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अस्पताल और बीमा कंपनी के बीच पिस रहे कोरोना मरीज, शहर के साथ बदल जाते हैं नियम

कोरोना के इलाज के लिए अस्पताल पहुंच रहे स्वास्थ बीमाधारक सरकार और बीमा कंपनियों के नियमों के फेर में फंस रहे हैं। एनसीआर के अलग-अलग शहरों में सरकारी नियम अलग-अलग होने से उपभोक्ताओं की जेब पर चपत लग...

Himanshu Jha गौरव त्यागी, हिन्दुस्तान, नई दिल्ली।Tue, 15 Sep 2020 09:28 AM
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कोरोना के इलाज के लिए अस्पताल पहुंच रहे स्वास्थ बीमाधारक सरकार और बीमा कंपनियों के नियमों के फेर में फंस रहे हैं। एनसीआर के अलग-अलग शहरों में सरकारी नियम अलग-अलग होने से उपभोक्ताओं की जेब पर चपत लग रही है। दिल्ली और गाजियाबाद में बिलो का अंतर मरीज को भरना पड़ रहा है। इस संबंध में बड़ी संख्या में बीमा कंपनियों और सरकार को शिकायतें भी भेजी गई हैं।

कोरोना के इलाज के लिए सरकारी स्तर पर गाइडलाइन तय की गई हैं। हरियाणा में सरकार द्वारा तय किए गए शुल्क को बीमा कंपनियों पर लागू नहीं किया गया है। इसके चलते उनके पूरे बिल का भुगतान हो रहा है। इस संबंध में हरियाणा ने 25 जून को संशोधित शासनादेश जारी किया था। दिल्ली ने 20 जून को कोरोना के इलाज की दर तय कर दी, लेकिन बीमा के संबंध में कुछ नहीं लिखा। अस्पताल बीमा कपनियों के साथ हुए अनुबंध के आधार पर बिल बना रहे हैं और बीमा कंपनियां सरकार द्वारा तय दर पर भुगतान कर रही हैं। इसके चलते बिल का अंतर मरीजों को भुगतना पड़ रहा है।

दिल्ली के निजी अस्पताल में भर्ती गिरीश कुमार अग्रवाल के अनुमानित बिल में बीमा कंपनी ने साठ फीसदी घटा दिया है। गाजियाबाद में रमा मित्तल को स्वास्थ बीमा के बाद भी एक लाख से ज्यादा का भुगतान करना पड़ा। यूपी सरकार ने दस सितंबर को संशोधित शासनादेश में लिखा है कि प्रयोगात्मक दवाई का शुल्क अस्पताल ले सकता है, लेकिन बीमा कंपनियों ने यह शुल्क पहले से ही काटना शुरू कर दिया था।

प्रयोगात्मक दवाई के पैसे वसूले
गाजियाबाद, नोएडा, दिल्ली में प्रयोगात्मक दवाई के नाम पर पैसे वसूले जा रहे हैं। उधर गुरुग्राम और फरीदाबाद में मरीज पर इस तरह का चार्ज नहीं लगाया जा रहा। गाजियाबाद में बृजभूषण जैन को चालीस हजार रुपए अतिरिक्त देने पड़े। उनकी पत्नी रचना जैन से भी 14 हजार रुपए दवाओं के लिए गए।

ये बीमा कंपनियों की बदमाशी है। अभी तक कोरोना को लेकर कोई दवा नहीं बनी है। चिकित्सक जो भी इलाज कर रहे हैं, वह प्रायोगिक है। किसी भी दवा को प्रायोगिक बताकर पैसा लेना गलत है। सरकार के किसी भी आदेश में इस तरह की बात नहीं है।- सतेंद्र जैन, स्वास्थ मंत्री

इस संबध में कई शिकायतें आई हैं। हमने ग्राउंड लेवल पर बैठक कर भी पूरी जानकारी ली है। मुख्यालय के साथ वार्ता कर इस संबंध में उचित फैसला लिया जाएगा।- जेपीएस तोमर, आरएम ओरिएंटल इंश्योरेंस

झारखंड में पूरी व्यवस्था मुफ्त
राज्य सरकार के अस्पतालों में कोरोना मरीजों को जांच से लेकर उपचार तक की पूरी व्यवस्था मुफ्त उपलब्ध है। सरकारी अस्पतालों में प्रयोगात्मक दवाएं जैसे रेमडेसिवीर दवा भी मुफ्त उपलब्ध कराई जाती है। निजी अस्पतालों के लिए सरकार ने कोविड मरीजों के उपचार का शुल्क तय कर दिया है। इसके तहत तीन श्रेणी में शहर बांटे गए हैं। अस्पतालों को दो श्रेणी में (एनबीएच और नान एनएबीएच) जबकि, मरीज को चार श्रेणियों में (बिना लक्षण से वेंटिलेटर की जरूरत वाले तक) बांटा गया है। इसके तहत सरकार ने प्रतिदिन 4000 से 18000 तक के शुल्क तय कर दिए हैं। कोई भी अस्पताल इससे ज्यादा नहीं ले सकते हैं। इस शुल्क में पीपीई किट से लेकर दवा ऑर ऑक्सीजन तक के सभी खर्च शामिल हैं। अब तक बीमा के भुगतान को लेकर कोई विवाद सामने नहीं आया है।

बिहार में करार के आधार पर भुगतान
जगदीश मेमोरियल अस्पताल के संचालक डॉ आलोक कुमार ने बताया कि एक अगस्त से ही उनके यहां कोरोना का इलाज शुरू हुआ है। अब तक 30 से ज्यादा बीमा धारक कोरोना पीड़ित उनके यहां इलाज कराकर स्वस्थ होकर चले गए हैं। बताया कि कई ऐसे कार्ड धारक हैं जिनके बीमा कंपनी से को पेड का करार है। ऐसे में अगर 100000 का बिल आता है तो 70000 कंपनी दे रही है जबकि 30,000 ग्राहक को देना पड़ रहा है। लेकिन कई कंपनियां ऐसी भी हैं जो मरीजों का पूर्ण भुगतान कर रही हैं। यहां तक कि सर्जिकल आइटम पीटीई किट का भी भुगतान हो रहा है। इसके लिए प्रतिदिन 15 सौ रुपये है। डिस्चार्ज होने तक ऐसे मरीजों को कोई राशि नहीं देनी पड़ती है। यानी कि उनका पूर्णता कैशलेस इलाज हो रहा है।
उत्तराखंड में इलाज की दर तय

राज्य में निजी अस्पतालों में भर्ती कोरोना मरीजों के इलाज की दर तय की गई है लेकिन बीमा कंपनियों के लिए क्लेम भुगतान के संदर्भ में सरकार ने अलग से कोई नियम नहीं बनाए हैं। प्रभारी सचिव स्वास्थ्य डॉ पंकज पांडेय ने बताया कि राज्य में बीमा कंपनियों के लिए कोरोना इलाज के क्लेम भुगतान के लिए नियम नहीं बनाए गए हैं। राज्य सरकार ने मरीजों को आयुष्मान योजना में निशुल्क इलाज की व्यवस्था की है। इस योजना में राज्य के सभी 18 लाख परिवार शामिल हैं। जबकि सरकारी कर्मचारियों के लिए चिकित्सा प्रतिपूर्ति के पूराने नियम लागू होंगे। जिसमे दवाओं के मूल्य का पूरा भुगतान किया जाता है। रूम के लिए भुगतान कर्मचारी की श्रेणी के अनुसार सीजीएचएस की दरों पर होता है।

सोशल मीडिया पर लिखा दिल्ली वालों ने अपना दर्द
स्वास्थ्य बीमा कराने के बाद भी बीमा कंपनियां कोरोना मरीजों की जेब काट रही हैं। कहीं भर्ती कराने में लोगों को दिक्कत हुई तो कहीं मोटा बिल भरना पड़ा। परेशान लोगों ने सोशल मीडिया पर ऐसी ही शिकायतों के साथ दर्द साझा किया है। दिल्ली निवासी आशीष गोयल ने ट्विटर पर लिखा कि उनकी माताजी को कोरोना संक्रमण के बाद दक्षिणी दिल्ली के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया था। अस्पताल ने इलाज के लिए 1 लाख 80 हजार का बिल दे दिया कि यह आपको बीमा से कवर हो जाएगा लेकिन बीमा कंपनी ने सिर्फ 87 हजार रुपये का ही भुगतान किया। आशीष की बीमा कंपनी से काफी बहस हुई, लेकिन उनकी किसी ने नहीं सुनी। उन्होंने सोशल मीडिया पर अपना दर्द साझा किया है।

सरकार के निर्देश को नहीं मान रहे डॉक्टर सौरभ सिंह ने ट्विटर पर लिखा है कि उनके एक परिचित को कोरोना होने के बाद इलाज के लिए सरिता विहार स्थित निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। अस्पताल ने दिल्ली सरकार की ओर से फिक्स रेट की कीमतों को इसलिए नहीं माना क्योंकि उनके पास बीमा था। डॉक्टर सौरभ ने लिखा कि बेड की कीमत इतने से अधिक नहीं हो सकती और हर सेवा के जो रेट फिक्स हैं वो अस्पताल कैश वाले मरीजों पर ही मान रहा है। बीमा वालों पर नहीं मान रहा, जबकि बीमा कंपनी फिक्स रेट से अधिक कीमत देने को तैयार नहीं है। ऐसे में बीमा होते हुए भी हमें जेब से खर्च करना पड़ रहा है।

बिना पेमेंट के भर्ती नहीं कर रहे
राघव जैन ने ट्विटर पर लिखा है कि साकेत स्थित एक निजी अस्पताल उनके दोस्त अर्जुन दास को इसलिए भर्ती नहीं कर रहा, क्योंकि वे कैशलेस बीमा से भुगतान करना चाहते हैं। लेकिन अस्पताल कह रहा है कि पहले पैसे जमा करो।

दिल्ली सरकार ने कोरोना के इलाज के लिए एक स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल लागू किया है। इसमें हर तरह के बेड और दूसरी चीजों का रेट फिक्स किया गया है। दवाइयों की भी कीमत तय है। लेकिन, कई बार कोरोना मरीजों को रेमदिसिविर जैसी प्रयोगात्मक दवाएं भी दी जाती हैं, जिनके रेट काफी अधिक होते हैं। पीपीई किट और दूसरे सामानों के रेट भी ज्यादा हैं, जिनका खर्च मरीज से वसूला जाता है। कुछ बीमा कंपनियां इन्हीं दवाइयों और खर्चों का भुगतान नहीं कर रही हैं। उनकी तरफ से सरकार के स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल की दुहाई दी जाती है। कहा जाता है कि कोविड-19 के इलाज में ये सरकारी नियमों से अलग खर्च हुआ है। वहीं, अस्पताल कैश वाले मरीजों पर तो यह प्रोटोकॉल लागू कर रहे हैं, लेकिन बीमा वाले मरीजों पर पूरी तरह लागू नहीं हो रहा, जबकि बीमा कंपनी फिक्स रेट का भुगतान कर रही है।

गाजियाबाद में अस्पताल और बीमा कंपनी वसूल रहे अधिक पैसा
कोरोना काल में अस्पताल और बीमा कंपनी मरीजों से अवैध वसूली कर रही है। कैशलेस पॉलिसी होने के बावजूद लोगों को बिना अतिरिक्त शुल्क दिए अस्पताल से पीछा नहीं छूट रहा है। ऐसे में लोग प्रीमियल की मोटी किश्त देने के बावजूद अपने को लुटा महसूस कर रहे हैं।

कविनगर निवासी बृजभूषण जैन 2 अगस्त को शहर के एक निजी अस्पताल में भर्ती हुए। 9 अगस्त को उनका बिल 1,44,900 रुपये का बना। बीमा कंपनी ने 69,842 रुपये काट लिए। इनमें 40 हजार रुपये तो केवल दवा के थे। भारत भूषण को कैशलेस पॉलिसी होने के बावजूद अतिरिक्त पैसा देना पड़ा। इसी तरह गोल्फ लिंक में रहने वाले पति-पत्नी अस्पताल में भर्ती हुए। पति का बिल 1,96,925 रुपये बना। इसमें से 1,58,320 रुपये की पास हुआ। वहीं, पत्नी का बिल 1,96,786 रुपये का बना, लेकिन इंश्योरेंस कंपनी ने मात्र 60,000 ही पास किए। मरीज को पूरे 1,23,537 रुपये जमा करने के बाद ही छुट्टी मिली।

इस मामले में कोई भी निजी अस्पताल कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। उनका कहना है कि इलाज से पहले इंश्योरेंस कंपनी से प्री-अप्रुवल ली जाती है। उसके बाद बिल भेजा जाता है। अब कंपनी उसमें कितना बिल देती है यह उनके हाथ में नहीं है। इतना ही नहीं पॉलिसी धारक और बिना पॉलिसी धारक का एक ही बीमारी के इलाज का बिल भी अलग-अलग होता है। बिल में बताया जाता है कि इलाज कोविड-19 के नियमों के तहत किया गया।

नोएडा में मरीज और अस्पताल दोनों परेशान
स्वास्थ्य बीमा से नोएडा के निजी अस्पतालों में कोरोना संक्रमण के इलाज को लेकर मरीज और अस्पताल प्रबंधन को परेशानी आ रही है। हालांकि इस तरह के मामले काफी कम हैं, जिसमें तकनीक खामियां बताई जा रही हैं। ग्रेटर नोएडा वेस्ट के एक कोविड अस्पताल के अनुसार, अस्पताल में इलाज कराने वाले कई ऐसे मरीज हैं, जिन्हें इलाज के बाद बीमा कंपनी ने राशि नहीं दी। उन्हें इलाज में आया खर्च नकद देना पड़ा। ग्रेटर नोएडा स्थित एक अस्पताल के प्रवक्ता ने कहा कि अब भी बीमा कंपनियां सरकार की बात नहीं मान रही हैं, जिससे 7-8 मरीजों को इलाज का खर्च खुद देना पड़ा। बीमा कंपनी ने राशि का भुगतान नहीं किया।

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