Hindi Newsबिज़नेस न्यूज़10 budgets that changed direction of India

वो 10 बजट जिन्होंने बदल दी भारत की दिशा

1950-51:भारतीय गणतंत्र की स्थापना के बाद पहला बजट कांग्रेस सरकार में वित्त मंत्री ने 28 फरवरी 1950 को पेश किया था। इस बजट में योजना आयोग की स्थापना का वर्णन किया था। जॉन मथाई ने गणतंत्र भारत का...

Drigraj Madheshia लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीWed, 22 Jan 2020 01:50 PM
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1950-51:भारतीय गणतंत्र की स्थापना के बाद पहला बजट कांग्रेस सरकार में वित्त मंत्री ने 28 फरवरी 1950 को पेश किया था। इस बजट में योजना आयोग की स्थापना का वर्णन किया था। जॉन मथाई ने गणतंत्र भारत का पहला बजट पेश किया। अलावा स्वतंत्रता के बाद उच्च मुद्रास्फीति, पूंजी की बढ़ी लागत, कम स्तर पर बचत, निवेश और उत्पादन का कम स्तर जैसी चीजों को भी चिह्नित किया गया था।

1957: कांग्रेस सरकार में तत्कालीन वित्त मंत्री टी टी कृष्णामाचारी ने 15 मई 1957 को यह बजट पेश किया। आयात के लिए लाइसेंस जरूरी कर दिया गया। नॉन-कोर प्रोजेक्ट्स के लिए बजट का आवंटन (बजटरी एलोकेशन) वापस ले लिया गया। निर्यातकों को सुरक्षा देने के नजरिए से एक्सपोर्ट रिस्क इंश्योरेंस कार्पोरेशन के गठन का फैसला। वेल्थ टैक्स लगाया गया। एक्साइज को 400 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया। ऐक्टिव इन्कम (सेलरी और बिजनेस) और पैसिव इन्कम (ब्याज और भाड़ा) में फर्क करने की प्रथम कोशिश हुई। आयकर को बढ़ा दिया गया। 

1958-59 : देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने बजट पेश किया उस समय वित्त मंत्रालय उनके पास था। ऐसा करने वाले वे देश के पहले प्रधानमंत्री बने। इंदिरा गांधी ने भी प्रधानमंत्री रहते बजट पेश किया। उस समय तक बजट पेश करने वाली और वित्त मंत्री का पद संभालने वाली वे देश की इकलौती महिला थीं। इसके बाद निर्मला सीतारमण दूसरी ऐसी महिला हैं जो बजट पेश कर चुकी हैं।


1968: वित्त मंत्री मोरारजी देसाई ने 29 फरवरी 1968 को बजट पेश किया। वस्तुओं के निर्माताओं को फैक्टरी गेट पर ही आबकारी विभाग द्वारा मूल्यांकन कराने और स्टांप की अनिवार्यता को खत्म कर दिया गया और उत्पादकों के लिए स्वयं-मूल्यांकन का सिस्टम तैयार किया गया। यही सिस्टम अब भी जारी है। इस बजट से उत्पादकों को हौसला मिला, जो भविष्य में चलकर भारत के लिए विकास के लिए अच्छा कदम साबित हुआ।

1973: वित्त मंत्री यशवंतराव बी चव्हाण ने 28 फरवरी 1973 को यह बजट पेश किया। सामान्य बीमा कंपनियों, भारतीय कॉपर कॉर्पोरेशन और कोल माइन्स के राष्ट्रीयकरण के लिए 56 करोड़ रुपए मुहैया कराए गए। 1973-73 के लिए बजट में अनुमानित घाटा 550 करोड़ रुपए का था। कहा जाता रहा है कि कोयले की खदानों के राष्ट्रीयकरण किए जाने से लंबी अवधि के नजरिए से बुरा प्रभाव पड़ा। कोयले पर पूरा अधिकार सरकार का हो गया और इससे बाजार में कंपीटिशन के लिए कोई जगह नहीं बची। इसके अलावा उत्पादन और इसकी नई तकनीक के लिए भी ज्यादा जगह नहीं बन सकी। 

1986:कांग्रेस सरकार के तत्कालीन वित्त मंत्री वीपी सिंह ने 28 फरवरी 1986 को बजट पेश किया। माल की अंतिम कीमत पर करों के व्यापक प्रभाव को कम करने के नजरिए से MODVAT क्रेडिट लाया गया। इसमें कच्चे माल पर किए गए कर भुगतान की राशि को अंतिम उत्पाद पर कर से हटा दिया गया। उत्पादों की क्षतिपूर्ति के लिए यह योजना लागू की गई। अप्रत्यक्ष करों के संदर्भ में सुधार को लेकर यह एक बड़ा कदम था।

1987: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 28 फरवरी 1987 को केंद्रिय बजट पेश किया। न्यूनतम निगम कर के संबंध में एक अहम फैसला लिया गया। न्यूनतम निगम कर, जिसे आज एम.ए.टी (MAT) या मिनिमम अल्टर्नेट टैक्स (Minimum Alternate Tax) के नाम से जाना जाता है को लाया गया। इसका मुख्य उद्देश्य उन कंपनियां को टैक्स की सीमा में लाना था जो भारी मुनाफा कमाती थीं और टैक्स देने से बचती थीं। 

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1991: 24 जुलाई 1991 को भारत के तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने यह बजट पेश किया। आयात-निर्यात पॉलिसी में काफी सुधार किया गया. आयात के लिए लाइसेंस की प्रक्रिया को आसान बनाया गया। अधिक से अधिक निर्यात करने और आयात को जरूरत के हिसाब से रखने पर योजना बनी, ताकि भारत को विदेशों से कंपीटिशन मिले। सीमा शुल्क 220 प्रतिशत से घटाकर 150 प्रतिशत कर दिया गया, जो एक बड़ा बदलाव था। 

1997: वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने 28 फरवरी 1997 को यह बजट पेश किया। लोगों और कंपनियों के लिए अब तक चल रहे टैक्स में बदलाव किया गया। कंपनियों को पहले से भुगते गए एम.ए.टी को आने वाले सालों में कर देनदारियों में समायोजित करने की छूट दे दी गई। वोलेंटरी डिस्कलोजर ऑफ इन्कम स्कीम (VDIS) स्कीम लांच की गई ताकि काले धन को बाहर लाया जा सके।

2000: एनडीए सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने 29 फरवरी 2000 को बजट पेश किया।1991 के बजट में मनमोहन सिंह ने सॉफ्टवेयर निर्यातकों को टैक्स मुक्त रखा था। यशवंत सिन्हा ने भी इसी क्रम को जारी रखा। मनमोहन सिंह ने विश्व में भारत को एक सॉफ्टवेयर केंद्र के तौर पर विकसित करने के नजरिए से सॉफ्टवेयर निर्यातकों को छूट दी थी। इससे भारत की सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री को जबरदस्त बू‍म मिला। भारत यदि सॉफ्टवेयर बाजार में एक बड़े खिलाड़ी के तौर पर जाना जाता है कि इसका श्रेय मनमोहन सिंह के साथ ही यशवंत सिन्हा को भी जाता है।

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