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Hindi News ओपिनियन तिरछी नज़रकिसी को फासिस्ट कहने में मजा 

किसी को फासिस्ट कहने में मजा 

यह फासिस्ट, वह फासिस्ट। जो सहमत, वह फासिस्ट। जो असहमत, वह सब फासिस्ट। और यह तुम्हारी हिंदी भी फासिस्ट! बेचारी हिंदी भाषा ने आपका क्या बिगाड़ा है?  यस! बिगाड़ा है। यह सिर्फ ‘अकादेमी’...

किसी को फासिस्ट कहने में मजा 
सुधीश पचौरी हिंदी साहित्यकारSat, 27 Jun 2020 10:24 PM
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यह फासिस्ट, वह फासिस्ट। जो सहमत, वह फासिस्ट। जो असहमत, वह सब फासिस्ट। और यह तुम्हारी हिंदी भी फासिस्ट! बेचारी हिंदी भाषा ने आपका क्या बिगाड़ा है? 
यस! बिगाड़ा है। यह सिर्फ ‘अकादेमी’ लायक है, जबकि मैं हूं ‘नोबेल’ लायक। वह तो नहीं दिला पाएगी न। यह थर्ड वल्र्ड की भाषा, और मैं फस्र्ट वल्र्ड की आशा।
तो आप क्यों लिखते हैं हिंदी में? किसी ने जबर्दस्ती तो नहीं की है और आप जो बक रहे हैं, वह भी हिंदी में ही बक रहे हैं। यूं भी, आपको अंगे्रजी आती भी कहां है?
शटअप हिटलरिस्ट। फासिस्ट। हिंदी में इठला रहा कैपिटलिस्ट!
इन दिनों हिंदी साहित्य में सर्वाधिक ट्रेंड करने वाले दो ही शब्द हैं- ‘फासिस्ट’ और ‘फासिज्म’। जिसको भी निपटाना हो, बस एक बार उस पर चिपका दीजिए- ‘फासिस्ट’!  फिर देखिए, आपका साहित्य-शत्रु तुरंत ढेर। 
एक दिन अपन के पूर्व चेले ने समकालीन हिंदी कविता को धिक्कारा, तो मुझे गुस्सा आ गया। मैं ऐसे वर्ग शत्रु को क्या यूं ही जाने देता? मैंने फौरन शाप दे दिया : ‘फासिस्ट’। और वह एकदम खत्म हो गया। अब क्या समझाऊं। इन दिनों हिंदी में फासिज्म या फासिस्ट ही असली कोड़ा है। जिस पर फटकार दिया, वही खत्म। 
अगर साहित्य में ‘नाम और नामा’ कमाना है, तो सबसे पहले हिंदी को लात लगाकर चलो, फिर उसे कम्युनल कहो, फिर सीधे फासिस्ट। आपकी तूती बोलेगी। इन दिनों फासिज्म का नाम जपकर ही क्रांतियां की जाती हैं। इसीलिए कहता हूं कि हिंंदी साहित्य के समूचे इतिहास में एक से एक फासिस्ट भरे हैं। और मैं तो यहां तक कहूंगा कि हिटलर का बच्चा तो बहुत बाद में आया, उसके सभी दादाओं के दादे हिंदी साहित्य के इतिहास में बहुत पहले से मौजूद थे। हिटलर ने हिंदी से ही तो प्रेरणा ली थी। देखते नहीं कि ‘ह’ से ‘हिंदी’ और ‘ह’ से ‘हिटलर’। मैं तो यहां तक कहूंगा कि जनतंत्र अब या तो चीन में बचा है या बस पाकिस्तान में।
उस दिन मैं खुशी से पागल हुआ जा रहा था। मेरी जिह्वा पर सुबह-सुबह फासिज्म की वचनावली विराज गई लगती थी। मैं यह भी फासिस्ट, वह भी फासिस्ट का प्रिय भजन गाए जा रहा था। पहली बार मुझे किसी को फासिस्ट कहने में मजा आ रहा था। मैं जिस-जिसको भी फासिस्ट कहता जाता, वह ध्वस्त होता जाता और उसकी जगह क्रांति की नई कलियां फूटने लगतीं। साहित्य का सेकुलर मोरचा हरियाने लगता है। फासिज्म का मंत्र गजब ढा रहा था। तभी मैंने अपने मित्र कवि के कान में कहा : सर जी, मुझे लगता है कि आपके अलावा सारे के सारे फासिस्ट हैं। वह मुस्कराने लगे।
हिंदी साहित्य के अब तक के समस्त कवि-कथाकार, आलोचक, सबके सब फासिस्ट हैं। आप पूछेंगे कि तब किसमें कविता करें? करिए अंग्रेजी में, क्योंकि वही एकमात्र सेकुलर भाषा है। यूं आप चाहें, तो तमिल, तेलुगू, कन्नड या मलयालम में लिखें, बांग्ला में लिखें या उड़िया में या किसी अन्य भाषा में लिखें, हिंदी को छोड़़ सब सेकुलर जनतांत्रिक भाषाएं हैं। 
इन दिनों हिंदी वाले कहते हैं, ‘बायकॉट चीनी’। मैं तो कहता हूं कि ‘बायकॉट हिंदी’। फासिस्ट हिंदी। लेकिन साथी, यह फासिज्म तो आपके लिए बड़ा फायदेमंद रहा है। इसी हिंदी ने आपको नौकरी दी, परिवार दिया, इनामों की टोकरी दी। आपने इसे जितना गरियाया, उतना ही इसने आपको दिया।
कितना मजेदार फासिज्म है आपका? ऐसा फासिज्म किसे न भाए?

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