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Hindi News ओपिनियन तिरछी नज़रलौटावन लीला, और शर्म की वापसी

लौटावन लीला, और शर्म की वापसी

मैं इंतजार में हूं कि अपने सर जी अब तो कुछ जरूर करेंगे। पड़ोसी देश में जो कुछ हो रहा है, उसे देख-सुन उनकी जनतांत्रिक आत्मा अवश्य चीत्कार कर रही होगी और उसके विरोध में वह एक बार फिर से ‘लौटावन...

लौटावन लीला, और शर्म की वापसी
सुधीश पचौरी हिंदी साहित्यकारSat, 21 Aug 2021 11:25 PM

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मैं इंतजार में हूं कि अपने सर जी अब तो कुछ जरूर करेंगे। पड़ोसी देश में जो कुछ हो रहा है, उसे देख-सुन उनकी जनतांत्रिक आत्मा अवश्य चीत्कार कर रही होगी और उसके विरोध में वह एक बार फिर से ‘लौटावन लीला’ करेंगे!
इतिहास गवाह है कि कुछ बरस पहले अपने सर जी ने फासिज्म के आने से पहले ही ‘सम्मान  लौटावन लीला’ शुरू कर दी थी और मीडिया में छा गए थे। उनकी नकल में कई नकलचियों ने भी ‘लौटावन लीला’ की थी और नाम कमाया था। पर इस बार वह मुझे निराश किए जा रहे हैं। कई दिनों से इंतजार कर रहा हूं कि कोई कुछ करे, न करे, लेकिन अपने सर जी अवश्य कुछ करेंगे। एक बार फिर भुजा उठाकर ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ की तरह ‘अफगान लाइव्स मैटर’, ‘अफगानी महिलाओं की लाइव्स और आजादी मैटर’ कहेंगे! लेकिन ‘सब चुप, कवि जन निर्वाक्’ जबकि वहां ‘आग लग रही है और गोली चल रही है।’ ऐसा लगता है कि अंधेरे में कविता काबुल में चरितार्थ हो रही है।
मैंने उनकी ‘लौटावन लीला’ के एक साथी से पूछा, ‘सर जी, अब चुप क्यों हैं? इस बार क्या लौटा रहे हैं? किधर हैं- इधर या उधर?’ साथी का जबाव था, ‘हम तो ‘उनके’ साथ हैं। वे ही असली साम्राज्य विरोधी क्रांतिकारी हैं। उन्हीं ने गुलामी की जंजीरें तोड़ी हैं।’
‘ये कैसे ‘फ्रीडम फाइटर’ हैं, जो दूसरों की ‘फ्रीडम’ को बंदूक की नली से तय कर रहे हैं? ये कैसे जंजीर तोड़ने वाले हैं, जो अपनी जनता, और विशेषकर औरतों को अपनी कट्टरतावादी जंजीरों में कैद कर रहे हैं? ये तो शुद्ध ‘जेहादी’ हैं। ‘फासिस्ट’ हैं। इनके डर से पब्लिक जान बचाकर भाग रही है और जहाजों से गिरकर मर रही है। ये घरों में घुस-घुसकर मार रहे हैं। वे बारह बरस से पैंतालीस बरस की तमाम औरतों से जबरिया शादी कर रहे हैं, ताकि अधिकाधिक जेहादी पैदा कर सकें। उन्होंने शरिया लागू कर दिया है। कला व नाच-गाने बंद कर दिए हैं। ये तो जेहादी फासिस्ट हैं।’ 
‘फिर भी ‘इस फासिज्म’ से ‘वह फासिज्म’ अच्छा’ साथी जी बोले। 
‘सो कैसे?’ हमने पूछा।
‘देखिए, क्रांति में 100-50 तो मरते ही हैं। आपने लोगों का मारा जाना देखा। मारने वालों की कृपा न देखी कि उनको तुरंत जन्नत बख्श दी। इधर आपके मित्र भी तो ऐसा ही करते हैं! वे भी तो जबरिया ‘जय श्रीराम’ कहलवाते हैं!’
‘लेकिन इधर ‘शरिया’ का नहीं, सेक्युलर संविधान और कानून का राज है। क्या यहां कोई बंदूक लेकर घरों में घुसकर किसी को मारता फिरता है? क्या यहां कोई सरेआम औरतों को कोडे़ मारता है? ‘नेल पॉलिश’ लगाई औरतों की उंगलियां काटता है? और तो और, अब तो वे ‘गजवा-ए-हिंद’ की बातें कर रहे हैं।’
‘आप ‘जय हिंद’ करते हैं, तो वे ‘गजवा-ए-हिंद’ करेंगे ही!’ 
‘साथी! हम ‘जय हिंद’ इसलिए करते हैं कि ‘हिंद’ अपना देश है। लेकिन ‘गजवा-ए-हिंद’ का मतलब तो ‘हिंद’ के खिलाफ ‘जेहाद’ करके उसे जीतना और अपने जैसा बनाना हुआ! ऐसे में आप किधर हैं?’
‘जो आपको ठिकाने लगाए, हम तो उसके साथ हैं। यूं भी हम तो लेखक हैं और लेखक दुनिया का होता है, एक देश का नहीं...’ साथी ने हंसते हुए कहा। 
हमारी बातचीत का ‘द एंड’ इसी बिंदु पर हुआ। और, तब मैंने जाना कि हमारे ‘लौटावन लीला विशेषज्ञ’ के पास लौटाने के लिए अब जो कुछ बचा था, वह थी थोड़ी सी शर्म, जिसको वह इस बातचीत में ‘वापस’ कर रहे थे।

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