फोटो गैलरी

Hindi News ब्रांड स्टोरीज़बिहार में लोगों की सेवा हेतु समर्पित डॉ. दयानिधि शर्मा ने भ्रूण वैज्ञानिक के तौर पर बनाई अमिट पहचान

बिहार में लोगों की सेवा हेतु समर्पित डॉ. दयानिधि शर्मा ने भ्रूण वैज्ञानिक के तौर पर बनाई अमिट पहचान

भारत के पहले प्रशिक्षित भ्रूण वैज्ञानिक' डॉ. दयानिधि शर्मा के लिए ऐसा कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। वह भारत के पहले भ्रूण वैज्ञानिक हैं जिन्होंने बकायदा इस क्षेत्र में PhD किया ...

बिहार में लोगों की सेवा हेतु समर्पित डॉ. दयानिधि शर्मा ने भ्रूण वैज्ञानिक के तौर पर बनाई अमिट पहचान
HpandeyBrand PostWed, 30 Nov 2022 10:32 PM
ऐप पर पढ़ें

'भारत के पहले भ्रूण वैज्ञानिक' डॉ. दयानिधि शर्मा के लिए ऐसा कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। वह भारत के पहले भ्रूण वैज्ञानिक हैं जिन्होंने बकायदा इस क्षेत्र में ना केवल मास्टर्स किया बल्कि इस क्षेत्र में पीएचडी भी की। जी हां बिहार के मुंगेर जिले से निकल कर इन्होंने चिकित्सा क्षेत्र में जो पहचान बनाई है वह वाकई काबिले-तारीफ है।  इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंगेर के ही एक गर्वमेंट स्कूल से की जो यह बताता है कि अगर कुछ करने की चाह हो तो शिक्षा कहां से ली जा रही है यह मायने नहीं रखती बल्कि कैसे ले जा रही है यह बात मायने रखती है। एक गर्वमेंट स्कूल से पढ़ा बच्चा आज देश स्तर पर अपनी पहचान बना चुका है। इनकी कहानी आज युवाओं के लिए बेहद  प्रेरणादायी है।

 

शिक्षा - दीक्षा

 

प्रारंभिक शिक्षा मुंगेर से लेने के बाद इन्होंने इलाहाबाद की ओर रूख करते हुए, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के बाद क्लिनिकल एम्ब्रीओलोजी में  पोस्ट ग्रेजुएशन कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज, मनिपाल से वर्ष (2006-2009) में किया। पीएचडी भी इन्होंने एंब्रुयोलॉजी के क्षेत्र में ही किया। उस समय इस क्षेत्र में पीएचडी तक करना अपने आप में बड़ी बात थी। इन्होंने वर्ष 2014 में यही से पीएचडी की उपाधि प्राप्त कर भ्रूण वैज्ञानिक के तौर पर अपने करियर  की शुरुआत की।

 

क्या होता है आईवीएफ ट्रीटमेंट

 

डॉ. दयानिधि शर्मा बताते हैं कि आइवीएफ ट्रीटमेंट के दौरान कोई भी दंपत्ति जो किसी कारणवश मां-बाप नहीं बन पाते वह  डॉक्टर से संपर्क करते हैं। कंस्लटेशन के दौरान जो इलाज होता है वह अत्याधुनिक वैज्ञानिक तरीके से किया जाता है। इस दौरान महिला व पुरुष का सही से जांच  किया जाता है और इसके आधार पर इलाज शुरू होता है। महिला  माहवारी  के दूसरे दिन  इंजेक्शन दिया जाता है। जब अंडा मैच्योर हो जाता है तब महिला को कुछ देर के लिए बेहोश करके उनके अंडे को निकाल लिया जाता है और उस अंडे को पार्टनर के स्पर्म से फर्टिलाइज्ड करवाया जाता है। लैब में 3 से 5 दिनों तक भ्रूण को इंक्युबेटर में रख कर इसे महिला के बच्चेदानी में डाल दिया जाता है। 14 दिनों के बाद ब्लड जांच के माध्यम से ये पता किया जाता है कि महिला प्रेग्नेंट हुई है या नहीं। कह सकते हैं कि एक एंब्रुयोलॉजिस्ट  लेबोरेट्री के अंदर बेबी मेकर की तरह कार्य करते हैं। आईवीएफ का सफलता दर लगभग 75-80 प्रतिशत हो गया है और यह पूरी तरह से डॉक्टर के एक्सपरटाइज, भ्रूण वैज्ञानिक का अनुभव और हॉस्पिटल के इन्फ्रास्ट्रक्चर और आधुनिक उपकरणों पर निर्भर करता है।

 

जर्मनी और डेनमार्क से खुद को किया प्रशिक्षित

 

एक भ्रूण वैज्ञानिक के तौर पर आपकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। अपने प्रोफेशन की गंभीरता को समझते हुए डॉ. दयानिधि शर्मा ने न सिर्फ देश व राज्य स्तर पर अपितु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी खुद को प्रशिक्षित करना सही समझा। इसी को ध्यान में रखते हुए इन्होंने जर्मनी और डेनमार्क जैसी जगहों से इम्यूनोलॉजी के क्षेत्र में प्रशिक्षण लिया ताकि क्षेत्र विशेष पर इनकी पकड़ और ज्यादा बन सके।

 

वर्तमान में पटना के आइवीएफ सेंटर के हेड व बिहार हेड

 

एक भ्रूण वैज्ञानिक के तौर पर डॉ. दयानिधि शर्मा ने सात साल पहले अपने करियर की शुरूआत कर ली थी। इन्होंने सबसे पहले उदयपुर व राजस्थान में इम्यूनोलॉजिस्ट के तौर पर कार्य किया। उसके बाद बिहार में भी भ्रूण वैज्ञानिक के तौर पर काम कर बाद में राज्य के विभिन्न जिलों के स्टेट हेड के तौर पर कार्य किया। ये जिले मुजफ्फरपुर, गया, मोतिहारी, कंकड़बाग (पटना), भागलपुर, बेगूसराय  सारे ब्रांचेज इन्हीं की देख-रेख में कार्यन्वित किए जा रहे।

 

बिहार में अब तक आईवीएफ सेंटर की मदद से 12 हजार लोग प्राप्त कर चुके संतान सुख

 

देश स्तर पर अब तक आइवीएफ सेंटर के 114 सेंटर्स बनाए गए हैं। जिसके अंतर्गत करीब 1 लाख से अधिक लोगों को संतान सुख की प्राप्ति हो चुकी है। बिहार राज्य में 12 हजार लोगों को टेस्ट ट्यूब बेबी विधि की मदद से नि: संतानता से मुक्ति मिल चुकी है। पटना के राजा बजार सेंटर में अब तक 9 हजार से अधिक लोगों को इस समस्या से मुक्ति मिल चुकी है। भारत के फैमिली एंड वेलफेयर डिपार्टमेंट के सर्वे के अनुसार करीब 12 से 15 प्रतिशत लोग निसंतानता से ग्रसित हैं। यानि करीब 6 में 1 लोगों को यह समस्या होती ही है। एक भ्रांति है कि निसंतानता की मूल समस्याएं महिलाओं के अंदर ही व्याप्त होती है जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है निसंतानता के लिए महिला और पुरुष दोनों ही बराबर रुप से जिम्मेदार हैं। 20 प्रतिशत में दोनों के केस में समस्या हो सकती है। 10 प्रतिशत ऐसा हो सकता है कि दोनों नार्मल होने के बावजूद किसी अन्य कारणों से इस समस्या से परेशान हो।

 

टेस्ट ट्यूब बेबी पद्धति से जन्मे बच्चे बिल्कुल सामान्य और स्वस्थ

 

डॉ. दयानिधि ने आइवीएफ से जन्मे बच्चों के पीछे फैली भ्रांतियों के बारे में बताया कि यह बिल्कुल एक भ्रांति है कि आइवीएफ से जन्में बच्चे असामान्य और अस्वस्थ्य होते हैं। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। इस पद्धति से जिन बच्चों का जन्म होता है वह बिल्कुल स्वस्थ और बाकी के बच्चों की तरह ही होते हैं। यूं तो इस पद्धति कि शुरुआत आज से 40 -42 साल पहले ही हो चुकी थी। अब तक पूरे विश्व में इस आइवीएफ ट्रीटमेंट की मदद से 8 मिलियन बच्चे पैदा किए जा चुके हैं। बिहार राज्य में भी अब तक इस ट्रीटमेंट से कई बच्चे पैदा हो चुके हैं जो कि आज एक सफल जीवन जी रहे हैं।

 

चिकित्सा जगत में लोगों के आंगन को खुशियों से जगमगा रहे डॉ. दयानिधि

 

यथा नाम तथा गुण को चरितार्थ कर रहे मुंगेर के लाल डॉ. दयानिधि शर्मा आज चिकित्सा जगत के चमकते सितारे बनकर निसंतान लोगों के घर -आंगन को खुशियों की रोशनी से जगमगा रहे हैं। मुंगेर जिले के धरहरा प्रखंड अंतर्गत हेमजापुर गांव में एक मध्यमवर्गीय किसान सह रेलकर्मी जगदीश शर्मा के घर जन्म लेने वाले डॉ. दयानिधि आज देश के सबसे बड़े फर्टिलिटी ग्रुप इंदिरा आइवीएफ से जुड़कर हजारों निसंतान दंपतियों की सूनी गोद को बच्चों की किलकारी से भर चुके हैं। डॉ. दयानिधि देश के पहले भ्रूण वैज्ञानिक जिन्होंने क्लीनिकल ऐंब्रायोलॉजी में स्नातकोतर और पीएचडी की पढ़ाई कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज मणिपाल से की है। इसके साथ-साथ डॉ. दयानिधि ने जर्मनी में क्लीनिकल ऐंब्रायोलॉजी में अग्रिम प्रशिक्षण भी लिया है। इनके आधे दर्जन से अधिक शोध पत्र विश्व प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। भ्रूण विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में इनके योगदान के लिए ये स्वर्ण पदक से भी नवाजे गए हैं। बचपन से ही समाज में मेधावी और हंसमुख व्यक्तित्व के रुप में चर्चित डॉ. दयानिधि ने अपने जीवन में कई बाधाओं और तकलीफों को भी सहन किया है। इस संबंध में डॉ. दयानिधि बताते हैं कि पढ़ाई के दौरान इन्हें कई बार आर्थिक कठिनाईयों का भी सामना करना पड़ा। लेकिन धर्म परायणी माता और पिता के स्नेह और आर्शीवाद ने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाने में बहुत मदद की। इतनी कम उम्र में आज डॉ. दयानिधि इंदिरा आइवीएफ ग्रुप के लेबोरेटी डॉयरेक्टर और बिहार-झारखण्ड के सेंटर हेड हैं। डॉ. दयानिधि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रायोजित बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ मुहिम से भी जुड़े हुए हैं और जागरुकता अभियान को गति प्रदान कर रहे हैं।  

 

प्रोफाइल

 

डॉ. दयानिधि कुमार

बिहार प्रमुख एवं केंद्र प्रमुख (पटना मुख्य शाखा)

 

पता

 

इंदिरा आईवीएफ अस्पताल प्राइवेट लिमिटेड

तीसरी और चौथी मंजिल, दुर्गा अनंत

खाजपुरा बेली रोड, राजा बाजार, पटना - 800014

 

संपर्क- 919011803606

 

(अस्वीकरण- इस लेख में किए गए दावों की सत्यता की पूरी जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति / संस्थान की है)

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें