फोटो गैलरी

Hindi News ओपिनियनआखिर कैसे होगा मंदिर निर्माण

आखिर कैसे होगा मंदिर निर्माण

कुछ नेता निरंतर यह प्रचार कर रहे हैं कि अयोध्या में राम मंदिर का शुभारंभ छह दिसंबर के पहले हो जाएगा। इससे पहले दिल्ली में विश्व हिंदू परिषद की बैठक में भी यह प्रश्न उठा था कि केंद्र और 15 राज्यों में...

आखिर कैसे होगा मंदिर निर्माण
शीतला सिंह, वरिष्ठ पत्रकारWed, 17 Oct 2018 11:12 PM
ऐप पर पढ़ें

कुछ नेता निरंतर यह प्रचार कर रहे हैं कि अयोध्या में राम मंदिर का शुभारंभ छह दिसंबर के पहले हो जाएगा। इससे पहले दिल्ली में विश्व हिंदू परिषद की बैठक में भी यह प्रश्न उठा था कि केंद्र और 15 राज्यों में भारतीय जनता पार्टी सत्तारूढ़ है, ऐसी स्थितियों में भी यदि मंदिर निर्माण न आरंभ हो सका, तो रामभक्तों में अविश्वास पनपेगा। दूसरी तरफ, लगातार यह प्रचार चल रहा है कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण अब स्वप्न नहीं, बल्कि असलियत होगी। उसके रास्ते की सभी बाधाएं समाप्त हो चुकी हैं। राम मंदिर आंदोलन के दौरान निरंतर यह प्रचार हो रहा था कि इसका निर्धारण करने में कोई अदालत सक्षम नहीं है। यह तो संतों के निर्देश और उनके सुझावों के अनुसार होगा। लेकिन कठिनाई यह थी कि भारत के संविधान में संतों को न तो कोई विशेषाधिकार प्राप्त है, न ही वे अपनी इच्छाओं और अपेक्षाओं के अनुसार कोई ऐसा कार्य करने में सक्षम हैं, जो विधि सम्मत नहीं हो। 

जहां तक अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का प्रश्न है, तो रामभक्तों का एक बड़ा समुदाय है, जिसकी आकांक्षा राम की जन्मस्थली पर मंदिर बनाने की है। यह समुदाय करोड़ों नहीं, अरबों रुपये की सहायता करने के लिए भी तत्पर हैं। जिस स्थल पर मंदिर की आवश्यकता बताई जाती है, उसे बाबरी मस्जिद की बजाय राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवादित स्थल के रूप में प्रचारित किया जाता है। वह ढांचा 6 दिसंबर, 1992 को आंदोलन के दौरान जुटाई गई भीड़ द्वारा ध्वस्त किया जा चुका है। उस स्थल पर अब मंदिर बन सकता है, यदि यह मान्यता सही होती, तो फिर पिछले 26 वर्ष से इसकी प्रतीक्षा न हो रही होती। स्थिति यह है कि आज भी इस आंदोलन के कई बड़े नेताओं और फैजाबाद के जिलाधिकारी व पुलिस कप्तान पर आपराधिक मामले न्यायालय में विचाराधीन हैं। सर्वोच्च न्यायालय भी इसका शीघ्र निपटारा चाहता है, लेकिन मंदिर निर्माण में लखनऊ  उच्च न्यायालय के तीन जजों के फैसले, जिसके खिलाफ अपील उन तीनों पक्षों ने दायर की है, जिनके पक्ष में विवादित स्थल को तीन भागों में बंटवारे का फैसला हुआ था, पर सुनवाई आरंभ हो गई है। इसमें यह स्पष्ट कर दिया गया है कि यह मामला किसी आस्था, विश्वास, धर्म और मान्यता पर नहीं, बल्कि देश के भूमि कानून के अनुसार ही चलेगा।

इसी प्रकरण में लाहौर का एक उदाहरण ध्यान देने योग्य है। लाहौर में एक गुरुद्वारा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे मस्जिद को गिराकर बनाया गया था। उसकी स्थिति को पाकिस्तान के इस्लामी शासन के बावजूद अभी तक बदला नहीं जा सका। वहां गुरुद्वारा यथावत विद्यमान है। भारत और पाकिस्तान, दोनों में जाब्ता दीवानी कानून वही है, जिसे अंगे्रजों ने 1864 में बनाकर लागू किया था। अंग्रेजों के काल के दीवानी मामले में 12 वर्षों की वह सीमा भी लागू है, जो कब्जेदार को स्वामित्व का अधिकार प्रदान करती है। इसलिए इसे इस प्रसंग से अलग नहीं किया जा सकता।

इस प्रसंग में बाबरी मस्जिद के ध्वंस होने के बाद 7 जनवरी, 1993 को अयोध्या विशिष्ट क्षेत्र भूमि अधिग्रहण अध्यादेश आया था। बाद में संसद ने कानून के रूप में परिवर्तित कर दिया। उसके बाद 24 अक्तूबर, 1994 को संविधान पीठ के पांच सदस्यों ने इस स्थल पर राममंदिर, मस्जिद, पुस्तकालय, वाचनालय, संग्रहालय और तीर्थयात्रियों की सुविधा वाले स्थानों का निर्माण करने को कहा। संविधान पीठ ने इस अध्यादेश को वैध माना है और मुस्लिमों का यह कथन कि मस्जिद धार्मिक स्थल है, जिसका अधिग्रहण नहीं हो सकता, अस्वीकार कर दिया है। लेकिन संसद के कानून के बावजूद उसके प्रावधानों के आधार पर निर्धारण इसलिए नहीं हो पाया, क्योंकि संविधान पीठ ने इस मामले में चल रहे मुकदमे को समाप्त करने के लिए जो व्यवस्था की थी, उसे न्यायालय ने संविधानेतर मान लिया है। इसी मामले में यह भी व्यवस्था दी गई है कि जो पक्ष स्वामित्व वाला मुकदमा जीते, उसे बड़ा भाग और जो हारे, उसे छोटा भाग दिया जाए। लेकिन दूसरी ओर कुछ संगठन लगातार यह प्रचार करते रहे हैं कि ऐसा नहीं होने दिया जाएगा। वे देश और संविधान को निर्धारित प्रावधानों की बजाय अपनी इच्छा के अनुसार चलाना चाह रहे हैं। इस विचाराधीन अपील पर तीन न्यायाधीशों की पीठ सुनवाई कर रही है, जो संविधान पीठ के किसी निर्णय को समाप्त करने में सक्षम नहीं है।

अब कुछ संगठनों की ओर से यह आवाज उठाई जा रही है कि संसद प्रस्ताव पारित करके मंदिर निर्माण आरंभ कराए। लेकिन इस रास्ते में सबसे बड़ी बाधा 1993 में बना कानून है, क्योंकि एक ही विषय पर संसद दो व्यवस्थाएं नहीं कर सकती। संसद अपनी शक्ति का  प्रयोग करके किसी कानून को समाप्त तो कर सकती है, लेकिन किसी अध्यादेश से नहीं। इसलिए क्या 6 दिसंबर, से पहले इन बाधाओं से मुक्ति के लिए कदम उठाए जा सकते हैं? वह भी तब, जब यह प्रसंग देश के सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है। साथ ही, यदि संसद कोई कानून बनाएगी भी, तो उसकी वैधता पर अंतिम निर्णय तो सर्वोच्च न्यायालय के अधीन ही होगा कि कहीं वह कानून संविधानेतर प्रयत्न तो नहीं है? या वह संविधान के अनुच्छेद-21 तथा 25 के प्रावधानों के विपरीत तो नहीं है?

सच यह है कि राम मंदिर का निर्माण राजनीति से या भीड़ जुटाकर नहीं, अंतत: अदालती निर्णयों द्वारा ही संभव है। इसमें लंबा समय लगेगा। इसलिए इस समय जो प्रचार चल रहा है, वह हमें कहीं से भी मंदिर निर्माण की दिशा में नहीं ले जा रहा, वह इस मुद्दे को राजनीतिक रूप से गरम बनाए रखने की कोशिश भर है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें