फैसले के बाद का लोकतंत्र
अत्यंत संक्षिप्त, दोटूक और सर्वसम्मत फैसले से सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री की कुर्सी से हटा दिया, वरन जवाबदेही पर झटका देते हुए समूचे राजनीतिक परिदृश्य को ही झकझोर दिया। फैसले...
अत्यंत संक्षिप्त, दोटूक और सर्वसम्मत फैसले से सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री की कुर्सी से हटा दिया, वरन जवाबदेही पर झटका देते हुए समूचे राजनीतिक परिदृश्य को ही झकझोर दिया। फैसले की व्याख्याएं होती रहेंगी, लेकिन तय है कि नवाज शरीफ 2013 में ही अपने नामांकन पत्र के साथ संपत्तियों पर आधी-अधूरी जानकारी देकर खुद को न्यायिक प्रक्रिया के हवाले कर चुके थे। फैसले ने पूरे देश को सख्त संदेश दिया है कि सब कुछ पूरी तरह पारदर्शी रखो, वरना सजा भुगतो। अदालत का यह सख्त रुख देश और इस लोकतंत्र के लिए वरदान बन सकता है, अगर इसे समान और पारदर्शी तरीके से आगे भी नजीर मानकर लागू किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला देकर खुद के लिए भी भविष्य में उम्मीदों पर खरा उतरने की बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। पार्टी नेताओं ने फैसले पर भले ही असहमति दिखाई हो, लेकिन नवाज का बिना विलंब इसे सम्मानजनक तरीके से स्वीकार करना अहम है। शरीफ का राजनीतिक भविष्य तय करने वाले इस फैसले ने यह भी बताया है कि लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के आगे बड़े से बड़े इंसान का कोई वजूद नहीं है। बस इस भावना को भविष्य में भी जारी रखने की जरूरत है। पीएमएल-एन को भी अब शरीफ का उत्तराधिकारी तत्काल चुन लेना चाहिए, क्योंकि इसमें विलंब उसके और देश, दोनों के लिए नुकसानदेह हो सकता है। इमरान खान की पार्टी पीटीआई का खुश होना लाजिमी है कि उसके तौर-तरीकों से असहमत इंसान को भी यह मानना पड़ेगा कि इमरान और उनकी पार्टी ने अभियान न छेड़ा होता, तो चुने हुए जन-प्रतिनिधियों की जवाबदेही आज जिस तरह राष्ट्रीय बहस के केंद्र में आई है, वह शायद न हो पाता। इस सफलता ने पीटीआई की जिम्मेदारी भी बढ़ा दी है। उसे अब निर्वाचित प्रतिनिधियों तक सीमित न रहकर यह अभियान सभी नेताओं, सरकारी संस्थाओं तक ले जाना होगा, तभी राजनीति में पारदर्शिता और सफाई का उसका मकसद पूरा होगा। यह फैसला देश व राजनीति, दोनों के हित में है। ऐसे में, प्र्रयास यही होना चाहिए कि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था किसी भी सूरत में पटरी से न उतरने पाए।