इनकम टैक्स रिटर्न यानी आईटीआर एक प्रकार का फॉर्म होता है, जिसमें आपकी आय की सभी जानकारी भरी होती है। अभी 7 तरह के आईटीआर फार्म मौजूद हैं। कंपनी या फिर व्यक्ति को आईटीआर फाइल करने की एक निश्चित डेट तय होती है, लेकिन विशेष परिस्थितियों में सरकार इनकम टैक्स भरने की तारीख आगे भी बढ़ा सकती है।
भारत सरकार के इनकम टैक्स डिपार्टमेंट (Income Tax Department) को जमा किए जाने वाले फॉर्म को इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) कहते हैं। इस फॉर्म में जमा करने वाले व्यक्ति की इनकम और उस पर लगने वाले टैक्स की जानकारी होती है। इनकम टैक्स रिटर्न फॉर्म के जरिए एक व्यक्ति किसी वित्त वर्ष (1 अप्रैल से 31 मार्च तक) के दौरान अपनी कमाई और टैक्स का ब्योरा देता है।
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के अनुसार 7 प्रकार के आईटीआर फॉर्म होते हैं। ITR-1, ITR-2, ITR-3, ITR-4, ITR-5, ITR-6, ITR-7। किसी व्यक्ति को कौन सा फॉर्म भरना होगा यह इनकम और उसके नेचर पर निर्भर करेगा।
डिजिटलाइज होती दुनिया में सब कुछ धीरे-धीरे टेक्नोलॉजी फोकस्ड होता जा रहा है। यही वजह है कि टैक्सपेयर्स भी अब घर बैठे अपना इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) फाइल कर सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले इनकम टैक्स डिपार्टमेंट (Income Tax Department) की वेबसाइट पर जाकर लॉग इन करना होगा। टैक्स पेयर्स ITR फाइल करने से पहले फाइनेंशियल ईयर में की गई कमाई, आधार नंबर और पैन डीटेल्स की जानकारी कलेक्ट कर लें।
वैलिडेशन के अब वैरिफिकेशन करना होगा। यह आधार ओटीपी, नेट बैंकिंग आदि के जरिए किया जा सकता है। इसके अलावा, टैक्स पेयर्स फाइलिंग के 120 दिन के अंदर बेंगलुरु स्थित इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में पोस्ट के जरिए प्रिंट आउट फॉर्म भेजकर अपना वैलिडेशन करवा सकते हैं।
यूजर्स, इनकम टैक्स रिटर्न्स (ITR) फॉर्म्स को डाउनलोड भी कर सकते हैं। इनकम टैक्स रिटर्न्स फॉर्म्स को डाउनलोड करने के लिए आपको इन स्टेप्स को फॉलो करना होगा।
अलग-अलग कैटेगरीज के लोगों की टैक्स लायबिलिटी दिखाने वाले फॉर्म अलग-अलग हैं। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की वेबसाइट से ITR 1 (सहज), ITR 2, ITR 2A, ITR 3, ITR 4, ITR 4S (सुगम), ITR 5, ITR 6 और ITR 7 को डाउनलोड किया जा सकता है। यह फॉर्म इंडीविजुअल्स, अनडिवाइडेड हिंदू फैमिली (HUF) और कंपनियों के लिए हैं। इसके अलावा, अगर आप अपने इनकम टैक्स रिटर्न को ई-वैरिफाई नहीं कर पाते हैं तो आप ITR-V डाउनलोड करके और इसे साइन करने के बाद इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को भेज सकते हैं। आप कुछ इस तरह से ITR-V फॉर्म को डाउनलोड कर सकते हैं।
इनकम टैक्स एक्ट 1961 के सेक्शन 139(1) के मुताबिक, किसी कंपनी को छोड़कर बाकी सभी एसेसीज के लिए संबंधित एसेटमेंट ईयर (AY) में इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) फाइल करने की ड्यू डेट 31 जुलाई है। मतलब यह है कि सैलरी से इनकम पाने वाले ज्यादातर इंडीविजुअल्स, स्मॉल बिजनेस और प्रोफेशनल्स के लिए किसी भी एसेसमेंट ईयर के लिए ITR फाइल करने की तय तारीख 31 जुलाई है।
निर्धारित तारीख के बाद फाइल किए जाने वाले रिटर्न को बिलेटेड रिटर्न कहते हैं। इनकम से जुड़े बिलेटेड रिटर्न इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 139 (4) के तहत फाइल किए जाते हैं। ऐसे रिटर्न संबंधित एसेसमेंट ईयर खत्म होने के तीन महीने पहले किसी समय भी समय फाइल किए जा सकते हैं। यानी, बिलेटेड रिटर्न को 31 दिसंबर से पहले फाइल किया जा सकता है, जो कि एसेसमेंट ईयर खत्म होने के 3 महीने पहले है।
बिलेटेड रिटर्न, 31 जुलाई तक फाइल किए जाने वाले रेगुलर रिटर्न से अलग होता है। दूसरी लिमिटेशंस के अलावा, इसमें लॉस के कैरी फॉरवर्ड की इजाजत नहीं मिलती है। इसके अलावा, इसमें इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 234 F के तहत लेट फाइलिंग फीस लगती है। अगर रिपोर्ट की जाने वाली टोटल इनकम 5 लाख रुपये से अधिक है तो 5000 रुपये की लेट फाइलिंग फीस लगती है। वहीं, अगर व्यक्ति की टोटल इनकम 5 लाख रुपये से कम है तो 1,000 रुपये तक लेट फीस लग सकती है। हालांकि, अगर आप वॉलन्टरी रिटर्न फाइल करते हैं तो आपको ड्यू डेट के बाद भी कोई लेट फीस नहीं देनी होगी।
केंद्र सरकार ने नौकरीपेशा लोगों को ध्यान में रखकर साल 2020 में न्यू टैक्स स्ट्रक्चर को लॉन्च किया था। यह उन टैक्सपेयर्स के लिए अच्छा विकल्प है जो सेविंग्स नहीं कर पाते हैं। पहले इसे ऑप्शनल के तौर पर पेश किया गया था। टैक्सपेयर्स अपनी मर्जी से इस टैक्स स्ट्रक्चर में स्विच कर सकते थे, लेकिन साल 2023 के आम बजट में वित्त मंत्री ने इसमें बदलाव किया है। अब नए वित्त वर्ष से आप खुद-ब-खुद न्यू टैक्स स्ट्रक्चर में आ जाएंगे। वहीं, ओल्ड टैक्स स्ट्रक्चर में जाने के लिए आपको विकल्प का चयन करना होगा। न्यू टैक्स स्ट्रक्चर का चयन करने पर 7 लाख रुपये तक की सालाना इनकम पर रीबेट मिलेगा। मतलब आपकी कमाई 7 लाख रुपये तक है तो टैक्स के झंझट से मुक्त रहेंगे। जैसे ही आपकी सालाना इनकम 7 लाख रुपये से अधिक होती है तो आपको टैक्स देने पड़ेंगे। न्यू टैक्स स्ट्रक्चर में स्टैंडर्ड डिडक्शन को भी शामिल किया गया है। हालांकि, डिडक्शन का फायदा उन टैक्सपेयर्स को मिलेगा जिनकी सालाना इनकम 15.5 लाख रुपये या अधिक है। इस कमाई वर्ग के लोग स्टैंडर्ड डिडक्शन के तहत 52,500 रुपये तक का फायदा ले सकते हैं। न्यू टैक्स स्ट्रक्चर उन टैक्सपेयर्स के लिए बहुत सही विकल्प नहीं है जो टैक्स बचाने के लिए अलग-अलग स्कीम्स या फंड में निवेश करते हैं। अगर आप टैक्स बचाने के लिए निवेश पर जोर देते हैं तो आपके लिए अब भी ओल्ड टैक्स स्लैब ही बेहतर है।
आम आदमी के जीवन को इनकम के साथ टैक्स भी प्रभावित करता है। वर्तमान में टैक्स की दो प्रणाली हैं। पहली प्रणाली को ओल्ड टैक्स स्लैब कहा जाता है। वहीं, साल 2020 में सरकार ने एक नया टैक्स स्लैब शुरू किया था। टैक्सपेयर्स के लिए ये दोनों स्लैब मान्य हैं।
ओल्ड स्लैब के तहत 2.5 लाख तक की सालाना इनकम पर जीरो टैक्स लगता है। वहीं, 2.5-5 लाख तक की सालाना इनकम पर 5% का टैक्स स्लैब है। इसके अलावा, 5-10 लाख तक की सालाना इनकम पर 20% का टैक्स स्लैब और 10 लाख से ज्यादा की सालाना इनकम पर 30% का टैक्स स्लैब लागू है।
नए स्लैब का स्ट्रक्चर: वहीं, नए स्लैब के तहत 2.5 लाख से पांच लाख रुपये तक की इनकम पर 5% टैक्स देना होगा। इसी तरह, 5 से 7.5 लाख रुपये तक 10% और 7.5 लाख से 10 लाख रुपये तक की इनकम को 15% के टैक्स स्लैब के दायरे में रखा गया है। वहीं, 10 से 12.5 लाख रुपये तक 20%, 12.5 लाख से 15 लाख रुपये तक की इनकम को 25% के स्लैब में रखा गया है। इसके अलावा 15 लाख रुपये से ज्यादा इनकम पर 30% टैक्स लगता है।
नौकरीपेशा लोगों के लिए इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करना जरूरी है। हम आपको इनकम टैक्स के कुछ सेक्शन के बारे में बता रहे हैं, जिसके जरिए आप टैक्स बचा सकते हैं। उदाहरण के लिए सेक्शन 80C इनकम टैक्स कानून, 1961 का हिस्सा है। इसके तहत अपनी कुल टैक्स योग्य आय से 1,50,000 रुपये तक कम कर सकते हैं। वहीं, सेक्शन 80D चिकित्सा खर्च पर कटौती के लिए है। वहीं, स्वयं / परिवार के लिए भुगतान किए गए प्रीमियम के लिए धारा 80 D कटौती की सीमा 25 हजार रुपये है। अगर किसी विकलांग व्यक्ति के इलाज पर आप खर्चा कर रहे हैं तो सेक्शन 80DD के तहत टैक्स छूट पा सकते हैं। इस सेक्शन के तहत कुल कटौती की सीमा 1.5 हजार रुपये तक है। वहीं, सेक्शन 80E एजुकेशन लोन पर ब्याज में कटौती प्रदान करता है।
इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते वक्त टैक्सपेयर्स के मन में ये सवाल रहता है कि कैसे ज्यादा से ज्यादा टैक्स बचाया जा सकता है। टैक्स बचाने की बात हो तो इनकम टैक्स के सेक्शन 80C का जिक्र जरूर होता है। दरअसल, यह इनकम टैक्स कानून-1961 का हिस्सा है। इस सेक्शन के जरिए आप निवेश करके इनकम टैक्स में छूट का दावा कर सकते हैं। इसकी लिमिट 1.5 लाख रुपये की होती है। मतलब ये कि आप निवेश के जरिए अपनी कुल टैक्स योग्य इनकम से 1,50,000 रुपये तक कम कर सकते हैं।
जानकारी के लिए यहां बता दें कि टैक्स सेविंग के लिए आपको निवेश के कई विकल्प मिलते हैं। सेक्शन 80सी के तहत ईपीएफ, पीपीएफ, सुकन्या समृद्धि योजना, नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट, 5 साल की फिक्स्ड डिपॉजिट स्कीम में निवेश पर टैक्स छूट के लिए क्लेम किया जा सकता है। इसके अलावा, इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम, म्यूचुअल फंड, नेशनल पेंशन सिस्टम, अटल पेंशन योजना, सीनियर सिटीजन सेविंग स्कीम में भी निवेश कर टैक्स छूट का लाभ ले सकते हैं। वहीं, एक टैक्सपेयर सेक्शन 80सी के तहत अपने दो बच्चों की स्कूल फीस, एलआईसी या अन्य इंश्योरेंस प्रीमियम जैसे खर्च के बदले भी टैक्स में छूट पाने के लिए दावा कर सकता है।
यही नहीं, अगर आपने होम लोन लिया है, तो उसके मूलधन का भुगतान भी सेक्शन 80C के तहत टैक्स लाभ के योग्य होता है। आपको बता दें कि सेक्शन 80C के तहत निवेश पर मिलने वाली छूट का फायदा केवल ओल्ड टैक्स व्यवस्था के जरिए लिया जा सकता है। वहीं, नई टैक्स प्रणाली में इसका लाभ टैक्सपेयर्स को नहीं दिया गया है।
इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) फाइल करते समय हर व्यक्ति का मकसद टैक्स सेविंग होता है। इसके लिए आयकर अधिनियम 1961 के अलग-अलग सेक्शन में कई ऐसे उपाय बताए गए हैं, जिसका इस्तेमाल करके आप टैक्स की बचत कर सकते हैं। आयकर अधिनियम का ऐसा ही एक सेक्शन 80GG है। अगर आपको हाउस रेंट अलाउंस यानी HRA नहीं मिलता है लेकिन किराये के मकान में रहते हैं, तब टैक्स छूट के लिए क्लेम कर सकते हैं। इसके तहत टैक्सपेयर को सालाना 60,000 रुपये या प्रति माह 5000 रुपये तक की राहत मिल सकती है। हालांकि, आपके या आपकी बीवी/बच्चे के पास खुद का घर है तो इस टैक्स छूट का लाभ नहीं ले पाएंगे।
इस सेक्शन के जरिए नौकरीपेशा या अपना बिजनेस करने वाला हर शख्स टैक्स छूट के लिए क्लेम कर सकता है, बशर्ते हाउस रेंट अलाउंस यानी HRA नहीं मिलता हो। क्लेम के लिए दावा करना है तो आपको 10BA फॉर्म भरना होगा। फॉर्म में पैन नंबर, एड्रेस, रेंट पेमेंट की रकम के अलावा मकान मालिक का नाम और पता भी देना जरूरी है। अगर वित्त वर्ष के दौरान किराया 1 लाख रुपये से ज्यादा है तो मकान मालिक का पैन नंबर देना जरूरी है। वहीं, इस बात का डिक्लेरेशन देना होगा कि आप या आपकी पत्नी/बच्चे के नाम कोई घर नहीं है। आपको 10BA फॉर्म डाउनलोड करने के लिए इनकम टैक्स की आधिकारिक वेबसाइट पर विजिट करना होगा।
अगर आप इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने जा रहे हैं तो इसके लिए कुछ डॉक्युमेंट जरूरी हैं। ये जरूरी डॉक्युमेंट पैन कार्ड, आधार कार्ड, बैंक अकाउंट डिटेल हैं। अकाउंट डिटेल में आपको बैंक का नाम, अकाउंट नंबर, अकाउंट का प्रकार और आईएफएससी कोड देना होगा। इसके अलावा, आपको कंपनी की ओर से दिए जाने वाले फॉर्म 16 की भी जरूरत पड़ेगी। इसमें कर्मचारी की सैलरी और टैक्स कटौती की डिटेल होती है। आपको फॉर्म 26AS की भी जरूरत पड़ सकती है। इस फॉर्म के जरिए आय पर लगे टैक्स की पूरी डिटेल जान सकते हैं। इसे आयकर विभाग की वेबसाइट से डाउनलोड कर सकते हैं। आप चाहें तो फॉर्म 16 और फॉर्म 26AS के टैक्स डिडक्शन की डिटेल का मिलान कर सकते हैं।
इसी तरह, आपको आईटीआर फाइल के वक्त निवेश से जुड़े डॉक्युमेंट की जरूरत पड़ती है। इसमें एलआईसी प्रीमियम की रसीद के अलावा पीपीएफ-सुकन्या जैसी टैक्स सेविंग स्कीम्स में निवेश की डिटेल शामिल हैं। इसके जरिए आप टैक्स छूट का क्लेम कर सकते हैं। वहीं, आपको इनकम के प्रूफ भी रखने की जरूरत पड़ेगी। फिक्स्ड डिपॉजिट या किसी अन्य स्कीम से इंटरेस्ट मिल रहा हो तो उसका डॉक्युमेंट रहना चाहिए। होम लोन के री-पेमेंट हो या कहीं दान किया हो तो इससे जुड़े डॉक्युमेंट की भी जरूरत पड़ेगी। इसकी मदद से भी टैक्स सेविंग कर सकते हैं। शेयर या म्यूचुअल फंड्स से कमाई की गई है तो उसके डॉक्युमेंट भी देने पड़ेंगे।
अगर कोई कारोबारी आईटीआर फाइल करने जा रहा है तो उसे कंपनी से जुड़े डॉक्युमेंट की जरूरत पड़ेगी। आपको बता दें कि आईटीआर फाइल करने के लिए पैन और आधार का लिंक होना जरूरी है। अगर दोनों डॉक्युमेंट की लिंकिंग नहीं है तो आप आईटीआर फाइल नहीं कर सकते हैं।
इनकम टैक्स रिटर्न फाइलिंग का आखिरी स्टेप ई-वेरिफिकेशन होता है। अगर इससे चूक गए तो रिटर्न फाइलिंग की आपकी सारी मेहनत बेकार हो सकती है। हालांकि, आयकर विभाग की ओर से ITR ई-वेरिफिकेशन के लिए कुछ समय भी दिया जाता है। आप इस अवधि में 6 तरीकों में से किसी एक के जरिए ई-वेरिफिकेशन कर सकते हैं। आयकर विभाग की वेबसाइट पर दी जानकारी के मुताबिक आधार के साथ रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर ओटीपी के जरिए ई-वेरिफिकेशन कर सकते हैं। इसी तरह, आपके बैंक अकाउंट या डीमैट खाते के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक वेरिफिकेशन कोड जनरेट कर ई-वेरिफिकेशन किया जा सकता है। ई-वेरिफिकेशन के तरीके में नेट बैंकिंग या डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाणपत्र भी शामिल है। वहीं, ऑफलाइन तरीके में एटीएम के जरिए इलेक्ट्रॉनिक वेरिफिकेशन कोड जनरेट कर भी इस प्रक्रिया को पूरा कर सकते हैं।
वहीं, आईटीआर स्टेटस देखने के लिए आपको www.incometax.gov.in की वेबसाइट पर विजिट करना होगा। यहां अपने पैन कार्ड की डिटेल डालकर लॉगिन करें। अगले स्टेप में ई-फाइल ऑप्शन आएगा, जिसे क्लिक करने के बाद व्यू फाइल्ड रिटर्न पर विजिट करें। यहां आपको अपने आईटीआर का स्टेटस दिखाई देखा। यहां आप पता कर सकते हैं कि आईटीआर फाइल हुआ है या नहीं। अगर नहीं हुआ है तो इसकी वजह क्या है, इसकी जानकारी भी आपको मिल जाएगी। कई बार ई-वेरिफिकेशन नहीं होने की वजह से आईटीआर फाइलिंग की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाती है। वहीं, आप अपने आईटीआर के रिफंड स्टेटस को भी देख सकते हैं। इसके लिए व्यू डिटेल्स पर क्लिक करना होगा।
अगर आप टैक्स के दायरे में आते हैं तो आपके लिए इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) दाखिल करना, बेहद जरूरी होता है। ITR दाखिल करते वक्त कई बार हम अनजाने में कई गलतियां कर जाते हैं, जिसके कारण आपका आईटीआर रिजेक्ट हो जाता है या आयकर नोटिस का सामना करना पड़ता या फिर रिफंड में देरी हो जाती है। आइए इन गलतियों को विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं। सीए अजय बगड़िया बताते हैं कि सामान्य तौर पर होने वाली गलतियों में से अधिकांश गलतियां Tax Provisions की गलत व्याख्या या अज्ञानता के कारण हैं।
आपका नियोक्ता (जहां आप नौकरी करते हैं) या कोई और टीडीएस (TDS) के रूप में आपका कुछ पैसा काट चुका है और अगर आपकी इनकम कर योग्य नहीं है तो आप इस रकम को पाने के हकदार हैं। इसके लिए आप आईटीआर दाखिल करके रिफंड का दावा कर सकते हैं।
रिफंड टैक्सपेयर्स के खाते में सीधे क्रेडिट किया जाता है। इसके अलावा, चेक या डिमांड ड्राफ्ट के जरिए रिफंड टैक्सपेयर्स के पते पर भेज दिया जाता है। यह इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के बाद ही मिलता है। टैक्स रिफंड विभिन्न स्थितियों से हो सकता है, लेकिन आमतौर पर ऐसा तब होता है जब आप साल के दौरान वास्तव में देय राशि से अधिक कर का भुगतान करते हैं । जैसे अगर आप किसी सर्विस या काम के बदले कमीशन पाते हैं और उस पर टीडीएस कटता है तो आप रिफंड ले सकते हैं। कंपनियां अपने कर्मचारियों की सैलरी से हर महीने कुछ पैसा टैक्स के रूप में काटती हैं और इसे विभाग में जमा करती हैं। आईटीआर दाखिल करते समय इनकम टैक्स रिबेट्स आदि लेने के बाद अगर आपकी सालाना इनकम 5 लाख से कम है तो वह कटा हुआ पैसा रिफंड के रूप में पा सकते हैं।
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की नई व्यवस्था के अनुसार, अब कोई भी टैक्सपेयर रिटर्न भरने के 10 दिनों के बाद रिफंड का स्टेटस चेक कर सकता है। अब ज्यादातर टैक्सपेयर्स को आईटीआर भरने के 2 सप्ताह के अंदर रिफंड का पैसा मिलने लगा है।
अगर आप इनकम टैक्स के दायरे में नहीं भी आते हैं तब भी आपको रिटर्न फाइल करना चाहिए। अगर आप ITR फाइल करते हैं, तो इससे आपको वीजा, बड़े अमाउंट का बीमा लेने, लोन, होम लोन जैसी कई चीजों में सहूलियत मिलती है।
आईटीआर (इनकम टैक्स रिटर्न) के फायदों की बात करें तो आपको टैक्स रिफंड क्लेम करने के लिए ITR दाखिल करना जरूरी है। अगर आपका टीडीएस (TDS) कटता है और आपकी इनकम टैक्सेबल नहीं है तो आप आईटीआर दाखिल कर रिफंड ले सकते हैं।
इसका दूसरा सबसे बड़ा फायदा वीजा लेने में है क्योंकि कई देशों की वीजा अथॉरिटीज, वीजा देने के लिए 3 से 5 साल का ITR मांगते हैं। ITR से आपके फाइनेंशियल स्टेटस का पता चलता है। वहीं, ITR फाइल करने पर एक प्रमाण पत्र मिलता है। आय का रजिस्टर्ड प्रमाण मिलने से क्रेडिट कार्ड, लोन या खुद की क्रेडिट साबित करने में मदद होती है। यह आपकी इनकम का प्रूफ होता है। इसे सभी सरकारी और प्राइवेट संस्थान इनकम प्रूफ के तौर पर स्वीकार करते हैं।
ITR रसीद आपके पंजीकृत पते पर भेजी जाती है, जो एड्रेस प्रूफ के रूप में काम कर सकती है। अगर आप खुद का बिजनेस शुरू करना चाहते हैं तो ITR भरना बहुत जरूरी है। सरकारी विभाग में कॉन्ट्रैक्ट लेने के लिए भी पिछले 5 साल का ITR देना पड़ता है। अगर आप 1 करोड़ रुपए का टर्म प्लान लेना चाहते हैं तो बीमा कंपनियां आपसे ITR मांग सकती हैं।
सीए अजय बगड़िया कहते हैं कि 2.50 लाख से कम आय वाले लोगों को आईटीआर भरने की जरूरत नहीं है। अगर आपकी कुल आमदनी सिर्फ कृषि और उससे जुड़े कार्य से होती है तो आपको आईटीआर भरने की जरूरत नहीं है। वैसे अगर आप नौकरी या कारोबार करते हैं और आपकी कुल सालाना आमदनी 2.5 लाख रुपये से कम है तब भी आप आईटीआर भर सकते हैं।
आयकर विभाग की ओर से अक्सर एक नोटिस जारी किया जाता है, जो कि इनकम टैक्स के सेक्शन 143(1) के तहत भेजा जाता है। 143(1) के तहत आने वाले टैक्स नोटिस को नोटिस ऑफ डिमांड कहा जाता है। यह नोटिस बताता है कि आपकी तरफ से भरा गया रिटर्न सही है या गलत।
इनकम टैक्स रिटर्न करने के दौरान अगर आपने अपनी देनदारी से कम टैक्स भरा हो या आपने अपनी देनदारी से ज्यादा टैक्स भरा हो, या फिर आपने सही टैक्स भरा हो। सीए अजय बगड़िया कहते हैं कि ऐसा नोटिस अक्सर हर टैक्सपेयर के पास आता है।
सीए अजय बगड़िया के मुताबिक अगर आपके पास ऐसा नोटिस नहीं आता है तो आप मान सकते हैं कि आपका रिटर्न प्रोसेस नहीं किया गया है।