तो पीएम की रिपोर्ट कौन मांगेगा?
अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री इमरान खान सरकार के कामकाज के प्रति सचेत हैं और संघीय सचिव स्तर के अफसरों से वरिष्ठ मंत्रियों के बीते सौ दिन के काम का ब्योरा ले रहे हैं। यानी मंत्रियों को अब फर्जी दौरे,...
अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री इमरान खान सरकार के कामकाज के प्रति सचेत हैं और संघीय सचिव स्तर के अफसरों से वरिष्ठ मंत्रियों के बीते सौ दिन के काम का ब्योरा ले रहे हैं। यानी मंत्रियों को अब फर्जी दौरे, तबादले-प्रोमोशन में ही न लगे रहकर कुछ रचनात्मक करना होगा। जाहिर है, मंत्रियों को उनके प्रदर्शन के प्रति जवाबदेह बनाकर समय-समय पर उनकी रिपोर्ट लेते रहने से बेहतर कुछ नहीं होगा। ताजा कदम के बाद मंत्री अब आलाकमान को खुश करने में जुट गए हैं। कम खर्च पर बेहतर नतीजे देने की भी कोशिश है। लेकिन सवाल है कि प्रधानमंत्री के कामकाज का मूल्यांकन कौन करेगा? कम से कम संसद तो नहीं, क्योंकि वह जिस तरह शोरगुल का अखाड़ा बनकर रह गई है, वहां किसी सकारात्मक बहस या विधाई काम होने पर संदेह है। इमरान का वादा कि वह अब तक के सबसे ज्यादा जवाबदेह प्रधानमंत्री साबित होंगे, भी उनकी बड़ी चुनौती है। उन्हें कुछ नया करना होगा, जो लोगों को आश्वस्त कर सके। इस वक्त सरकार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी स्वाभाविक रूप से अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना है। वित्त मंत्री असद उमर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के कार्यक्रमों के संदर्भ में असहज दिखते रहे हैं, मगर सच सामने आना चाहिए। यह तो प्रधानमंत्री ही हैं, जो कुछ तय नहीं कर पा रहे। पहले तो वह फंड से मदद के ही खिलाफ थे, बाद में तैयार हुए, फिर कहा कि दोस्ताना लोन ज्यादा बेहतर होगा और अब फिर असमंजस में दिख रहे हैं। जब अर्थव्यस्था एक कमजोर धागे से लटकी हो, तो शीर्ष नेतृत्व का दिशाहीन रुख और उलझाता है। ऐसे में, कम से कम ऐसे कुछ कामों को आगे बढ़ाना था, जो सीधे असर करते दिखते। नए कानूनों पर सदन में विधेयक को लेकर भी पहल हो सकती थी, लेकिन प्रधानमंत्री की आशंकाओं के नाते उसकी भी संभावना नहीं दिखती। भ्रष्टाचार, अखंडता जैसे मुद्दों पर उनकी राय में दम है, लेकिन चुनाव पूर्व वादों पर कुछ न होना, उन्हें कमजोर बनाता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रधानमंत्री खुद अपने फैसलों की समीक्षा कर ऐसे इलाके तय करेंगे, जहां उनके खुद के प्रयास नतीजे दिला सकते हैं।