अद्भुत-अनूठा प्रदर्शन
एंटी-ब्रेग्जिट मार्च के आकार-प्रकार और इसके पीछे छिपी जन-भावना ने तो शायद इसके आयोजकों को भी हैरत में डाल दिया होगा। घर से बाहर न निकलने वालों को पछतावा हुआ होगा। ब्रिटिश राजनीतिक व्यवस्था में एक लाख...
एंटी-ब्रेग्जिट मार्च के आकार-प्रकार और इसके पीछे छिपी जन-भावना ने तो शायद इसके आयोजकों को भी हैरत में डाल दिया होगा। घर से बाहर न निकलने वालों को पछतावा हुआ होगा। ब्रिटिश राजनीतिक व्यवस्था में एक लाख लोगों का किसी बात पर सड़कों पर उतर आना कोई छोटी घटना नहीं। सात साल पहले टीयूसी की एंटी-कट रैली में जरूर ऐसा ही मंजर दिखाई दिया था, जब लाखों लोग वेतन कटौती और अन्य दमनात्मक उपायों के विरोध में सड़कों पर आ गए थे।
इस बार ब्रेग्जिट की शर्तों पर जनता की राय जानने के लिए आह्वान हुआ, तो संसद स्क्वॉयर पर लोग जिस तरह टूट पड़े, उसका किसी को अंदाजा भी नहीं था। यह अपेक्षा से कहीं अधिक था। ऐसी रैलियों का आयोजन जन अपेक्षाओं के कारण कई बार महज औपचारिकता भी होता है, लेकिन यह रैली निश्चित रूप से उन रैलियों में से नहीं थी। सोचना होगा कि ऐसे अप्रत्याशित और स्वत: स्फूर्त जैसे लगते विरोध-प्रदर्शन के क्या अर्थ निकाले जाने चाहिए, जिसमें न सिर्फ ग्रीन पार्टी से लेकर लिबरल डेमोक्रेट, लेबर और कंजरवेटिव पार्टी के लोग राजनीतिक मतभेदों से अलग हटकर शामिल दिखे हों, बल्कि पूरे ब्रिटेन के कोने-कोने से इसमें भागीदारी दिखाई दी हो।
और जिसने ब्रेग्जिट के पक्ष में आवाज उठाने वालों की हवा निकाल दी हो। सबसे महत्वपूर्ण तो शायद यह कि इस प्रदर्शन ने बहुत सारी गलतफहमियां दूर की हैं। इसने बताया है कि यह कोई अभिजन क्लब नहीं है, बल्कि यह अपने तरह का एक ऐसा अनूठा और सार्थक जमीनी सामाजिक आंदोलन है, जिसने महज सोशल मीडिया के जरिए अपना संदेश लोगों तक पहुंचाकर उन्हें यहां पहुंचने को प्रेरित कर दिया। यह मार्च इस बात का इशारा भी करता है कि चाह लिया जाए, तो चीजें बदल सकती हैं। यूरोपीय संघ छोड़ने के दो साल बाद भी तमाम यूरोप समर्थक ब्रेग्जिट को अपरिहार्य मानते हैं और उन्हें लगता है कि इसे स्वीकार किया जाना चाहिए। ऐसा नहीं है। ब्रेग्जिट ब्रिटेन की मुश्किलों का गलत जवाब है। एक सख्त और नो-डील ब्रेग्जिट तो और भी बदतर होगा।