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ब्यूरोक्रेसी में बंधन तोड़ती और बुलंदी पर पहुंचती हुई महिलाएं

पिछले दिनों घोषित हुए परिणामों के साथ ही सिविल सेवा परीक्षा का एक और चैप्टर लिखा जा चुका है। मगर इससे पहले कि इस नए-नवेले चैप्टर की स्याही सूखे, एक उल्लेखनीय मील का पत्थर पर जाकर नज़र टिक जाती है।

ब्यूरोक्रेसी में बंधन तोड़ती और बुलंदी पर पहुंचती हुई महिलाएं
Himanshu Jhaसोनल गोयल, आईएएस अधिकारी,नई दिल्ली।Wed, 19 Jul 2023 06:08 PM
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“सामाजिक प्रगति और लैंगिक समानता जैसे मूल्यों से प्रभावित इस युग में, यह आवश्यक है कि हम नौकरशाही में महिलाओं की परिवर्तनकारी भूमिका को स्वीकार करें। जैसे-जैसे बने-बनाए सामाजिक ढाँचों की बुनियाद दरक रही है, सत्ता और निर्णय लेने की स्थिति में अधिक महिलाओं को शामिल करने से हमारे प्रशासनिक परिदृश्य में क्रांतिकारी बदलाव आने की क्या संभावना है", बता रही हैं, सोनल गोयल, आईएएस

पिछले दिनों घोषित हुए परिणामों के साथ ही सिविल सेवा परीक्षा का एक और चैप्टर लिखा जा चुका है। मगर इससे पहले कि इस नए-नवेले चैप्टर की स्याही सूखे, एक उल्लेखनीय मील का पत्थर पर जाकर नज़र टिक जाती है। और वो है यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, 2022 में महिला उम्मीदवारों की शानदार सफलता। 

शीर्ष चार रैंकों सहित चयनित उम्मीदवारों में से कुल एक-चौथाई महिलाएं हैं जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। महिलाओं की इस ऐतिहासिक सफलता ने निश्चित रूप से भारतीय समाज को अधिक इंक्लूसिव और जेंडर सेंसिटिव समाज बनने की दिशा में आगे बढ़ाया है। इतनी बड़ी संख्या में महिलाओं का चयन होना इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि भारतीय नौकरशाही में बदलाव की बयार चल रही है।

कुछ दशक पीछे जाकर देखें तो साल 1990 में चयनित उम्मीदवारों में केवल 13.9% महिलाएं थीं, यह आँकड़ा बताता है कि परिदृश्य काफी विकसित हुआ है। साल 2015 में जब मा० प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान शुरू किया था उस समय सिविल सेवा में अनुशंसित महिलाओं का प्रतिनिधित्व केवल 19.7% था। मगर इस अभियान के आठ सफल वर्षों के बाद यह आँकड़ा बढ़ते-बढ़ते 34.3% तक आ पहुँचा है, जो यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के इतिहास में महिला उम्मीदवारों का अब तक का सबसे अधिक चयन प्रतिशत है। यह उपलब्धि इन महिलाओं की असाधारण दृढ़ता और योग्यता का प्रमाण है।

इस उपलब्धि का जश्न मनाते समय हमें उन महिलाओं की यात्रा पर भी विचार करना चाहिए जिन्होंने समय की रेत पर कभी न मिटने वाले निशान छोड़े हैं। स्वतंत्र भारत की पहली महिला आईसीएस अधिकारी मैडम अन्ना राजम मल्होत्रा से लेकर पहली महिला आईपीएस अधिकारी के रूप में सफलता हासिल करने वाली श्रीमती किरण बेदी तक-  इन अग्रणी महिलाओं ने साबित कर दिया है कि उत्कृष्टता के लिए जेंडर अब कोई बाधा नहीं है। इन महिलाओं ने साबित कर दिखाया है कि जब महिलाओं को शिक्षित, प्रोत्साहित और सपोर्ट किया जाता है, तो वे पवरफुल चेंज मेकर बन कर उभरती हैं।

हालाँकि, उपरोक्त असाधारण महिलाओं की यात्रा चुनौतियों से ख़ाली नहीं रही है। मेरा अनुभव है कि सामाजिक बैरियर्स को तोड़कर नई ऊंचाई हासिल करने के लिए अक्सर व्यक्तिगत कीमत चुकानी पड़ती है। इतिहास गवाह है कि मैडम अन्ना राजम मल्होत्रा का अप्वाइंटमेंट लेटर शादी  से जुड़ी कठिन प्रतिबंध धाराओं के साथ आया था। उसमें साफ़-साफ़ लिखा था कि अगर वो कभी भी शादी करती हैं तो उन्हें सेवा से त्यागपत्र देना होगा। राष्ट्रीय समाचार पत्रों में छपी कुछ रिपोर्ट्स ने तो यहां तक लिखा है कि जिला उप-कलेक्टर के रूप में मैडम अन्ना राजम मल्होत्रा की तैनाती को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री सी. राजगोपालाचारी भी झिझक रहे थे, जो उस समय इस प्रचलित धारणा की पुष्टि करता है कि महिलाओं को नागरिक बलों में सेवा नहीं करनी चाहिए।

हालाँकि, इस तरह के विरोध से प्रभावित हुए बिना, मैडम अन्ना राजम मल्होत्रा ने निडरता से अपने पद की गरिमा और मर्यादा के अनुरूप अपनी भूमिका निभाकर साबित कर दिया कि जेंडर कभी भी किसी की क्षमताओं के आँकलन का आधार नहीं बनना चाहिए। उनकी शानदार सर्विस इसीलिए जारी रही क्योंकि उन्होंने अपने पुरुष समकक्षों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया और अपनी असाधारण कार्य नीति, परिष्कृत कौशल और व्यापक ज्ञान का प्रदर्शन किया। अपने इन्हीं ख़ूबियों के चलते उन्होंने होसुर जिले की पहली महिला जिला उप-कलेक्टर का पद सुशोभित कर न सिर्फ़ इतिहास रचा बल्कि नौकरशाही में आने की महत्वकांक्षा रखने वाली महिलाओं की कई पीढ़ियों को प्रेरित किया।

आज जब हम ब्यूरोक्रेसी में महिलाओं की ऐतिहासिक उपलब्धि की चर्चा कर रहे हैं, तब उन सूक्ष्म भेदभावों पर भी प्रकाश डालना अत्यंत आवश्यक है जिसका महिला अधिकारियों को इन एलीट सर्विसेज़ के गलियारों में सामना करना पड़ता है। कई महिला नौकरशाहों ने अपने साक्षात्कारों और बातचीत में, नौकरशाही के भीतर मेल डॉमिनेंस और इन्फ़ोर्मल नेटवर्क की उपस्थिति पर प्रकाश डाला है, जिससे पावर हायरारकीज़ को नेविगेट करने में महिलाओं के लिए कई महत्वपूर्ण चुनौतियाँ पैदा होती हैं। निम्नलिखित डेटा के साथ जोड़कर देखने पर यह इनसाइट, पोस्टिंग और पोज़ीशन के जेंडर आधारित डिस्ट्रीब्यूशन को प्रकट करती है।

केंद्र सरकार द्वारा आयोजित 2011 की रोजगार जनगणना के अनुसार, भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के कुल वर्कफ़ोर्स में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 11% से भी कम था। 2020 में बेहद  मामूली बढ़ोत्तरी के साथ यह संख्या 13% हो गई। इसके अलावा एक और आँकड़ा देखें तो 2022 तक केवल 14% महिला आईएएस अधिकारी सचिव स्तर पर सेवारत थीं। यदि हम सभी भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों पर सामूहिक रूप से विचार करें, तो भी गिनती की महिलाएं ही आज तक मुख्य सचिव या डीजीपी के पद पर नियुक्त हुई हैं। यहाँ बताना ज़रूरी होगा कि आज तक किसी भी महिला को कैबिनेट सचिव के रूप में नियुक्त नहीं किया गया है। यही नहीं- रक्षा, वित्त और गृह मंत्रालय में सचिव के पद पर भी आज तक किसी महिला को नियुक्त नहीं किया गया है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि महिला आईएएस अधिकारियों को शिक्षा, सांस्कृतिक मामलों और कल्याण आदि से संबंधित विभागों के लिए अधिक उपयुक्त माना जाता है। अगर ऐसा है तो यह कैरियर की प्रगति के लिए महिला अधिकारियों के अवसरों को सीमित करता है।

मेरा दृढ़ विश्वास है और मैंने अपने डेढ़ दशक से अधिक के प्रशासनिक करियर के दौरान अनुभव किया है कि महिलाएं, अपने अद्वितीय जीवन अनुभवों और दृष्टिकोणों के माध्यम से, शासन के लिए अधिक विविध और समावेशी दृष्टिकोण में योगदान देती हैं। इसलिए ब्यूरोक्रेसी  में जेंडर डायवर्सिटी को बढ़ावा देने से यह सुनिश्चित होता है कि नीतियां और कार्यक्रम सभी नागरिकों की आकांक्षाओं और जरूरतों को सही मायनों में प्रतिनिधित्व करने वाले हों। इससे एक अधिक समावेशी और न्यायसंगत समाज को बढ़ावा मिलता है।

तो, आइए हम महिलाओं को शिक्षित करने, उन्हें बराबरी के अवसर देने, वर्कप्लेस पर उन्हें प्रोत्साहित करने और उनका सहयोग अथवा समर्थन करने की मुहिम में एकजुट हों, क्योंकि महिलाओं की सफलता आंतरिक रूप से हमारे राष्ट्र की समृद्धि से जुड़ी हुई है। साथ मिलकर, हम एक विकसित भारत की कल्पना को साकार कर सकते हैं, जहां प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता का पोषण किया जाता है, और जहां महिलाओं की परिवर्तनकारी शक्ति का जश्न मनाया जाता है, उसे संजोया जाता है और सभी के सामूहिक लाभ के लिए उसका उपयोग किया जाता है।

(लेखक 2008 बैच की आईएएस अधिकारी हैं और फ़िलहाल रेजिडेंट कमिश्नर, त्रिपुरा भवन, नई दिल्ली के पद पर तैनात हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)
 

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