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Hindi News ओपिनियन तिरछी नज़रबॉलीवुड से कम नहीं अपना हिंदीवुड

बॉलीवुड से कम नहीं अपना हिंदीवुड

अपनी हिंदी में क्या नहीं है? सब कुछ तो है। जिस तरह महाभारत  के बारे में कहा जाता है कि यन्न भारते तन्न भारते, यानी जो महाभारत  में नहीं है, वह भारत में नहीं है। उसी तरह, कहा जा सकता है कि...

बॉलीवुड से कम नहीं अपना हिंदीवुड
सुधीश पचौरी, हिंदी साहित्यकारSat, 01 Aug 2020 11:13 PM
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अपनी हिंदी में क्या नहीं है? सब कुछ तो है। जिस तरह महाभारत  के बारे में कहा जाता है कि यन्न भारते तन्न भारते, यानी जो महाभारत  में नहीं है, वह भारत में नहीं है। उसी तरह, कहा जा सकता है कि जो हिंदी में नहीं, वह कहीं नहीं। इसीलिए कहता हूं कि हिंदी किसी से कम नहीं। 
जो-जो बॉलीवुड में है, वो-वो हिंदीवुड में है। बॉलीवुड मुंबई में है, तो हिंदीवुड दिल्ली में। जैसा बॉलीवुड में होता है, वैसा हिंदीवुड में भी होता रहता है। उध्र माफिया है, तो इध्र भी माफिया है। उध्र कुछ गैंग्स और गैंगस्टर हैं, तो इध्र भी हैं। उध्र ब्लैकमेलर हैं, तो इध्र भी हैं। उध्र सुपारी किलर हैं, तो इध्र भी हैं। उध्र कास्टिंग काउच है, तो इध्र भी है। उध्र भी जेबकतरे हैं, तो इध्र भी जेबकतरे हैं। उध्र भी साहब, मुसाहिब, चमचे-करछुल हैं, तो इध्र भी इनकी कमी नहीं। 
इसीलिए तो मैंने कहा कि अपने हिंदीवुड में  क्या नहीं है? 
जैसा बॉलीवुड, वैसा ही हिंदीवुड! जिस तरह उध्र सितारे हैं, उसी तरह इध्र भी सितारे हैं। जैसे बॉलीवुड हॉलीवुड के बाद नंबर दो पर आता है, ठीक उसी तरह अपना हिंदीवुड भी अंग्रेजीवुड के बाद नंबर दो पर गिना जाता है। जैसे अकेले यूपी में दसवीं-बारवीं के इम्तिहानों में लाखों बच्चे हिंदी में उदारतापूर्वक फेल हो जाते हैं और उनकी कोई परवाह नहीं करता, उसी तरह बॉलीवुड में भी लाखों नौजवान हर साल हीरो-हीरोइन बनने में फेल हो जाते हैं, और उनकी भी कोई परवाह नहीं करता। 
हिंदी भी क्या करे? वह समाज का दर्पण है! जो समाज में है, वह हिंदी में है। सच तो यह है कि हिंदी ही भारत है और भारत ही हिंदी है। हिंदीवुड ही भारतवुड है और हिंदी में ही कहा जा सकता है- पर भारत के सम भारत है। 
कहा न, हिंदी करे भी तो क्या करे? दर्पण क्या कभी झूठ बोलता है? हिंदी भी झूठ नहीं बोलती। हमेशा सच बोलती है और सच के अलावा कुछ नहीं बोलती। जिस तरह से उधर बॉलीवुड में हीरो-हीरोइन बनने के लिए भारत भर से लोग झोला उठाकर चले आते हैं और  उनमें से ज्यादातर गायब हो जाते हैं, उसी तरह भारत भर से लोग दिल्ली के हिंदीवुड में भी झोला उठाए चले आते हैं, फिर तरह-तरह से संघर्ष करते हैं। अलबत्ता, उनमें से जो सही वक्त पर सही सेटिंग कर लेते हैं, वही हिंदीवुड के हीरो-हीरोइन बन पाते हैं, बाकी सब पाठक, श्रोता और दर्शक बनकर रह जाते हैं।
बॉलीवुड में बिग मनी का खेल है, तो इध्र हिंदीवुड में पंजी और दस्सी का। उध्र एक हिट हुई, तो करोड़ों बरसते हैं, इध्र कोई हिट हुआ भी, तो दस टांग खींचने वाले उसके पीछे पड़ जाते हैं। उध्र जरा-जरा सी बात पर आदमी डिप्रेशन में चला जाता है, दवाइयां लेता रहता है, लेकिन इध्र कोई डिपे्रशन में नहीं जाता, बल्कि दूसरे को डिप्रेस करता रहता है। उध्र ‘सफलता’ ही सब कुछ है, इध्र ‘असफलता’ ही सब कुछ है। उध्र सब ‘सफल’ की गाते हैं, मगर इध्र ‘असफल’ की आत्मा की शांति के लिए, उसी के ‘हमदर्द’ गाते हैं-
 दुख ही जीवन की कथा रही 
क्या कहूं आज जो नहीं कही! 
बॉलीवुड में वंशवाद चलता है, परिवारवाद चलता है, लेकिन हिंदीवुड वालों का अपना परिवार ही बर्बाद हुआ रहता है। बॉलीवुड में हीरो का बेटा हीरो होता है, पर अपने हिंदीवुड के हिंदी वाले का बेटा एकदम जीरो होता है। उध्र कोई जरा सा पीछे हुआ, तो ‘केस’ बन जाता है, इध्र कोई जरा पीछे हुआ, तो आगे वाले पर पूरा ‘केस’ ही चला देता है। अपना हिंदीवुड हिंदीवुड है, यह बॉलीवुड से सवाया है!

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