फोटो गैलरी

Hindi News ओपिनियनलाइन ऑफ कंट्रोल पर पलटवार

लाइन ऑफ कंट्रोल पर पलटवार

आर्मी दिवस पर भारत की सेना ने देश को एक शानदार तोहफा दिया। उसने सीमा पार से पाकिस्तानी फार्यंरग का जवाब देते हुए कार्रवाई शुरू की, तो उनकी फौज के सात अफसर और जवान मारे गए। इतना ही नहीं, इस प्रयास में...

लाइन ऑफ कंट्रोल पर पलटवार
जी डी बख्शी, रिटायर्ड मेजर जनरलWed, 17 Jan 2018 09:35 PM
ऐप पर पढ़ें

आर्मी दिवस पर भारत की सेना ने देश को एक शानदार तोहफा दिया। उसने सीमा पार से पाकिस्तानी फार्यंरग का जवाब देते हुए कार्रवाई शुरू की, तो उनकी फौज के सात अफसर और जवान मारे गए। इतना ही नहीं, इस प्रयास में जैश-ए-मोहम्मद के छह फिदाईन आतंकवादी सीमा पार करते ढेर कर दिए गए। यह तथ्य बताता है कि सीमा पार से जो फार्यंरग हो रही थी, उसका मकसद था इन आतंकवादियों की भारत में घुसपैठ कराना। हालांकि सीमा पर पाकिस्तान अक्सर ही यह करता रहा है, लेकिन ठीक भारत के सेना दिवस के दिन इसका मकसद रंग में भंग डालना भी हो सकता है। जब ये खबरें आ ही रही थीं, तो थल सेना प्रमुख सेना दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित परेड और समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने पाकिस्तान को चेतावनी दी कि अगर वह अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आया, तो उसे इसी तरह से कड़ा सबक सिखाया जाएगा। सेना के जवानों ने उसी दिन साबित कर दिखाया कि समारोह में कही गई वह बात कोई औपचारिकता या कोरी धमकी भर नहीं थी।

पिछले 30 वर्षों से पाकिस्तान ने भारत के विरुद्ध अप्रत्यक्ष युद्ध- यानी छाया युद्ध छेड़ा हुआ है। दोनों देशों में कोई युद्ध नहीं चल रहा, लेकिन उस पार से लगातार हमले हो रहे हैं। साथ ही पूरे भारत में परेशानी खड़ी करने के लिए आतंकवादियों की घुसपैठ भी लगातार कराई जाती है। पाकिस्तान को यह तो बहुत पहले से ही समझ में आ गया था कि वह सीधी लड़ाई में भारत से नहीं जीत सकता। इसीलिए उसने प्रॉक्सी वार का रास्ता चुना। पाकिस्तानी के रणनीतिकार लंबे समय से आतंकवादियों के जरिए भारत के लिए हर समय           परेशानी खड़ी करते रहने की तरीके ढूंढ़ते रहे हैं। वहां की सैनिक भाषा में कहा जाता है कि आतंकवाद से पाकिस्तान को एक ‘स्ट्रैटजिक डेप्थ’ यानी एक तरह की सामरिक गहराई मिलती है। 

यह सिलसिला तब शुरू हुआ, जब 1980 के दशक में पंजाब में आतंकवाद के चलते 21,000 भारतीय सुरक्षाकर्मी और नागरिक मारे गए। उस पूरी समस्या में बहुत बड़ी भूमिका पाकिस्तान की थी। उसने उन आतंकवादियों को न सिर्फ प्रशिक्षण दिया, बल्कि संरक्षण भी दिया। हालांकि भारत के पंजाब और पाकिस्तान की बीच जो सरहद है, उसे अंतरराष्ट्रीय सीमा माना जाता है। उसके लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच किसी तरह का कोई विवाद भी नहीं है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय मर्यादाओं का उल्लंघन करते हुए पाकिस्तान ने इस सीमा से भी आतंकवादियों की घुसपैठ करवाई। उस दौर के कुछ आतंकवादी तो आज भी पाकिस्तान में शरण लिए हुए हैं, जो बीच-बीच में पाकिस्तान की मदद से पंजाब में पूरी तरह खत्म हो चुकी समस्या में फिर से जान फूंकने की कोशिश भी करते रहते हैं। 

1990 तक जब हमने लगातार कोशिशों और भारी कीमत चुकाकर इस पर पूरी तरह से काबू पा लिया, तो पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में भारी हस्तक्षेप शुरू कर दिया। भारत और पाकिस्तान के बीच की यह सरहद इतनी सीधी और सरल नहीं है। ज्यादातर पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यहां निगरानी आसान नहीं है और पाकिस्तान आतंकवादी घुसपैठ कराने में अक्सर कामयाब हो जाता है। यही कारण है कि कश्मीर से लगातार तरह-तरह की हिंसा की खबरें आती रहती हैं। इसके चलते अब तक पूरे जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में सुरक्षाकर्मियों समेत कोई 45,000 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। इसके अलावा, साल 2003 से तो पाकिस्तान की आईएसआई ने समूचे भारत में ही अपना तांडव शुरू किया और कोई 15,000 भारतीय नागरिक शहीद कर दिए। इस सबको जोड़कर देखें तो तकरीबन 85,000 भारतीय नागरिक पाकिस्तान की ओर से चलाई जा रही प्रॉक्सी वॉर में मारे जा चुके हैं। 

ऐसे मामलों में अब तक हमारी प्रतिक्रिया पूरी तरह रक्षात्मक रही है। हमारी सारी कोशिशें हमारी सीमा तक ही सीमित रही हैं और केवल कन्सीक्वेन्स मैंनेजमेंट तक ही रुक गईं। यानी उस तरफ से हमले होने दो, लेकिन कोशिश यह करो कि उसका हम पर ज्यादा असर न पड़े। लेकिन दुनिया भर का अनुभव बताता है कि आज के दौर में यह सब ज्यादा नहीं चल सकता। हमारे सामने इजरायल इसका एक बहुत अच्छा नमूना है कि जवाबी आक्रामकता से दुश्मन के हमलों को कैसे रोका जा सकता है? वहां अगर कभी एक भी इजरायली सैनिक मारा जाए, तो इजरायल भीषण पलटवार करता है।
 
इस प्रकार की आक्रामक कार्रवाई ही दुश्मन के खेमे से आने वाले नरसंहार को रोक सकती है। अब हमें भारत की जमीन पर भी यही इजरायली नीति अपनानी होगी। पाकिस्तान के लिए कीमत और परिणाम बढ़ाना अब अनिवार्य होता जा रहा है। उसे यह लगना चाहिए कि उसे इस तरह के हमले काफी महंगे पड़ने लगे हैं। हम हाथ  पर हाथ धरे बैठकर पाकिस्तान के अगले वार का इंतजार नहीं कर सकते। छद्म युद्ध का जबाव देने का वक्त आ गया है। हमें पाकिस्तान को रोकने के लिए सीमा के पार जवाबी हमला करना होगा। यह जरूरत काफी लंबे समय से महसूस की जा रही थी। दिक्कत सिर्फ यह थी कि इसे अमली जामा पहनाने में हमने खासा लंबा समय लगाया। इसका कारण जो भी हो, पर अब भारत ने वह हिचक छोड़ दी है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें