भारत-नेपाल संबंध
भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला अपने नेपाली समकक्ष भरत राज पॉडयाल से द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत कर नई दिल्ली लौट चुके हैं। अपने दो-दिवसीय नेपाल दौरे में भारतीय विदेश सचिव ने राष्ट्रपति विद्या...
भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला अपने नेपाली समकक्ष भरत राज पॉडयाल से द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत कर नई दिल्ली लौट चुके हैं। अपने दो-दिवसीय नेपाल दौरे में भारतीय विदेश सचिव ने राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और विदेश मंत्री प्रदीप ग्यावली से भी शिष्टाचार भेंट की। पिछले एक महीने में भारत की तरफ से यह दूसरा उच्च स्तरीय दौरा था। इसके पहले भारतीय सेना प्रमुख एमएम नरवणे तीन दिन के दौरे पर नेपाल आए थे। सीमा विवाद व आर्थिक सहयोग के मुद्दों पर विदेश मंत्री स्तरीय द्विपक्षीय वार्ता से भारत ने इनकार कर दिया था। इसे हालिया इतिहास में नेपाल-भारत संबंधों के सबसे खराब दौर के तौर पर देखा गया। भारत ने तो कोविड-19 के खत्म होने तक नेपाल के साथ वार्ता आयोजित करने से इनकार कर दिया था। हालांकि, महामारी के बीच ही नरवणे के नेपाल दौरे ने द्विपक्षीय बातचीत के रास्ते खोल दिए और इसमें सीमा से जुडे़ विषय भी शामिल हैं। हर्षवर्धन शृंगला के दौरे के समापन पर काठमांडू स्थित भारतीय दूतावास ने जो बयान जारी किया है, उसमें भी यह कहा गया है। इन वार्ताओं ने दोनों देशों के रिश्तों में जमी बर्फ को पिघला दिया है, हालांकि जमीनी स्तर पर ठोस प्रगति में अभी वक्त लगेगा।
करीबी पड़ोसी होने के नाते नेपाल व भारत में काफी कुछ साझा है। हालांकि, इसका यह मतलब नहीं है कि हमारे बीच कोई समस्या नहीं है। सीमा संबंधी मतभेदों के अलावा भारत प्रायोजित ज्यादातर परियोजनाओं के अधूरे पड़े होने को लेकर भी समस्या है। जैसे, पोस्टल रोड वर्षों से अधूरा पड़ा हुआ है। यदि यह सड़क समय पर बन गई होती, तो दोनों तरफ के लोगों को इसका आर्थिक लाभ मिल सकता था। इसी तरह, प्रस्तावित पंचेश्वर बहुउद्देशीय पनबिजली परियोजना अब तक शुरू नहीं हुई है, जबकि दोनों देशों ने 24 साल पहले इस आशय का एक करार किया था। जब द्विपक्षीय करार वक्त पर पूरे नहीं होते, तो दोनों तरफ के लोगों का भरोसा अपनी सरकार और पड़ोसी से उठ जाता है। नेपाली जनता को शृंगला के दौरे से ठोस परिणाम की अपेक्षाएं हैं।