Hindi Newsबिज़नेस न्यूज़Amartya Sen said Government not paying attention to essential and basic issues

जरूरी एवं बुनियादी मुद्दों पर ध्यान नहीं दे रही सरकार: अमर्त्य सेन

नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन का कहना है कि भारत में जरूरी एवं बुनियादी मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। भारत में तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के बावजूद शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र...

जरूरी एवं बुनियादी मुद्दों पर ध्यान नहीं दे रही सरकार: अमर्त्य सेन
नई दिल्ली| एजेंसी Sun, 8 July 2018 11:00 PM
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नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन का कहना है कि भारत में जरूरी एवं बुनियादी मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। भारत में तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के बावजूद शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र पर ध्यान कम है। नोबेल पुरस्कार विजेता ने कहा कि 20 साल पहले दक्षिण एशिया के देशों में भारत श्रीलंका के बाद दूसरा बेहतरीन देश था, लेकिन अब यह दूसरा सबसे खराब देश है।  नोबेल पुरस्कार से सम्मानित इस प्रख्यात अर्थशास्त्री ने अपनी पुस्तक ‘भारत और उसके विरोधाभास’ को जारी करने के अवसर पर यह बात कही। 

गर्व के साथ आलोचना भी जरूरी 
सेन ने कहा, जब हमें भारत में कुछ अच्छी चीजों के होने पर गर्व होता है तो हमें साथ ही उन चीजों की भी आलोचना करनी चाहिए, जिनके कारण हमें शर्मिंदा होना पड़ता है। उन्होंने कहा, अगर हम स्वास्थ्य सुविधाओं के बारे में बात करें, तो भारत आर्थिक रूप से आगे होने के बावजूद इस क्षेत्र में बांग्लादेश से भी पीछे है, और इसका प्रमुख कारण भारत में सार्वजनिक कार्रवाई में कमी है। 

सरकार मुद्दों की अनदेखी कर रही 
अर्थशास्त्री ने कहा कि सरकार ने असमानता एवं जाति व्यवस्था के मुद्दों की अनदेखी कर रखी है तथा अनुसूचित जनजातियों को अलग रखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों के समूह है जो शौचालय और मैला हाथों से साफ करते हैं। उनकी मांग एवं जरूरतों की अनदेखी की जा रही है। 

असमानता दूर करने को वैश्विक स्तर की शिक्षा दे सरकार : द्रेज
 प्रख्यात विकासवादी अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने कहा है कि भारत में सामाजिक असमानता दूर करने के लिए वैश्विक स्तर की शिक्षा बहुत ही जरूरी है। उन्होंने इसके लिए मोदी सरकार को आर्थिक विकास के लिए संकीर्ण रुख से बाहर निकलकर व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की सलाह दी। द्रेज के मुताबिक केंद्र सरकार का शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे अहम जिम्मेदारियों पर ध्यान कम है। सरकार ने अपनी जिम्मेदारियों को कारपोरेट और राज्यों के हवाले कर दिया है। एक बार फिर से प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में बिना किसी प्रमुख पहल के पांच साल बीत गए हैं। 

नोटबंदी से गरीब बुरी तरह प्रभावित
आर्थिक रूप से कमजोर लोग नोटबंदी से बहुत बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। ग्रामीण मजदूरी की दर कम या ज्यादा स्थिर हो गई है। देश में महिला कार्यबल की हिस्सेदारी यहां दुनिया में सबसे कम है। द्रेज ने तेजी से आर्थिक विकास जनता के लिए पर्याप्त रोजगार और आय के अवसर पैदा करने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि नोटबंदी के बावजूद अर्थव्यवस्था किसी तरह से 7.5 प्रतिशत वृद्धि रूझान के आसपास वृद्धि हासिल करने में सफल रही है। पिछले 15 साल अर्थव्यवस्था इसी स्तर के आसपास वृद्धि हासिल करती रही है। इस दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में मेहनताना दरें वास्तव में कमोबेश स्थिर रही हैं। 


 

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