अर्थव्यवस्था को ऑक्सीजन नहीं दे पाई दिवाली, मांग में नहीं हुई बढ़ोतरी
भारतीय अर्थव्यवस्था की धीमी रफ्तार को इस बार त्योहारी सीजन से भी सहारा नहीं मिला। सितंबर महीने के मुकाबले अक्तूबर में धनतेरस और दिवाली होने के बावजदू मांग में बढ़ोतरी नहीं हुई। कुल मिलाकर...
भारतीय अर्थव्यवस्था की धीमी रफ्तार को इस बार त्योहारी सीजन से भी सहारा नहीं मिला। सितंबर महीने के मुकाबले अक्तूबर में धनतेरस और दिवाली होने के बावजदू मांग में बढ़ोतरी नहीं हुई। कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था को ऑक्सीजन देने में दिवाली भी सफल नहीं रही। ब्लूमबर्ग की ओर से अर्थव्यवस्था के आठ मानकों पर तैयार किए गए रिपोर्ट से यह जानकारी मिली है।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत के सबसे बड़े धार्मिक त्योहारों में से एक दिवाली अक्तूबर माह में था। इस त्योहार में हर कोई मीठाई, उपहारों की खरीदारी पर जबरदस्त खर्च करते हैं। लेकिन, इस दौरान भी त्योहारी बिक्री अपेक्षाकृत कम रही। बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच के विश्लेषकों के अनुसार, पिछले साल की तुलना में 90% से अधिक दुकानदारों ने बताया कि उनके दुकान पर ग्राहकों की संख्या कम रही।
सियाम की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, अक्तूबर में कार की बिक्री में एक साल पहले की तुलना में 6.3% की गिरावट रही। यह लगातार 12वां महीना था जब कार की बिक्री में गिरावट दर्ज की गई। सितंबर में भी कार की बिक्री 33% गिरी थी। इस दौरान दोपहिया वाहनों की बिक्री 14.4 फीसदी और ट्रक की बिक्री 23.3 फीसदी कम रही। कंपनियों की ओर से कर्ज की मांग कम पड़ने से बैंक ऋण में वृद्धि लगभग दो साल की नीचे आ गई।
कंपनियों का कारोबार में कमी आई
चुनौतीपूर्ण आर्थिक हालात के बीच देश के सेवा क्षेत्र की गतिविधियों में लगातार दूसरे महीने अक्तूबर में भी गिरावट दर्ज की गई है। आईएचएस मार्किट इंडिया सर्विसेस बिजनेस एक्टिविटी इंडेक्स (पीएमआई-सेवा) अक्तूबर में 49.2 अंक पर रहा। यह कंपनियों के परचेजिंग मैनेजर के बीच किया जाने वाला मासिक सर्वेक्षण है। पीएमआई का 50 अंक से नीचे रहना गतिविधियों में गिरावट और 50 अंक से ऊपर रहना गतिविधियों में विस्तार को इंगित करता है। वित्त वर्ष 2017-18 की दूसरी तिमाही के बाद यह पहला ऐसा मौका है जब इसमें लगातार दो माह तक गिरावट देखी गई। अक्तूबर महीने में कंपनियों को नए ठेके मिलने का काम स्थिर रहा, वहीं रोजगार सृजन में भी नरमी देखी गई। इसके अलावा चुनौतीपूर्ण आर्थिक हालातों ने कारोबारों की धारणा भी प्रभावित की।
निर्यात लगातार तीसरे महीने घटा
देश के निर्यात में अक्तूबर में लगातार तीसरे महीने गिरावट आई। अक्तूबर में निर्यात 1.11 प्रतिशत गिरकर 26.38 अरब डॉलर रहा। इसकी प्रमुख वजह पेट्रोलियम, कालीन, चमड़ा उत्पाद, चावल और चाय के निर्यात में कमी आना रहा। अक्तूबर में देश का आयात भी घटा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार समीक्षाधीन अवधि में यह 16.31 प्रतिशत घटकर 37.39 अरब डॉलर रहा। हालांकि, आयात में गिरावट के चलते देश का व्यापार घाटा भी घटकर 11 अरब डॉलर पर आ गया। इससे पहले देश का कुल निर्यात सितंबर में 6.57 प्रतिशत और अगस्त में 6 प्रतिशत गिरा था। देश का निर्यात अब तक नीचे ही बना हुआ है। इससे देश की पूरी आर्थिक वृद्धि दर पर बोझ बढ़ सकता है जो चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में छह साल के निचले स्तर यानी पांच प्रतिशत तक आ गयी है।
औद्योगिक उत्पादन में बड़ी गिरावट
औद्योगिक उत्पादन में सितंबर महीने में 4.3 प्रतिशत की गिरावट आई। मुख्य रूप से विनिर्माण क्षेत्र के खराब प्रदर्शन के कारण औद्योगिक उत्पादन का आंकड़ा प्रभावित हुआ। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक के आधार पर आकलित औद्योगिक उत्पादन में सितंबर 2018 में 4.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी। विनिर्माण क्षेत्र में सितंबर महीने में 3.9 प्रतिशत की गिरावट आई जबकि एक साल पहले इसी महीने में इसमें उत्पादन में 4.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। आईआईपी ने अक्तूबर 2011 में इससे निचला स्तर था, जब आइआइपी में 5 फीसदी गिरावट आई थी। आने वाले महीनों में भी औद्योगिक उत्पादन में सुधार होने की संभावना बहुत कम है।
बेरोजगारी दर तीन साल के शीर्ष पर
भारत में बेरोजगारी दर अक्तूबर में बढ़कर 8.5 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई। यह वर्ष 2016 के अगस्त से अब तक सबसे ऊंचा आंकड़ा है। देश में इस साल सितंबर में बेरोजगारी दर 7.2 फीसदी थी। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआई) की ओर से जारी आंकड़ों में यह बात सामने आई। रिपोर्ट में अगस्त की साप्ताहिक बेरोजगारी दर के आंकड़े के मुताबिक महीने के हर हफ्ते में बेरोजगारी की दर आठ से नौ फीसदी के बीच थी।
आरबीआई को करनी पड़ सकती है छठी कटौती
अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई), पिछले पांच मौद्रिक समीक्षा में 135 आधार अंकों की कटौती रेपो रेट में कर चुका है। इसके बावजूद भी अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत नहीं है। एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में वृद्धि दर 4.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है। अगर, ऐसा हुआ तो आरबीआई को एक बार फिर छठी कटौती करने के लिए मजबूर होना होगा। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि सिर्फ रेपो रेट में कटाने से अर्थव्यवस्था में सुधार होने की उम्मीद कम है। इसके साथ ही और भी कई कदम उठाने होंगे।
जानें Hindi News , Business News की लेटेस्ट खबरें, Share Market के लेटेस्ट अपडेट्स Investment Tips के बारे में सबकुछ।