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ट्रंप टैरिफ का प्रभाव: चीनी कंपनियां भारत को सस्‍ते दाम में सामान बेचने को तैयार

  • चीनी कंपनियां भारतीय खरीदारों को पांच फीसदी तक की छूट देने की पेशकश कर रही हैं, जिससे यह उम्मीद जगी है कि भारत में इलेक्ट्रॉनिक सामान के दाम कम हो सकते हैं, लेकिन…

Drigraj Madheshia हिन्दुस्तान टीमFri, 11 April 2025 06:01 AM
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ट्रंप टैरिफ का प्रभाव: चीनी कंपनियां भारत को सस्‍ते दाम में सामान बेचने को तैयार

अमेरिका-चीन के बीच बढ़ते ट्रेड टेंशन के बीच चीनी कंपनियों ने अपना माल बेचने के लिए अन्य देशों की तरफ नजरें गढ़ा दी हैं। यही वजह है कि वे भारत को सस्‍ते दाम में सामान बेचने को तैयार हैं। चीनी कंपनियां भारतीय खरीदारों को 5 फीसद तक की छूट देने की पेशकश कर रही हैं, जिससे यह उम्मीद जगी है कि भारत में इलेक्ट्रॉनिक सामान के दाम कम हो सकते हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इस छूट के बावजूद भारत में सस्ते इलेक्ट्रॉनिक सामान की राह इतनी आसान नहीं होगी। इसके पीछे कई आर्थिक, नीतिगत और व्यावहारिक कारण हैं।

चीन से ये कंपोनेंट्स खरीदता है भारत

भारत अभी चीन से बहुत जरूरी इलेक्ट्रॉनिक पुर्जे ही खरीद रहा है। इनमें अलग-अलग उपयोग में आने वाले चिप, कॉपर ट्यूब, टेलिविजन पैनल, सर्किट बोर्ड, बैटरी सेल, डिस्प्ले मॉड्युल, कैमरा मॉड्युल और प्रिंटेड सर्किट आदि शामिल हैं।

माल बेचने की हड़बड़ी में चीनी कंपनियां

अमेरिका ने चीन पर 125 प्रतिशत अतिरिक्त जवाबी शुल्क लगाया है, जो लागू हो गया है। इससे चीनी इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों की बिक्री लगभग असंभव हो गई है। ऐसे में चीनी कंपनियां इलेक्ट्रॉनिक्स पुर्जों (कंपोनेंट्स) पर पांच फीसदी छूट दे रही हैं, जहां प्रॉफिट मार्जिन काफी कम होता है। वैसे भी इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट के रूप में कच्चे माल का भंडार तीन महीने के लिए तैयार रहता है। ऐसे में जितनी लंबे समय तक यह माल कंपनियों के पास पड़ा रहेगा, उनका नुकसान बढ़ता जाएगा। इसलिए चीनी कंपनियों को हड़बड़ी है कि वो जल्द से जल्द भारत में अपनी बिक्री बढाएं ताकि अमेरिका से लगे झटके से कुछ हद तक निपट पाएं।

भारतीय खरीदारों को हो सकती है दिक्कत

विशेषज्ञों का कहना है कि भले ही चीनी इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट कंपनियां बेहद कम मार्जिन पर सामान बेचने के लिए बातचीत कर रही हैं, लेकिन भारतीय खरीदारों को घटी कीमतों पर भी खरीदारी करने की गुंजाइश नहीं है। क्योंकि अमेरिका ने भारत पर भी 26% शुल्क लगाया है।

भले ही इसे 90 दिन के लिए टाला गया है, फिर भी भारतीय कंपनियों को अमेरिका में अपने सामान बेचने में दिक्कत होगी, इसलिए वे सस्ते में कच्चा माल मंगाने में हिचक सकती हैं। वहीं, कच्चे माल का भंडार तीन महीने के लिए तैयार रहता है। इस हिसाब से भारतीय खरीदार इच्छुक होंगे तो वे मई-जून में ही चीनी कंपनियों को ऑर्डर देंगे।

सरकार के गुणवत्ता निर्देश बिलकुल स्पष्ट

देश में सरकार प्रोत्साहन योजना (PLI स्कीम) और गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (QCO) के जरिए भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स पुर्जों के घरेलू उत्पादन पर जोर दे रही है। आयातित इलेक्ट्रॉनिक्स पुर्जों पर गुणवत्ता आदेश भी स्पष्ट हैं। वहीं, भारत में इलेक्ट्रॉनिक सामानों और उनके घटकों पर लगने वाला आयात शुल्क अब भी काफी अधिक है। सरकार भी मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए आयात शुल्क बढ़ा रही है। इससे देश में इन सामान को लाने के बाद लगने वाले आयात शुल्क और जीएसटी लागू होने से कीमतों पर अधिक असर नहीं पड़ेगा।

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रुपये की कमजोरी का भी असर

भारतीय रुपये का मूल्य अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगातार कमजोर होता रहा है। चीनी कंपनियों से घटक खरीदने के लिए भुगतान आमतौर पर अमेरिकी डॉलर में करना पड़ता है। रुपये की कमजोरी के कारण आयात की कुल लागत बढ़ जाती है, जिससे छूट का लाभ निष्प्रभावी हो जाता है। यह स्थिति भी सस्ते इलेक्ट्रॉनिक सामानों की उम्मीद को कमजोर करती है।

क्या कंपनियां ग्राहकों को फायदा देंगी?

मोबाइल फोन बाजार पर नजर रखने वाली संस्था काउंटरपॉइंट रिसर्च के डायरेक्टर तरुण पाठक कहते हैं कि संभव है कि भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स सामान कुछ सस्ते हो जाएं। अब यह कंपनियों पर निर्भर करेगा कि बचत के सारे पैसे वो अपने पास रख लें या फिर ग्राहकों को भी इसका फायदा दें। चूंकि, भारत भी अमेरिकी शुल्क का सामना करना पड़ेगा, इसलिए कंपनियां अपने नुकसान की भरपाई सबसे पहले कर सकती हैं।

सरकार लगा सकती है डंपिंग शुल्क

केंद्र सरकार सस्ते चीनी सामानों के आयात को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने की तैयारी में है। एक सीमा तक सरकार कीमतों में कमी को स्वीकार करेंगी लेकिन उसके बाद सरकार सामान की डंपिंग को रोकने के लिए शुल्क लगा सकती है। अमेरिका द्वारा द्वारा चीन पर भारी टैरिफ लगाए जाने के बाद भारत अपने बाजार को संरक्षित करने की योजना बना रहा है।

अधिकारियों का कहना है कि सस्ते चीनी उत्पादों की बाढ़ से घरेलू उद्योगों को नुकसान हो सकता है, जिसके चलते नीति निर्माता न्यूनतम आयात मूल्य, सुरक्षात्मक शुल्क और अन्य उपायों पर विचार कर रहे हैं। उन बाजारों और वस्तुओं की पहचान की जा रही है, जिन्हें संरक्षण की जरूरत है।

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