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‘मंटों’ पर रोक क्यों

असहिष्णुता और पूर्वाग्रह कई बार किसी इंसान का जीते-जी तो साथ नहीं ही छोड़ते, जीवनकाल के बाद भी पीछा करते रहते हैं। इसका ताजा उदाहरण भारतीय फिल्म निर्देशक नंदिता दास की बायोपिक फिल्म मंटो  के...

‘मंटों’ पर रोक क्यों
डॉन, पाकिस्तानMon, 21 Jan 2019 11:59 PM
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असहिष्णुता और पूर्वाग्रह कई बार किसी इंसान का जीते-जी तो साथ नहीं ही छोड़ते, जीवनकाल के बाद भी पीछा करते रहते हैं। इसका ताजा उदाहरण भारतीय फिल्म निर्देशक नंदिता दास की बायोपिक फिल्म मंटो  के पाकिस्तान में प्रदर्शन पर लगा प्रतिबंध है। सितंबर में रिलीज होने के बाद से ही इस उप-महाद्वीप के प्रख्यात लेखक मरहूम सआदत हसन मंटो पर बनी यह फिल्म भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में अपने निर्माण, स्क्रिप्ट, निर्देशन और अन्य सिनेमाई गुणों के कारण खूब तारीफ बटोर रही है। बांग्लादेश में तो इसे अवॉर्ड भी मिल चुका है और शक नहीं कि अभी इसकी राह में तमाम अन्य पुरस्कार आने हैं। लेकिन कथित ‘विवादास्पद’ विषय-वस्तु के कारण पाकिस्तान इसे नहीं देख पाएगा, क्योंकि सरकार ने इसे बैन कर दिया है। मंटो और उनके साहित्य का विवादों से आजीवन रिश्ता रहा और मौत के बाद भी इसमें कमी नहीं आई। दुर्भाग्य है कि अपने ही देश ने ऐसे साहसी लेखक को बेगाना बना दिया, जिसकी तारीफ दुनिया कर रही थी। मंटो  पर बैन का दूसरा और उत्साहजनक पहलू जरूर है कि लेखकों, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रतिबंध के खिलाफ और अभिव्यक्ति की आजादी के पक्ष में न सिर्फ आवाज उठाई, बल्कि जीवनकाल में ही उनके साथ हुए दुव्र्यवहार को भी रेखांकित किया। बताया कि किस तरह न सिर्फ उनके साहित्य पर प्रतिबंध लगाकर उन्हें तरह-तरह से परेशान किया गया, बल्कि कला-संस्कृति का अड्डा माने जाने वाले पाकिस्तान रेडियो भवन तक में उनका प्रवेश रोककर अपमानित किया गया। ये बातें भले ही दशकों पुरानी हों, ताजा घटना बता रही है कि मंटो के प्रति पूर्वाग्रह आज भी वैसा ही है। मंटो  पर न सिर्फ बैन हटना चाहिए, बल्कि इसे पूरे देश के सिनामाघरों में दिखाने की जरूरत है, ताकि आज की पीढ़ी अपने दौर के इस असाधारण लेखक के जीवन को जान सके। आखिर, 2015 में सरमद खूसट की मंटो पर बनी फिल्म पाकिस्तान में दिखाई जा सकती है, तो कोई कारण नहीं कि भारत में बनी इस फिल्म को यहां दिखाने से रोका जाए। 
 
 

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