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अलविदा अस्मा

आप उनके सियासी नजरिये और उनकी सक्रियता के हामी रहे हों या फिर नापसंद करते हों, मगर इसमें दो राय नहीं कि अस्मा जहांगीर की अहमियत और विरासत आने वाली नस्लों में जिंदा रहेंगी। इतवार को 66 साल की उम्र में...

अलविदा अस्मा
 द नेशन, पाकिस्तानMon, 12 Feb 2018 09:44 PM
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आप उनके सियासी नजरिये और उनकी सक्रियता के हामी रहे हों या फिर नापसंद करते हों, मगर इसमें दो राय नहीं कि अस्मा जहांगीर की अहमियत और विरासत आने वाली नस्लों में जिंदा रहेंगी। इतवार को 66 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से इंतकाल के बाद इस बेनजीर औरत की जिंदगी और उनकी कामयाबियां हमारी नजरों के सामने थीं। यहां तक कि उनके कटु आलोचक भी यह मानेंगे कि अस्मा जैसी मजबूत इरादों वाली, बहादुर और बेबाक शख्सियत हमें अब शायद ही देखने को मिले। लोकतंत्र के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और गलत के विरुद्ध खड़े होने का जज्बा उनके शुरुआती दिनों में ही दिख गया था, जब उन्होंने अपने वालिद मलिक गुलाम जिलानी की गैर-कानूनी कैद के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याह्या खान से मोर्चा लिया था। 1970 के दशक के शुरुआती दिनों में, जब समाज बेहद मर्दवादी हुआ करता था, 18 साल की अस्मा ने इतिहास रच दिया था। तब मुल्क की आला अदालत ने उसके हक में फैसला सुनाते हुए फौजी हुकूमत को गैर-कानूनी करार दिया था। तभी से अच्छा हो या बुरा, अस्मा की जम्हूरियत और जम्हूरी उसूलों के प्रति वफादारी अडिग रही। जम्हूरियत की जंग में उन्हें अक्सर फौज और न्यायपालिका से टकराना पड़ा और इसकी उन्होंने बड़ी कीमतें भी चुकाईं। अस्मा एक ऐसी औरत थीं, जिन्होंने कभी अवाम की राय या दबाव के सामने घुटने नहीं टेके। एक ऐसे मुल्क में, जहां के समाज में मर्दों का जबर्दस्त दबदबा रहा और औरतों के लिए तरह-तरह की बंदिशें और कायदे थे, उन्होंने 1980 व 2000 के दशक में औरतों के हक-हकूक के आंदोलनों के जरिये तमाम घेरों को तोड़ा। उन्होंने न सिर्फ औरतों को कानून के पेशे में आने का रास्ता दिखाया, बल्कि इसके लिए वह कहीं झुकी भी नहीं। अस्मा जहांगीर भी हर उस इंसान की तरह एक विवादित शख्सियत थीं, जो कमजोरों के हक में खड़ा होता है और यथास्थिति को चुनौती देता है। पाकिस्तान ने एक बहादुर नारीवादी को खो दिया है, मानवाधिकारों के प्रति जिसकी प्रतिबद्धता ने कई पीढ़ियों को अपने हक के लिए लड़ना सिखाया।

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