इमरान की गफलत भरी राह
महीने की शुरुआत में इमरान खान ने कुछ अक्षम सहयोगियों से छुटकारे की बात करते हुए कैबिनेट में बदलाव के संकेत दिए थे, लेकिन कामकाज का आकलन करने को विशेष कैबिनेट की नौ घंटे चली मैराथन बैठक के...
महीने की शुरुआत में इमरान खान ने कुछ अक्षम सहयोगियों से छुटकारे की बात करते हुए कैबिनेट में बदलाव के संकेत दिए थे, लेकिन कामकाज का आकलन करने को विशेष कैबिनेट की नौ घंटे चली मैराथन बैठक के बाद सभी मंत्री और पीएम के सारे सलाहकार न सिर्फ पास कर दिए गए, बल्कि कुछ को ए-प्लस तक से नवाजा गया। सुप्रीम कोर्ट ने कैबिनेट मंत्री आजम स्वाती पर कार्रवाई न की होती, तो आज शायद वह भी तमगा लिए घूमते। इमरान ने चेताया था कि देश के असामान्य हालात के मद्देनजर मंत्रियों को असाधारण प्रदर्शन करना होगा। ऐसे में, यह कहना कि पूरी की पूरी टीम कप्तान के तय मानकों पर खरी उतरी, अतिरेक के अलावा कुछ नहीं है। पिछले हफ्ते पीएम को एफबीआर की ब्रीफिंग का भी यही निष्कर्ष था कि सरकार तेजी से सिमटते कर ढांचे को संभालने सहित अब तक हर मोर्चे पर विफल रही है। कुछ भी ऐसा नहीं हो रहा, जो पिछली सरकारों से अलग हो। स्थानीय उद्योग, खासकर निर्माण क्षेत्र में न सिर्फ उत्पादन कम हुआ है, बल्कि करों में इसकी हिस्सेदारी कम होने के साथ रोजगार के अवसर भी कम हुए हैं। दिक्कतें और भी तमाम हैं। ऐसे में, पूरी कैबिनेट को अच्छे प्रदर्शन का प्रमाणपत्र देकर यह कहना कि नए पाकिस्तान की नींव रखी जा चुकी है, विडंबना ही है। ठीक उसी तरह, जैसे इराक के मामले में अचानक ‘मिशन पूरा’ होने की घोषणा कर बुश साहब इतराए घूम रहे थे। तो क्या मान लिया जाए कि इमरान चंद खराब साथियों के साथ छोड़ने या सदन में बहुमत खोने के डर से कोई कार्रवाई करने से बच रहे हैं? उन्होंने तीन महीने का वक्त देकर जिस तरह नया टारगेट दिया है, यह सोचना गलत नहीं होगा कि गठबंधन के दबाव में एक बार फिर अपने प्राथमिक उद्देश्यों के सामने सरेंडर करेंगे। किसी भी सरकार के लिए सबसे अच्छा तरीका विपक्ष के साथ तालमेल बढ़ाते हुए आगे बढ़ना होता है और यहां तो खबरों के अनुसार विपक्ष ने इमरान को आश्वासन ही दे रखा है कि कार्यकाल पूरा होने से पहले सरकार गिराने में उसकी कोई रुचि नहीं है।