एलपीजी के बाद पेट्रोल-डीजल के दाम में कटौती के आसार, इन 5 कारणों से मिल सकती है राहत
Petrol Price: पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कटौती का दबाव इसलिए भी बढ़ चुका है, क्योंकि ऑयल मार्केटिंग कंपनिया जिस नुकसान की बात कर रही थी, उसकी भरपाई हो चुकी है और मुनाफे में आ गई हैं।

Petrol-Diesel Outlook: अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में अस्थिरता के बावजूद घरेलू स्तर पर पेट्रोल-डीजल की कीमतों में एक साल से अधिक समय से कोई बदलाव नहीं हुआ है। जानकारों का कहना है कि केंद्र के कर राजस्व में बढ़ोतरी और कच्चे तेल की कीमतों में नरमी से अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले तेल की कीमतों में कटौती के आसार बन सकते हैं। तेल कंपनियां लोगों का राहत देने पर बड़ा फैसला ले सकती हैं।
कच्चे तेल की कीमतों में तेज उतार-चढ़ाव जारी
वैश्विक स्तर पर कई भू-राजनीतिक संकटों के चलते कच्चे तेल की कीमतों में तेज उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है। यूक्रेन-रूस युद्ध के चलते कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से अधिक हो गई थीं लेकिन बाद में यह संभलकर 90 डॉलर प्रति बैरल के नीचे स्थिर हो गईं। वर्ष 2023 की पहली तिमाही तक कीमतें 80 डॉलर प्रति बैरल से कम हो गईं।
इसके बाद जुलाई-सितंबर तिमाही के दौरान कीमतों में 30 प्रतिशत का उछाल देखा गया। यह तेजी सऊदी अरब और रूस की तरफ से कच्चे तेल के उत्पादन और आपूर्ति में कटौती किए जाने के बाद आई। इससे कीमत 100 डॉलर के करीब पहुंच गई।
हालांकि, बाद में रूस ने उत्पादन बढ़ाया, जिसके बाद कीमतें 85 डॉलर प्रति बैरल के आसपास पहुंची। वहीं, हाल के इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के कारण कीमतों के 100 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पार करने की आशंका पैदा हो गई थी, लेकिन फिलहाल कीमत 80 डॉलर प्रति बैरल के आसपास बनी हुई है।
तेल से मिले राजस्व का गणित
केंद्र और राज्य सरकारों को शुल्क, उपकर, रॉयल्टी और वैट के माध्यम से तेल से राजस्व प्राप्त होता है। केंद्र को सार्वजनिक तेल विपणन कंपनियां (ओएमसी) से लाभांश के साथ ही कॉर्पोरेट/आयकर भी प्राप्त होता है। वित्त वर्ष 2023 में केंद्र को 4.3 लाख करोड़ रुपये प्राप्त हुए, जबकि राज्यों को 3.5 लाख करोड़ प्राप्त हुए।
पिछले कुछ वर्षों में उत्पाद शुल्क और वैट दरों में बढ़ोतरी से वित्त वर्ष 2019 से 2023 के बीच सरकार का राजस्व 30 फीसदी से अधिक बढ़ा है। वित्त वर्ष 2023 में केंद्र के कुल राजस्व में पेट्रोलियम पदार्थों का हिस्सा 17.5% से अधिक था, जबकि राज्यों के लिए यह 15% फीसदी था।
कंपनियां पर कटौती का दबाव
पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कटौती का दबाव इसलिए भी बढ़ चुका है, क्योंकि तेल विपणन कंपनियां जिस नुकसान की बात कर रही थी, उसकी भरपाई हो चुकी है और मुनाफे में आ गई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि कच्चे तेल में तेजी के दौरान कंपनियों ने पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बढ़ाए थे, लेकिन कीमतें कम होने और मुनाफे में आने के बाद भी पेट्रोल-डीजल पर राहत नहीं दी गई है। इसलिए कंपनियां कटौती का फैसला ले सकती हैं। वहीं, यदि कच्चे तेल के दाम बढ़ते हैं तो कंपनियां इसका बोझ लोगों पर नहीं डालेंगी और खुद उच्च लागत को वहन करेंगी।
चुनाव से पहले मिल सकती है राहत
विशेषज्ञों का कहना है कि अस्थिर भू-राजनीतिक परिदृश्य और तेल उत्पादकों देशों के कड़े रुख के बावजूद आने वाले समय में तेल की कीमतों में उछाल की उम्मीद नहीं है। यही नहीं, चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में सरकार के कर राजस्व में 16 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। लक्ष्य 10 फीसदी का था। इससे सरकार पर अधिक पूंजी जुटाने या अन्य तरीकों से घाटे की भरपाई करने का दबाव कम है।
अगस्त में घरेलू एलपीजी की कीमत में कटौती के बाद अक्टूबर में भी छूट बढ़ाई थी। इससे संकेत मिलता है कि सरकार पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कटौती के खिलाफ नहीं है। अगले साल आम चुनाव से पहले तेल कंपनियां दाम घटा सकती हैं।
केंद्रीय मंत्री ने भी दिए थे संकेत: हाल ही में केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी आने का संकेत दिया था। उनका कहना था कि केंद्र सरकार राज्य सरकारों को ईंधन की कीमतें कम करने के प्रयास में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
ये पांच कारक
1. कच्चे तेल के दाम में बढ़ोतरी के आसार नहीं
2. प्रमुख ल कंपनियों ने मुनाफा कमाया
3. खुदरा और थोक महंगाई में नरमी आई
4. सरकार ने डीजल पर विंडफॉल टैक्स घटाया
5. घरेलू एलजीपी सिलेंडर की कीमतों में कटौती
