तूफान के सबक
फ्लोरेंस चक्रवात की वजह से बहुत सी जगहों पर भयानक बाढ़ आई, लेकिन सबसे ज्यादा समस्या दक्षिण-पूर्व की नॉर्थ कैरोलिना जैसी जगहों पर रही। ऐसे में, कोई भी हैरानी से यह सोच सकता है कि यहां के लोगों ने ऐसा...
फ्लोरेंस चक्रवात की वजह से बहुत सी जगहों पर भयानक बाढ़ आई, लेकिन सबसे ज्यादा समस्या दक्षिण-पूर्व की नॉर्थ कैरोलिना जैसी जगहों पर रही। ऐसे में, कोई भी हैरानी से यह सोच सकता है कि यहां के लोगों ने ऐसा क्या किया था कि उन्हें ये दिन देखने पड़े? लेकिन हमें अब यह चिंता करनी चाहिए कि एक समाज के तौर पर हम इसके लिए क्या कर रहे हैं? वाशिंगटन में ऐसे लोगों का बोलबाला है, जो पर्यावरण बदलाव को ही मानने से इनकार करते हैं, वहां तो बाढ़ से होने वाले नुकसान के लिए सस्ती बीमा योजना की बात चल रही है। जैसे नीति नियामक यह मान बैठे हों कि आगे चलकर इससे भी भयानक तूफान आ सकता है। यह वह इलाका है, जहां सुअरों की गंदगी और कोयले की राख काफी तेजी से बढ़ी है। इससे लगता है कि वहां समझदारी के खिलाफ कोई षड्यंत्र हो रहा हो। नॉर्थ कैरोलिना आईओवा के बाद पोर्क उत्पादन में दूसरे नंबर पर है और यहां के फर्म अपनी लाखों टन गंदगी पानी में बहा देते हैं।
ट्रंप प्रशासन के तहत नीतियों को विद्रूप किस तरह से बनाया जा रहा है, यह उसका सबसे बड़ा उदाहरण है। जैसे ही अमेरिकी सरकार ने अपने को पेरिस पर्यावरण समझौते से अलग किया, इसका असर सब जगह दिखने लगा है- मोटर वाहनों के मानक से लेकर मीथेन गैस के उत्सर्जन तक। ये लोग क्या सोच रहे हैं कि वे किस ग्रह पर हैं? यह सोच कम से कम उस ग्रह पर तो नहीं हो सकती, जहां धु्रवों की बर्फ पिघल रही है, जहां समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है, और जहां गरम होता अटलांटिक फ्लोरेंस जैसे तूफान पैदा कर रहा है। रेत में सिर छिपाने की इस शुतुरमुर्गी नीति में ही अब राष्ट्रीय बाढ़ बीमा योजना जैसी भ्रमित चीजों को जोड़ा जा रहा है। साल 2005 के कैटरीना तूफान के बाद राष्ट्रीय बाढ़ बीमा योजना से अमेरिका सरकार के खजाने को 21 अरब डॉलर का चूना लग चुका है। अब जिस तरह देश भर में असामान्य मौसम को दौर लंबा खिंचने लगा है, उससे यही लग रहा है कि अब करदाताओं पर बोझ बढ़ेगा और यह घाटा बढ़ता ही चला जाएगा।