
मैं एक टॉपर से बैकबेंचर बन गया... पेटीएम के संस्थापक विजय शेखर शर्मा ने क्यों कही यह बात
संक्षेप: Paytm के संस्थापक विजय शेखर शर्मा ने नेटफ्लिक्स के शो 'द ग्रेट इंडियन कपिल शो' में अपने कॉलेज दिनों का अनुभव शेयर करते हुए कहा कि स्कूल में वे हमेशा टॉपर रहे थे, लेकिन इंजीनियरिंग कॉलेज में पहुंचने के बाद उनकी स्थिति बिल्कुल बदल गई।
Paytm के संस्थापक विजय शेखर शर्मा ने नेटफ्लिक्स के शो 'द ग्रेट इंडियन कपिल शो' में अपने कॉलेज दिनों का अनुभव शेयर करते हुए कहा कि स्कूल में वे हमेशा टॉपर रहे थे, लेकिन इंजीनियरिंग कॉलेज में पहुंचने के बाद उनकी स्थिति बिल्कुल बदल गई। उन्होंने बताया कि जब एक प्रोफेसर ने अंग्रेजी में सवाल पूछा, तो वे जवाब नहीं दे पाए और उन्हें बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। उस दिन के बाद उनका आत्मविश्वास धीरे-धीरे टूटने लगा। जहां पहले वे कक्षा में सबसे आगे बैठते थे, पढ़ाई में हमेशा टॉप करते थे। वहीं, धीरे-धीरे पीछे की सीट पर पहुंच गए और कई बार कक्षा में नाम ही नहीं रहता था। उन्होंने कहा कि यह उनके जीवन का बहुत कठिन दौर था, जिसने उन्हें 'टॉपर से बैकबेंचर' बना दिया।
जो जिस भाषा में कंफर्टेबल…
भाषाई बाधा के कारण उनके अंक गिर गए और उन्हें सप्लीमेंट्री परीक्षाओं में बैठना पड़ा। उन्होंने खुद बताया कि उन्होंने मन ही मन बहुत प्रार्थना की कि वह उस कॉलेज में वापस न जाएं। यह अनुभव उनके लिए एक गहरा 'स्कूल टॉपर से बैकबेंचरं बनने जैसा रहा। वे आगे कहते हैं, भाषा की समस्या केवल एक व्यक्तिगत चुनौती नहीं बल्कि पूरे देश में एक आम समस्या बना दी है। उन्होंने यह भी कहा कि सफलता के लिए किसी भाषा को बोलना जरूरी नहीं, बल्कि उसमें सहज होना और आत्मविश्वास होना जरूरी है। उन्होंने संदेश दिया कि कोई भी व्यक्ति उसी भाषा में बात करे जिसमें वह आराम महसूस करता हो, क्योंकि यही भाषा उसकी आत्मीय संपर्क का माध्यम बन सकती है।
कैसे आया पेटीएम का आइडिया
विजय शेखर शर्मा ने बताया कि एक बार वे दिल्ली एयरपोर्ट पर यात्रा के लिए पहुंचे। वहां सुरक्षा जांच और बोर्डिंग के समय उन्हें अचानक याद आया कि उन्होंने अपना वॉलेट घर पर ही भूल दिया है। उस समय, उनके पास नकद भी नहीं था और न ही कार्ड से भुगतान करने का कोई तरीका था। यह स्थिति उनके लिए बेहद असहज और झुंझलाहट भरी रही क्योंकि यात्रा जैसी जरूरी चीज़ के दौरान भी पैसों की उपलब्धता पर निर्भर रहना पड़ा। इस घटना के बाद उनके मन में एक बड़ा सवाल उठा – 'क्यों हर बार वॉलेट या कैश साथ लेकर चलना जरूरी हो? क्यों न ऐसा कोई तरीका हो जिससे केवल फोन से ही पेमेंट किया जा सके?' उस दौर में स्मार्टफोन तेजी से लोकप्रिय हो रहे थे और इंटरनेट की पहुंच भी बढ़ रही थी। यहीं से उनके दिमाग में यह विचार जन्मा कि अगर फोन को ही 'वॉलेट' बना दिया जाए, तो कभी भी, कहीं भी, तुरंत पेमेंट संभव हो सकता है।





