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अच्छे आलोचक के गुण

अच्छे आलोचक को नंबर वन का झूठा होना चाहिए। अच्छे आलोचक के पास कम से कम दो स्मार्ट फोन होने ही चाहिए। जो चेलों द्वारा जन्मदिन पर दिए होने चाहिए। चेलों को मंच पर ही दो चार बार फोन करने चाहिए ताकि सर जी...

अच्छे आलोचक के गुण
सुधीश पचौरी हिंदी साहित्यकारSat, 01 Jul 2017 07:05 PM
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अच्छे आलोचक को नंबर वन का झूठा होना चाहिए। अच्छे आलोचक के पास कम से कम दो स्मार्ट फोन होने ही चाहिए। जो चेलों द्वारा जन्मदिन पर दिए होने चाहिए। चेलों को मंच पर ही दो चार बार फोन करने चाहिए ताकि सर जी वैरी-वैरी बिजी दिख सकें। 

नामी आलोचक विषय पर कभी नहीं बोला करते। वे विषय की वासना से मुक्त होते हैं। हर आलोचक को अपनी सभा में अपने 10-20 ‘श्रोते’ अवश्य लाने चाहिए। श्रोता टाइम से पहले पहुंचने चाहिए और हाल में स्ट्रैटेजिकल सीटों पर सेट हो जाने चाहिए। कब किसे हूट करना है? किसे शूट करना है? कब जमाना है? कब गिराना है? अच्छा आलोचक अपने चेलों को इस चाणक्यनीति में दक्ष कर देता है। अच्छे आलोचक को ‘मीडिया सावी’ होना चाहिए कि जब छपे उसी का फोटो उसी की खबर छपे। 

अच्छे आलोचक को मौसम विज्ञान का कलगी वाला मुर्गा होना चाहिए जो उंचे मकान की छत पर लगा हवा की दिशा को सबसे पहले महसूस करता है और उसके घूमते ही खुद घूम जाता है। अच्छे आलोचक के कुरते में जेब नहीं होनी चाहिए। आयोजक संयोजक या चेलों की जेब ही उनकी जेब होती है। अच्छे आलेाचक को हर वक्त एक अटेची तैयार रखनी चाहिए। पता नहीं कब किस शहर में साहित्य में एमरजेंसी हो और उसे बचाने की खातिर तुरंत उड़ना पडे।

अच्छे आलोचक के पास हर शहर में दो चार चेले चेलियां अवश्य होनी चाहिए, जो उसके लिए कार-टैक्सी से लेकर होटल आदि का खर्चा उठा सकें। अगर सरकारी सर्किट हाउस हो या स्टेट गेस्ट हाउस हो तो और बेतहर। और शाम के लिए ‘खास बंदोबस्त’ कर सकें। अच्छे आलोचक के कुछ पैसे वाले ‘भक्त’ हर शहर में होने चाहिए जो उसको ठीक-ठाक चढ़ावा चढ़ा सकें। घर का बना असली घी का खाना खिला सके। संग में शहर के सबसे अच्छे हलवाई की दो चार किलो मिठाई बंधवा सकें। ऐसे भक्त वही हो सकते हैं जिनको छात्र जीवन में साहित्य के कीडे़ ने कभी काटा होता है और अब वे अपनी पत्नी या बेटी को साहित्यकार बनाने के सपने देखते हैं।

आलोचक की गर्दन हमेशा उपर उठी होनी चाहिए तभी वह सच्चे मानी में ‘आकाशधर्मी’ कहला पाता है। आकाशधर्मी आलेाचक हमेशा आकाश की ओर देखता है। वह सामने वाले लेखक को नहीं देखता उसके पीछे जो खड़ा है उसे अवश्य देखता है। 

अच्छा आलोचक अपनी पत्नी की चिंता किया करता है। वह सदा सुखी रहे, इसके लिए वह उसे गांव में एकाध बच्चे के साथ छोड़ आता है और शहर में साहित्य साधना के लिए दूसरी कर लेता है। 

अच्छे आलोचक को बहुत पढ़ा लिखा नहीं होना चाहिए उसे ब्लर्व पढ़कर सूची देखकर किताब को पढ़ने वाला भी नहीं होना चाहिए उसे लेखक की शक्ल देखकर उसकी हैसियत भांपने वाला होना चाहिए और बिना पढ़े एक घंटे का लोकार्पण करने में दक्ष होना चाहिए।

अच्छे आलेाचक को ‘फेंकू’ होना चाहिए-जब भी बात करे दो चार विदेशी आथरों के नाम फेंक दे। नहीं तो लोहिया या जेपी के ही नाम फेंक दे ऐसे नामों के फिंकते ही हिंदी वाले धराशायी हो जाते हैं। अच्छे आलोचक को अधिक लिखने वाला नहीं होना चाहिए लिखने से पकड़ में आने का खतरा है। सिर्फ बोलने वाला होना चाहिए अगर कुछ इधर उधर हो तो नेता की तरह कहा जा सके कि जीभ थी फिसल गई।

अच्छे आलोचक को एक नेता की तरह होना चाहिए।

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