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ओलंपिक ने खोली नई खिड़की

साल 2011 में जब दक्षिण कोरिया का चयन इस वर्ष के शीतकालीन ओलंपिक खेलों के आयोजक के रूप में हुआ, तब उम्मीद की गई थी कि उत्तर कोरिया भी अपने खिलाड़ियों के साथ इसमें सौहार्द से शामिल होगा। दशकों के अलगाव...

ओलंपिक ने खोली नई खिड़की
क्रिश्चियन साइंस मॉनिटर, अमेरिकाThu, 08 Feb 2018 09:18 PM
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साल 2011 में जब दक्षिण कोरिया का चयन इस वर्ष के शीतकालीन ओलंपिक खेलों के आयोजक के रूप में हुआ, तब उम्मीद की गई थी कि उत्तर कोरिया भी अपने खिलाड़ियों के साथ इसमें सौहार्द से शामिल होगा। दशकों के अलगाव और संघर्ष के बावजूद सांस्कृतिक विरासत और जातीय बंधन के सूत्र कहीं-न-कहीं तो जुड़े ही हैं। माना गया था कि यह जुड़ाव और नई खेल साझेदारी प्रायद्वीप का तनाव घटाने में शायद मददगार बन जाएं। हालांकि उम्मीद धराशाई होती दिखी, जब उत्तर कोरियाई टीम ओलंपिक में शामिल तो हुई, लेकिन उसके समायोजन के लिए दक्षिण कोरिया को अपनी महिला आइस हॉकी टीम कुर्बान करनी पड़ी। यह सौहार्द-प्रदर्शन दक्षिण कोरियाइयों के गले नहीं उतरा और इसे लेकर वहां खासी नाराजगी है। इसने राष्ट्रपति मून जे-इन की लोकप्रियता पर भी असर डाला है। युवा कोरियाई तो इस बात को गले ही नहीं उतार पा रहे कि जातीय राष्ट्रवाद और रक्त समानता का सिद्धांत एकीकरण भी करा सकता है। वहां तीन चौथाई किशोर एकीकरण विरोधी, लेकिन साठ से ऊपर वाली बड़ी आबादी पक्ष में है। युवा पीढ़ी चीन, जापान और अमेरिका के साथ सांस्कृतिक रूप से ज्यादा करीबी महसूस करती है। एकीकरण के प्रति यह अनमनापन अनायास नहीं है। दक्षिण कोरिया ने तो जर्मनी एकीकरण के बाद ही एका का सपना छोड़ दिया था, जब पूर्व जर्मनी को शामिल करने के लिए पश्चिम जर्मनी ने भारी कीमत चुकाई थी। उत्तर कोरिया की आर्थिक स्थिति भी उसके पक्ष में नहीं है। हाल के वर्षों में दक्षिण कोरियाई नागरिकों और अधिकारियों पर उत्तर कोरिया के हमलों से भी खटास बढ़ी है। संभव है कि उत्तर कोरिया को कल यह बात भाने लगे, क्योंकि तानाशाह किम जोंग-उन यह धारणा बनाने में जुटे दिखे हैं कि एकीकरण तो सिर्फ उनके जैसे परमाणु-शक्ति संपन्न के वश की ही बात है और कोरियाई शुद्धता की ठेकेदारी भी सिर्फ वही ले सकते हैं। जो भी हो, इस शीतकालीन ओलंपिक ने प्रायद्वीप में एकीकरण और शांति की दिशा में एक हवादार खिड़की तो खोली ही है। 

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