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Hindi News ओपिनियन तिरछी नज़रतय करो किस ओर हो तुम

तय करो किस ओर हो तुम

इधर संसद में मोदी जी ने एक ही पखवाड़े में एक बार नहीं, दो-दो बार धमाका कर दिया और इतिहास बदल दिया। जबकि मुझसे यह तक न हुआ कि मोदी जी का समर्थन ही कर देता, उनको शाबाशी ही दे देता। जैसी कि...

तय करो किस ओर हो तुम
सुधीश पचौरी, हिंदी साहित्यकारSat, 10 Aug 2019 10:42 PM
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इधर संसद में मोदी जी ने एक ही पखवाड़े में एक बार नहीं, दो-दो बार धमाका कर दिया और इतिहास बदल दिया। जबकि मुझसे यह तक न हुआ कि मोदी जी का समर्थन ही कर देता, उनको शाबाशी ही दे देता। जैसी कि ‘बीजेडी’ ने, ‘बसपा’ ने, ‘आप’ ने और ‘किंतु-परंतु’ के साथ कुछ कांग्रेसी नेताओं ने दी। ‘एक साथ तीन तलाक’ की कुप्रथा का अंत हुआ, तो मुसलमान बहनों ने खुशी में मिठाइयां बांटी, लेकिन मैं मुआ उन तत्ववादी मुस्लिमों के ‘मेल शोवनिज्म’ को ‘सेक्युलर’ मानकर इसी उधेड़बुन में लगा रहा कि क्या लाइन लूं, क्या न लूं और अंत में चुप्पी वाली लाइन में ही अपनी खैर समझी। फिर मोदी जी ने अनुच्छेद 370 को हटा दिया, तो सोचता रहा कि अब भी वक्त है कि सही लाइन ले लूं, पर फिर कन्फ्यूज हो गया।

इसका कारण है मेरा ‘काल-बोध’ या कहूं कि मेरी ‘टाइमिंग’, जो कभी भी ठीक नहीं रहती। मेरी घड़ी है ही ऐसी। या तो वह वक्त से आगे रहती है या पीछे। सही टाइम कभी नहीं देती। इसीलिए मैं सही टाइम पर सही लाइन कभी नहीं ले पाता। या तो सही वक्त पर गलत लाइन लेता हूं या गलत वक्त पर सही लाइन। दूसरे यश लूटते हैं, खुशी में बताशे बांटने लगते हैं, मैं हर बार रोता ही रह जाता हूं।

अब देखिए न कि ‘मेरे दुश्मन-मेरे दोस्त’, हिंदी के ‘आदि विद्रोही’, जादुई यथार्थवादी ‘मारक्वेज-बोरखेज’ ने तो 370 हटाने का तुरंत समर्थन कर दिया और मैं घड़ी देखता रह गया। कल तक अपना यह हिंदी वाला मारक्वेज, ‘वापसी ब्रिगेड’ में शामिल होकर, साहित्य अकादेमी का सम्मान वापस कर, फोटो खिंचवा रहा था, ‘असहिष्णुता’ के खिलाफ एक से एक गरम बयान दे रहा था। आज यही, 370 को हटाने का समर्थन करके अपना वर्तमान और भविष्य सुरक्षित कर चुका है। है न साहस की बात। उसकी पोस्ट को कई नए लेखकों ने अपने कलेजे से लगा लिया और अपना भविष्य भी सुरक्षित कर लिया। इसे कहते हैं असली लेखक-लीडर। ऐसी अचूक टाइमिंग किस लेखक के पास है? इतनी अचूक टाइमिंग तो स्वर्गीय ‘अचूक अवसरवादी’ आचार्य तक के पास नहीं थी।

यह तो मेरी गलती रही कि मुक्तिबोध को सीरियसली ले बैठा। वह अब भी जान नहीं छोड़ते। ‘वाट्सएप’ पर जब-तब पूछते ही रहते हैं कि बताओ बच्चू! अब तक क्या किया? जीवन क्या जिया? वे न दिन देखते हैं, न रात और वाट्सएप करके पूछते ही रहते हैं कि तय करो किस ओर हो तुम? यूं खुद तो सन चौसठ में सिधार गए, लेकिन नरक में रहकर भी धरती के बारे में, वह भी भारत के बारे में और उसमें भी हिंदी लेखकों के बारे में खबर लेने की आदत न छोड़ी। अब कल ही पूछने लगे कि 370 पर तुम्हारी लाइन क्या है? मैंने कहा- गुरु जी, मेरे इस या उस ओर होने से अब कुछ फर्क नहीं पडता। अनुच्छेद तो हट चुका है। जब कई विपक्षी दल और नेता इसे ठीक कह चुके हैं, तो मैं किस खेत की मूली? मेरे लिए तो महाजनो येन गत: सपंथा:!  लेकिन यह बताइए कि 370 पर आपकी लाइन क्या है?

वह कुछ अचकचाए, फिर बोले कि तुम्हारे इस नटखट सवाल का जवाब बाद में दूंगा, पहले यह बताओ कि तीन सौ सत्तर पर हिंदी वाले किधर हैं? मैंने कहा- गुरु जी ‘वापसी ब्रिगेड’ ब्रांड आपका एक चेला तो आज के नेताओं की तरह ही ‘पल्टी’ मार गया। उसकी पोस्ट कहती है कि यह बहुत अच्छा हुआ। यकीन न हो, तो नामवर सिंह, केदार नाथ सिंह, कुंवर नारायण आदि से ही पूछ लें। 

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