राजनीतिक सहभागिता
अफगानिस्तान के शासन में अवाम की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए यह जरूरी है कि वह निर्णय लेने की प्रक्रिया के केंद्र में हो। यह जम्हूरियत का खास पहलू है, क्योंकि जिन उसूलों की बुनियाद पर वह खड़ा है,...
अफगानिस्तान के शासन में अवाम की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए यह जरूरी है कि वह निर्णय लेने की प्रक्रिया के केंद्र में हो। यह जम्हूरियत का खास पहलू है, क्योंकि जिन उसूलों की बुनियाद पर वह खड़ा है, उनमें ‘जनता का शासन’ सबसे अहम उसूल है। लोगों की जिंदगी से जुड़े फैसलों में उनकी भागीदारी हर जम्हूरी समाज की खासियत होती है। इसलिए सहभागी लोकतंत्र की यह अनिवार्यता है कि जनहित के मामलों में अफगान नागरिकों की सार्थक भागीदारी सुनिश्चित हो। यह सहभागिता एक अन्य लिहाज से भी अहम है। यह लोगों को सक्षम बनाती है कि वे लिए गए फैसलों को लागू करने के मामले में नौकरशाही को जिम्मेदार ठहरा सकें। जन-सहभागिता अफगानिस्तान के शासन से जुड़ी बहस के केंद्र में लगातार रही है। इसीलिए इसके लोकतंत्र की गुणवत्ता की पड़ताल करते हुए सवाल उठते हैं कि क्या एक के बाद दूसरी सरकार ने कानून का राज कायम रखा? क्या उन्होंने जनता को अपना नुमाइंदा चुनने की आजादी दी? किसी भी जम्हूरियत की तरक्की इस बात से तय होती है कि उसमें फैसले लेने की प्रक्रिया को अवाम की सक्रिय हिस्सेदारी के लिए कितना खोला गया और उसकी सरकारें अपने अवाम के प्रति कितना जवाबदेह होती गईं? नागरिकों को अपनी राजनीतिक राय बनाने की आजादी देना, खासकर इंतिखाब के दौरान, लोकतंत्र को मजबूत बनाने में बड़ा रोल निभाता है। यह आजादी उन्हें हुकूमत में जवाबदेह नुमाइंदों को भेजने के योग्य बनाती है, जिन्हें एक खास अंतराल पर फिर से जनादेश लेना पड़ता है और यह इस बात से निर्धारित होता है कि विजेताओं ने जनता की अपेक्षा के अनुरूप कितना काम किया? अफगानिस्तान में 2004 से लागू संविधान अतीत को पीछे छोड़कर कई मायनों में एक नई शुरुआत का मार्ग प्रशस्त करता है। यह सदर के अधिकारों को कम करता है, शासन का एक नया ढांचा खड़ा करता है और लोगों को शासन में सक्रिय सहभागिता के लिए सिस्टम भी देता है। अफसोस हमारी सियासी जमातें अब भी पुराने ढर्रे पर हैं। वे कबीले और इलाके की हदों से बाहर ही नहीं आ रहीं।