वैश्विक सुरक्षा बड़ी चुनौती
दुनिया अब वैसी नहीं रही, जैसी 70 साल पहले द्वितीय विश्व युद्ध के दौर में थी। संभव है कि धरती पर इस वक्त इतने परमाणु हथियार हों, जो न सिर्फ पृथ्वी, बल्कि पूरे सौरमंडल को ही नष्ट करने की क्षमता रखते...
दुनिया अब वैसी नहीं रही, जैसी 70 साल पहले द्वितीय विश्व युद्ध के दौर में थी। संभव है कि धरती पर इस वक्त इतने परमाणु हथियार हों, जो न सिर्फ पृथ्वी, बल्कि पूरे सौरमंडल को ही नष्ट करने की क्षमता रखते हों, फिर भी तीसरे विश्व युद्ध की बात अभी दूर की कौड़ी लगती है। इसके बदले तमाम अन्य ऐसे कारक और परिस्थितियां जरूर मौजूद हैं, जो दुनिया भर के सभ्य समाज के लिए खतरा बनकर खड़े हैं। इनमें अगर आतंकवाद मानव जनित है, तो जलवायु परिवर्तन जैसी प्राकृतिक परिघटना को भयावह बनाने के लिए भी वही जिम्मेदार है। इस सच्चाई का असल पहलू यह कि वैश्विक सुरक्षा को अब महज एक या दो आयामों में नहीं आंका जा सकता। कोलंबो में संपन्न डिफेंस सेमिनार 2018 का विषय ‘वैश्विक उथल-पुथल के दौर में सुरक्षा’ मौजूदा परिदृश्य में अत्यंत उपयुक्त है। सुरक्षा अब वैश्विक मुद्दा है, जिस पर वैश्विक प्रतिक्रिया की जरूरत है। यहां तक कि सबसे शक्तिशाली राष्ट्र भी इन हालात का मुकाबला अकेले अपने स्तर पर नहीं कर सकते। प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की चिंता ठीक ही है कि प्राकृतिक आपदा, जलवायु परिवर्तन, पलायन व विस्थापन, हिंसा व जातीय संघर्ष, धार्मिक कट्टरवाद, साइबर आतंकवाद और राजनीतिक उठा-पटक जैसे पारंपरिक व गैर पारंपरिक तरीकों से हम चारों ओर से संकट से घिरे हैं। ये हमारे सुरक्षा बलों के लिए भी बड़ी चुनौती हैं, जो पारंपरिक तरीकों से आगे नहीं बढ़ पाए हैं। श्रीलंकाई सेनाओं ने कभी उस खूंखार आतंकवादी समूह को जरूर परास्त किया था, जिसे एफबीआई भी दुनिया का क्रूरतम समूह मानती थी, लेकिन तब से हालात बहुत बदल चुके हैं। सेनाओं को भी अब वैश्विक हालात और नई चुनौतियों के मद्देनजर खुद को नए तरह से लैस करना होगा, संसाधन विकसित करने होंगे। यह ड्रोन से जासूसी और हमले का दौर है, कल शायद रोबोट भी मैदान में आ जाएं। ऐसे में, अगर प्रधानमंत्री भी मान रहे हैं कि जब संघर्ष व टकराव के तरीके और औजार बदल चुके हों, देश में भी बहुत कुछ बदलना होगा, तो यह शुभ संकेत है।