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ऊब चुके हैं लोग

अब जब प्रतिनिधि सभा को भंग किए जाने के मामले में अदालत के फैसले का दिन करीब आ गया है, तब नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के पुष्प कमल दाहाल-माधव नेपाल खेमा पहले से अधिक हताश नजर आ रहा है। राजधानी काठमांडू...

ऊब चुके हैं लोग
 द काठमांडू पोस्ट, नेपालMon, 22 Feb 2021 11:45 PM
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अब जब प्रतिनिधि सभा को भंग किए जाने के मामले में अदालत के फैसले का दिन करीब आ गया है, तब नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के पुष्प कमल दाहाल-माधव नेपाल खेमा पहले से अधिक हताश नजर आ रहा है। राजधानी काठमांडू में उनके शक्ति प्रदर्शन भी लोगों की बहुत ज्यादा हिमायत हासिल करने में नाकाम रहे हैं। साझा आंदोलन चलाने के लिए नेपाली कांग्रेस और जनता समाजवादी पार्टी को उन्होंने जो न्योता भेजा था, उसे भी खास महत्व नहीं मिला है। यही नहीं, सदन भंग किए जाने के विरुद्ध सामानांतर प्रदर्शन आयोजित कर रही सिविल सोसाइटी ने राजनीतिक पार्टियों के इरादों पर सवाल उठाते हुए खुद को साझा आंदोलन से अलग रखा है। व्यापक समर्थन हासिल करने के दांव के तहत हताश प्रचंड-नेपाल खेमे ने अब घोषणा की है कि उनकी पार्टी राजनीतिक गतिरोध को दूर करने के लिए एक श्वेत-पत्र तैयार कर रही है, जिसमें उनकी प्रतिबद्धताओं का तफसील से जिक्र होगा। इस खेमे के नेताओं का कहना है कि यह श्वेत-पत्र आने वाले दिनों में पार्टी की योजना सामने रखेगा और विपक्षी पार्टियों व सिविल सोसाइटी को मिलकर आंदोलन चलाने के लिए राजी करेगा। यह ‘प्रतिज्ञा पत्र’ ऐसा करने में सफल होगा या नहीं, यह तो वक्त बताएगा, पर एक बात बिल्कुल स्पष्ट है कि शुरुआत से ही सत्तारूढ़ पार्टी के दोनों धड़े, व दूसरी पार्टियां भी लोकतंत्र, कानून के राज और सामाजिक न्याय के प्रति ईमानदार नहीं थीं। सत्ता में चाहे कोई भी हो, जनता दशकों से राजनीतिक लोभ और भ्रष्टाचार का शिकार बनती रही है। नेता सिर्फ सत्ता हथियाने और एक-दूसरे पर दोष मढ़ने में संलग्न रहे हैं। इसीलिए नेपाल लगातार अस्थिरता के दुश्चक्र में फंसा रहा। इस अस्थिरता ने जहां देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं व कानून के राज को कमजोर कर दिया है, तो वहीं काफी संघर्षों के बाद अर्जित नागरिक अधिकारों का गला भी घोंट रहा है। ऐसे में, सिविल सोसाइटी ने आंदोलनों में शामिल होने के लिए सही शर्त रखी है कि राजनीतिक पार्टियां ऐसी प्रतिबद्धताओं और योजनाओं के साथ आगे आएं, जो समाज की विसंगतियां दूर कर सकें।
 

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