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आंकड़ों के बाजार में हमारी निजता

फेसबुक को लेकर हालिया खुलासे ने विश्व के तमाम बड़े देशों की चिंताएं बढ़ा दी हैं। भारत में भी इसे लेकर तापमान गरम है। सबसे बड़ा खतरा यह बताया जा रहा है कि अगर बिचौलिए संस्थाओं यानी...

आंकड़ों के बाजार में हमारी निजता
पवन दुग्गल साइबर कानून विशेषज्ञSat, 24 Mar 2018 01:15 AM
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फेसबुक को लेकर हालिया खुलासे ने विश्व के तमाम बड़े देशों की चिंताएं बढ़ा दी हैं। भारत में भी इसे लेकर तापमान गरम है। सबसे बड़ा खतरा यह बताया जा रहा है कि अगर बिचौलिए संस्थाओं यानी ‘इंटरमीडियरी’ कंपनियों ने डाटा में सेंधमारी की है, तो वे लोगों की निजी जानकारियों के इस्तेमाल की हर मुमकिन कोशिश करेंगी और उसका दुरुपयोग करते हुए उसे दूसरे देशों से साझा भी करेंगी। मगर हकीकत यही है कि फेसबुक के लाखों उपयोगकर्ताओं का डाटा अनधिकृत रूप से बांचा जा चुका हैै। फेसबुक इस समस्या को जानता है, और वह इसके निराकरण के लिए उचित कदम भी उठा रहा है। लेकिन इस पूरे मसले में हमारे लिए बड़ा सवाल यही है कि इस तरह की परिस्थितियों से निपटने में भारतीय कानून कितना सक्षम है?

बतौर एक मुल्क भारत को इस पूरी घटना से कुछ सबक लेने की जरूरत है। पहला और सबसे महत्वपूर्ण सबक यह है कि हमें इसे एक ऐसा मामला मानना चाहिए, जो हमारी आंखें खोलने वाला है। अगर लाखों लोगों के डाटा में सेंधमारी की जा सकती है और अमेरिकी चुनाव को प्रभावित किया जा सकता है, तो इसकी कोई वजह नहीं है कि ऐसा भारत में चुनाव के समय नहीं हो सकता। ऐसा इसलिए, क्योंकि भारत में फेसबुक के सबसे ज्यादा उपयोगकर्ता हैं। फिर अपना साइबर कानून भी इस प्रकार की चुनौतियों से पार पाने के लिए पर्याप्त नहीं है।

यह सही है कि भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 2 (1) (डब्ल्यू) में ‘इंटरमीडियरी’ की परिभाषा विस्तारपूर्वक दी गई है। उसमें फेसबुक जैसी सर्विस देने वाली तमाम कंपनियों के बारे में भी बताया गया है, क्योंकि इस तरह की कंपनियां ‘थर्ड पार्टी’ यानी तीसरे पक्ष के डाटा का व्यापार करती हैं और उसके बदले अपनी सेवाएं देती हैं। इस अधिनियम की धारा 79 में यह सुनिश्चित किया गया है कि ‘इंटरमीडियरी’ अपने दायित्वों का निर्वहन करते समय उचित सावधानी बरतेंगी। इसके कुछ प्रावधान तो कानून लागू होने के समय ही परिभाषित कर दिए गए थे। मगर सच यह भी है कि ताजा घटनाओं से जो चुनौतियां उभरी हैं, वे किसी प्रावधान में परिभाषित नहीं की गई हैं।

लिहाजा यह वक्त हमारे लिए ‘इंटरमीडियरी’ के दायित्वों पर फिर से गौर करने का होना चाहिए। ‘श्रेया सिंघल बनाम भारत सरकार’ के मामले में शीर्ष अदालत ने इन कंपनियों को अपने दायित्वों के निर्वहन को लेकर कुछ राहत ही दी है। कंपनियों ने उस फैसले को इस रूप में भुनाया कि जब तक पुलिस या कोई सरकारी आदेश उन्हें नहीं कहता, वे ऐसे मामलों में अपने तईं कार्रवाई नहीं करेंगी। ऐसे में, हमारे लिए यह अच्छा मौका है कि हम इन कंपनियों के दायित्वों को लेकर कानूनी प्रावधान की समीक्षा करें। इसी तरह, हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि बतौर डाटा संग्रहकर्ता इन कंपनियों के पास ऐसे अधिकार नहीं हों कि वे किसी भी भारतीय की निजी जानकारियों का अनधिकृत इस्तेमाल कर सकें।

यह उस भारतीय की निजता के लिए ही नहीं, भारत की संप्रभुता, सुरक्षा व अखंडता के लिए भी जरूरी है।
मुश्किल यह है कि हमारे देश में डाटा की सुरक्षा को लेकर पर्याप्त कानून नहीं हैं। यहां तक कि डाटा और व्यक्तिगत निजता को समर्पित कोई भी खास कानून हम अब तक नहीं बना पाए हैं। यह हाल तब है, जब सर्वोच्च अदालत ने निजता के अधिकार को हमारा मौलिक अधिकार माना है। अच्छी बात है कि भारत ने डाटा सुरक्षा को तवज्जो देते हुए एक कमिटी बनाई है। उम्मीद है कि यह कमिटी मौजूदा समस्या पर भी गौर करेगी और इस संदर्भ में उपयुक्त सिफारिश करेगी। कहा यह भी जा रहा है कि हमें ‘डाटा के स्थानीयकरण’ की ओर बढ़ना चाहिए। भारतीयों का डाटा वाकई काफी मायने रखता है, पर इस सवाल का तार्किक जवाब नहीं है कि भारतीयों का डाटा देश की सीमा के भीतर ही क्यों रहना चाहिए?
आज तमाम ‘इंटरमीडियरी’ के लिए भारतीय कानून, जिसमें साइबर कानून भी शामिल है, का पालन करना जरूरी होना चाहिए, फिर चाहे वे स्थानीय कंपनियां हों अथवा विदेशी।

अगर वे इसका पालन नहीं करतीं, तो उन्हें दंड भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए। ऐसा करने का सिद्धांत बहुत सरल है। अगर सर्विस देने वाली कंपनियां भारत को अपना कार्य-क्षेत्र बनाती हैं, तो उन्हें न सिर्फ भारतीय कानून का सम्मान करना चाहिए, बल्कि भारतीय उपयोगकर्ताओं की संवेदनशीलता भी समझनी चाहिए। इसी तरह, हमारे नीति-नियंताओं को चुनावी प्रक्रिया के बुनियादी स्वभाव को सुरक्षित व संरक्षित रखने के लिए भी एक समग्र नजरिया अपनाना चाहिए। आज की दुनिया में, जब ‘डाटा अर्थव्यवस्था’ एक प्रचलित रवायत बन चुकी हो, तो यह जरूरी है कि हम डाटा की सुरक्षा को लेकर सख्त प्रावधान बनाएं। भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में तत्काल संशोधन करने की जरूरत है, ताकि यह उभरती चुनौतियों का सामना करने में कहीं अधिक सक्षम हो।

हमें मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की भी जरूरत है। भारत बड़ी आबादी वाली एक बड़ी अर्थव्यवस्था है। हर कंपनी भारतीय बाजार में उतरना चाहती है। बेशक भारतीय बाजार दुनिया भर की तमाम कंपनियों का बांह खोलकर स्वागत करता है, पर यह समझ जरूर विकसित होनी चाहिए कि संबंधित कानूनी संस्थाओं द्वारा भारतीय कानून और विशेषकर भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 व इसके तहत बनाए गए तमाम प्रावधानों का पालन किया जाए। सवाल सिर्फ कानून को मजबूत करने का नहीं है, बल्कि उसे प्रभावी ढंग से लागू करने का भी है। आज ‘इंटरमीडियरी’ कंपनियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई चुनौतियों से भरी होती है। लिहाजा यह संदेश देना जरूरी है कि भारत व भारतीयों का डाटा सभी परिस्थितियों मे सुरक्षित व संरक्षित करना ही होगा। अब सभी की निगाहें केंद्र सरकार पर हैं कि वह कैसे भारतीय उपयोगकर्ताओं की निजी जानकारियों की रक्षा करने के लिए आगे बढ़ती है, और चुनावी प्रक्रिया को किस तरह इन कंपनियों से प्रभावित होने से बचाती है। स्पष्ट है, आने वाले दिन दिलचस्प होने वाले हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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