रणसिंघे प्रेमदास
श्रीलंका अपने जीवनकाल में ही किंवदंती बन गए रणसिंघे प्रेमदास की आज 25वीं पुण्यतिथि मना रहा है। अत्यंत गरीब परिवार से आने वाला यह इंसान अपने संघर्षों के बल पर गरीबों का मसीहा तो बना ही यूनाइटेड नेशनल...
श्रीलंका अपने जीवनकाल में ही किंवदंती बन गए रणसिंघे प्रेमदास की आज 25वीं पुण्यतिथि मना रहा है। अत्यंत गरीब परिवार से आने वाला यह इंसान अपने संघर्षों के बल पर गरीबों का मसीहा तो बना ही यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) में तमाम सीढ़ियां चढ़कर प्रधानमंत्री और बाद में देश का राष्ट्रपति भी बना। यह उनका ही व्यक्तित्व था, जिसने ‘चाचा-भतीजे की पार्टी’ के रूप में प्रचलित यूएनपी को नई छवि दी और इसे सही अर्थों में जनता के राजनीतिक आंदोलन की पार्टी बनाया। स्थानीय राजनीति के लिए राष्ट्रपति प्रेमदास एक ऐसी घटना के रूप में उभरे थे, जिसने उस दौर में राजनीति में कदम रखा, जब इसमें अभिजात वर्ग का ही प्रभुत्व था और जिनका आमजन और मजदूर वर्ग से दूर का भी सरोकार नहीं था। तथ्य यह है कि जिस तरह श्रमिक वर्ग को समर्पित मई दिवस के दिन उनकी हत्या की गई, वह भी कोई संयोग नहीं था। सुरक्षा के प्रति तमाम चिंताओं के बावजूद वह हर वक्त लोगों के बीच रहना, मिलना-जुलना पसंद करते थे। हत्यारों ने उनकी इसी कमजोरी का फायदा उठाया और उस दिन बम विस्फोट कर हत्या कर दी, जब वह श्रमिकों के बीच बैठ उनकी बातें सुन रहे थे। वह वंचित वर्ग के बीच से ही आगे बढ़े थे और कभी उससे कटकर नहीं रहे। कभी बंद कमरे की राजनीति नहीं की। कोलंबो म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन से शुरुआत कर देश के शीर्ष पद तक पहुंचे। यह सच है कि उन्होंने ग्रामीण जनता और आम आदमी को समर्पित योजनाओं और उसके उत्थान पर जिस तरह ध्यान दिया, वह देश के इतिहास में अन्यत्र नहीं मिलता। सबके लिए घर की उनकी योजना ने देश का चेहरा तो बदला ही, उन्हें दुनिया में अलग पहचान दी और उन्हीं के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र ने 1987 को ‘बेघरों के लिए घर’ का वर्ष घोषित किया। उनकी हत्या ने उनके सपनों की उड़ान में थोड़ी बाधा भले डाली हो, लेकिन उनकी कल्पनाओं को बाद में उनके पुत्र और सरकार में मंत्री सजिथ प्रेमदास ने आगे बढ़ाया है। श्रीलंका के विकास, खासकर गरीब तबके के उत्थान में उनके योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकेगा।