यहां 10 गुना हो रही किसानों की आय, ऑयस्टर और मिल्की मशरूम उगाकर हो रहे हैं मालामाल
उत्तर प्रदेश में किसान औषधीय गुणों से भरपूर आयस्टर और मिल्की मशरूम उगाकर साल भर न केवल अतिरिक्त आय अर्जित कर रहे है बल्कि मधुमेह और ह्रदय रोग तथा कई अन्य घातक बीमारियों का सामना कर रहे लोगों को...
उत्तर प्रदेश में किसान औषधीय गुणों से भरपूर आयस्टर और मिल्की मशरूम उगाकर साल भर न केवल अतिरिक्त आय अर्जित कर रहे है बल्कि मधुमेह और ह्रदय रोग तथा कई अन्य घातक बीमारियों का सामना कर रहे लोगों को पौष्टिक आहार भी उपलब्ध करा रहे हैं। इससे कुछ किसान बहुत सफल हुए हैं और उन्होंने अपनी लागत से दस गुना अधिक कमाया है।
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मशरूम उगाने में महारत हासिल चुके लखनऊ और उसके आसपास के किसान नवंबर से फरवरी के दौरान भारी मात्रा में बटन मशरूम उगाते हैं। इस दौरान वातावरण और तापमान इसके लिए अनुकूल रहता है, जिसका फायदा लेने का तरीका स्थानीय वैज्ञानिकों की मदद से लोगों ने सीख लिया है। यहां के किसान गर्मी के मौसम में मशरूम की कुछ अन्य किस्मों को उगाने के प्रयास में लगे थे, जिससे उन्हें मार्च से अक्टूबर के दौरान उसकी फसल उगा सकें। कुछ किसान तो पूंजी लगाने की तुलना में दस गुना अधिक आय प्राप्त कर रहे हैं।
मिल्की मशरूम में 40 प्रतिशत तक प्रोटीन
मिल्की मशरूम किसानों को खूबसूरत विकल्प के रूप में मिला, जिसे इस समय के दौरान आसानी से उगाया जा सकता है और इसका व्यापक बाजार भी उपलब्ध है । इसमें 20 से 40 प्रतिशत प्रोटीन, 0.5 से 1.3 प्रतिशत रेशा, 0.5 से 1.4 प्रतिशत खनिज, 3.0 से 5.2 प्रतिशत निम्न काबोर्हाइड्रेट, 0.10 से 034 प्रतिशत वसा तथा 16 से 37 कैलोरीज़ पाया जाता है, जो मधुमेह और हृदय रोग से प्रभावित लोगों के लिए बेहतरीन आहार है। इसके साथ ही इससे कुपोषण की समस्या का आसानी से समाधान किया जा सकता है ।
यहां से ले सकते हैं जानकारी
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान लखनऊ की मदद से उत्तर प्रदेश की राजधानी के आसपास के किसान अब साल भर मशरूम की पैदावार लेकर अतिरिक्त आय प्राप्त कर रहे है। संस्थान के वैज्ञानिक पीके शुक्ला के अनुसार इस कार्य में विशेषकर शहरी और ग्रामीण युवा विशेष उत्साह के साथ लगे हैं तथा उन्हें सफलता भी मिल रही है। संस्थान युवाओं में जोश के अनुरूप सालभर प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चला रहा है। इसके अलावा व्यक्तिगत रूप से इस संबंध में जिज्ञासा रखने वालों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाया जाता है । प्रशिक्षण के बाद भी लोगों को किसी प्रकार की कठिनाई नहीं हो उसके लिए वॉट्सएप ग्रुप और फोन के माध्यम से उनकी समस्याओं का निदान किया जाता है।
30 प्रतिशत की दर से बढ़ रही मशरूम बीज की मांग
डॉक्टर शुक्ला के अनुसार औसतन प्रति वर्ष 30 प्रतिशत की दर से मशरूम बीज ( स्पन) की मांग बढ़ रही है, जिससे ऑयस्टर और मिल्की मशरूम के उत्पादन में हो रही वृद्धि का पता चलता है । पिछले दो साल के दौरान व्यावसायिक तौर पर बटन मशरूम की पैदावार लेने वाले भी ऑयस्टर और मिल्की मशरूम की पैदावार ले रहे हैं । लखनऊ जिले के लगभग तमाम ब्लॉक में मशरूम उत्पादन किया जा रहा है। इसके साथ ही हरदोई , लखीमपुर खीरी, शाहजहांपुर, सीतापुर और उन्नाव जिले में भी किसान इसकी पैदावार कर रहे हैं । बाराबंकी जिला विभिन्न कारणों से बटन मशरूम उत्पादन का हब बन गया है लेकिन यहां सालभर मशरूम उत्पादन अब भी नहीं हो पा रहा है।
संस्थान के रहमनखेड़ा मुख्यालय में मिल्की मशरूम उत्पादन पर पहला प्रशिक्षण कार्यक्रम पिछले दिनों आयोजित किया गया, जिसमे लखनऊ , हरदोई , शाहजहांपुर और उन्नाव के शहरी और ग्रामीण युवाओं ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया। व्याख्यान तथा गहन प्रशिक्षण कार्यक्रम के बाद इन उत्साही किसानों को पूरा मशरूम कीट और अन्य सामग्री उपलब्ध कराया गया ताकि वे अपने अपने घरों पर जा कर वैज्ञानिक ढंग से इसकी पैदावार ले सके ।
सालभर प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध
संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. शुक्ला ने बताया कि नए मशरूम उत्पादक किसानों से जो जानकारी मिली है वह बेहद रोचक है। कुछ किसान बहुत सफल हुए हैं और उन्होंने अपनी लागत से दस गुना अधिक कमाया है। ऑयस्टर मशरूम की पैदावार लेने वाले कुछ किसानों ने इसका उपयोग अपने घरों में किया और दोस्तों को दिया। संस्थान अब मशरूम के मूल्य संवर्धन के प्रयास में जुटा है, जिससे इसके उत्पादकों को अधिक से अधिक आर्थिक लाभ मिल सके। डॉक्टर शुक्ला ने बताया कि संस्थान में सालभर न केवल प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है बल्कि मशरूम बीज भी उचित मूल्य पर उपलब्ध कराया जा रहा है ।
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