्प

भारत के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में एक समय रियल एस्टेट प्रोजेक्ट बहुत तेजी से बढ़ रहे थे लेकिन साल 2015 के बाद से इनकी लॉन्चिंग और सेल में भारी गिरावट देखने को मिली है। हालाता ऐेसे हैं कि अब...

होमबॉयर्स RERA को लंबित परियोजनाओं के मामले सुलझाने कि लिए मानते हैं बेहतर विकल्प
Sheetal Tanwar लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 2 Oct 2020 03:48 PM
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भारत के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में एक समय रियल एस्टेट प्रोजेक्ट बहुत तेजी से बढ़ रहे थे लेकिन साल 2015 के बाद से इनकी लॉन्चिंग और सेल में भारी गिरावट देखने को मिली है। हालाता ऐेसे हैं कि अब होमबायर्स को दिवालिया डेवलपर्स द्वारा निर्माणाधीन घरों पर कब्जा पाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। वह अब मामले सुलझाने के लिए देश के कानूनी और नीतिगत उपायों के बीच फंस गए हैं।

रियल एस्टेट फर्म एनरॉक और नेशनल रियल एस्टेट डेवलपमेंट काउंसिल की एक रिपोर्ट के अनुसार एनसीआर और इसके आसपास के शामिल कई जिलों में 2015 के बाद से नई परियोजनाओं की संख्या में काफी कमी आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नई परियोजनाओं की संख्या 2015 में 90,000 इकाइयों से घटकर 2019 में 40,000 इकाई हो गई। बिक्री 2015 में 80,000 के करीब से घटकर 2019 में लगभग 50,000 हो गई। इन वर्षों के दौरान बाजार में एक सामान्य मंदी थी क्योंकि होमबॉयर्स की दलीलों के बावजूद कई रिटल एस्टेट प्रोजेक्ट कभी पूरे नहीं हुए। 

डेवलपर्स और होमबॉयर्स दोनों के लिए रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 (RERA) और दिवाला और दिवालियापन संहिता 2016, (IBC) इस सेक्टर से जुड़े मुद्दों को हल करने के दो साधन हैं। रेरा  को रियल एस्टेट सेक्टर को बढ़ावा देने और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के अपने घोषित उद्देश्यों के साथ रहने के रूप में देखा जाता है, वहीं, इनसॉल्वेंसी और दिवालियापन कोड के साथ अन्य मुद्दे हैं।

एक दिवालिया डेवलपर द्वारा निर्माण की प्रतीक्षा कर रहे करीब 20,000 होमबॉयर्स के लिए एक मामला सिरदर्द बन गया। दिवालिया याचिकाओं की सुनवाई करने वाला नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल मार्च में याचिकाओं की सुनवाई करता रहा। अगस्त में सर्वोच्च न्यायालय ने मामले में सभी अपीलों को एक साथ सुनने और आगे की देरी से बचने के प्रयास में स्थानांतरित कर दिया।

साल 2017 में एक तरह से नियमों और कानूनों का परीक्षण हुआ जब न्यायाधिकरण ने आईबीसी के तहत जेपी इंफ्राटेक के लिए दिवालिया कार्यवाही की अनुमति दी। न्यायाधिकरण द्वारा एक दिवालिया पेशेवर को कंपनी की देखभाल के लिए नियुक्त किया गया, ये नियुक्ति तब तक के लिए की गई तब तक एनबीसीसी के प्लान को ट्रिब्यूनल पास नहीं कर देता। 2017 तक विरोध प्रदर्शनों के बाद भी होमबॉयर्स को लेनदारों के रूप में नामित करने की अनुमति नहीं थी।

भारत में अमेरिका से अलग देनदार कंपनी पर नियंत्रण खो देता है। विश टाउन का निर्माण करने वाले जेपी इन्फ्राटेक के मूल प्रमोटर मनोज गौड़ और उनका बोर्ड भंग हो गया और इस साल की शुरुआत तक रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल ने कंपनी की कमान संभाली।

आरबीआई ने लेनदारों को जेपी इंफ्राटेक को दिवालियापन अदालत में ले जाने के लिए कहा। केंद्रीय बैंक के आदेशों पर नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल के सामने आने वाले 12 मामलों में से यह एक था। जेपी इंफ्राटेक के विश टाउन में, अधिकांश घरों का निर्माण पूरा नहीं हुआ। कंपनी पर भारी मात्रा में धनराशि बकाया थी। केंद्रीय बैंक गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के मुद्दे को हल करना चाहता था और चूंकि जेपी इन्फ्राटेक एक ऐसा खाता था, इसलिए इसे दिवालियापन अदालत (न्यायाधिकरण) में ले जाया गया। इस बीच कोई अन्य प्रमुख रियल एस्टेट के दिवालिया के लिए नहीं आया। कोई भी कंपनी आईबीसी के तहत सुरक्षा की मांग नहीं कर सकती है। होमबॉयर्स को डर है कि अगर डेवलपर लिक्विडेशन चाहेंगे तो उन्हें अपने घर कभी नहीं मिलेगा।

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