गठबंधन की नई चुनौती
वाम गठबंधन और मधेसी दलों ने सभी सात राज्यों में मुख्यमंत्री पद के लिए नाम तो तय कर लिए, पर शायद इतना ही काफी नहीं था। सीपीएन-यूएमएल और सीपीएन-माओइस्ट सेंटर भूल गए कि वे हाशिये के समाज को ज्यादा से...
वाम गठबंधन और मधेसी दलों ने सभी सात राज्यों में मुख्यमंत्री पद के लिए नाम तो तय कर लिए, पर शायद इतना ही काफी नहीं था। सीपीएन-यूएमएल और सीपीएन-माओइस्ट सेंटर भूल गए कि वे हाशिये के समाज को ज्यादा से ज्यादा प्रतिनिधित्व के वादे के साथ सत्ता तक पहुंचे हैं। वाम गठबंधन के तो छह में से चार नाम पहाड़ी उच्च जातियों से आते हैं। इनमें कोई महिला नहीं है, जबकि नया संविधान बढ़-चढ़कर महिला हितों और हाशिये के समाज की वकालत करता है। आश्चर्यजनक है कि वाम दलों को प्रांत 5 और 7 में थारू समाज में भी कोई उपयुक्त नाम नहीं दिखा, जबकि थारू लगातार उपेक्षा की शिकायत करते रहे हैं। स्पष्ट है कि सीपीएन-यूएमएल से माओइस्ट सेंटर तक, किसी की भी रुचि राजनीति के पारंपरिक ढांचे को तोड़ने में नहीं है। तय है कि माओइस्ट सेंटर को इस पर नाराजगी झेलनी होगी, क्योंकि हाशिये के समाज के उत्थान का नारा उसके लिए सत्ता की कुंजी बनकर आया था। वैसे मधेसी दलों ने अवश्य ही प्रांत-2 के लिए मोहम्मद लाल बाबू राउत जैसे नाम का चयन कर एक बेहतर संदेश देने की कोशिश की है। राउत न सिर्फ बहुसंख्यक मधेसी समुदाय से आते हैं, वरन मुस्लिम होने के नाते देश के कुछ सबसे वंचित वर्गों में एक के प्रतिनिधि भी हैं। उनकी पहचान मधेस हितों के मुखर प्रवक्ता के रूप में है। सक्रिय राजनीति के साथ ही उनकी गिनती देश के अच्छे वकीलों में भी होती है, जो उन्हें और मजबूती देता है। अब वाम गठबंधन के समक्ष खुद को अपने आचरण से ज्यादा से ज्यादा समावेशी होने का परिचय देने की चुनौती है। यह उनके दीर्घकालिक राजनीति के लिए जरूरी भी होगा। अब भी समय है और वे सरकार और शासन के वरिष्ठ पदों के साथ ही स्पीकर जैसे गरिमापूर्ण पद के लिए किसी महिला का नाम प्रस्तावित करके एक बड़ा संदेश दे सकते हैं। ऐसा न होने से यह मान लिया जाएगा कि नए संविधान की व्यवस्थाओं के बावजूद कोई भी सियासी दल सत्ता के राजनीतिक ढांचे को तोड़ने के लिए तैयार नहीं है।