विवादों के बीच मतगणना के एहतियात
लोकसभा चुनाव के सभी चरणों के बाद संसदीय इतिहास में सबसे अधिक मतों की गिनती का काम बस चंद घंटों में शुरू होने वाला है। ऐसे वक्त में, जब ईवीएम की सुरक्षा को लेकर तमाम तरह के संदेह जताए जा रहे हैं, यह...
लोकसभा चुनाव के सभी चरणों के बाद संसदीय इतिहास में सबसे अधिक मतों की गिनती का काम बस चंद घंटों में शुरू होने वाला है। ऐसे वक्त में, जब ईवीएम की सुरक्षा को लेकर तमाम तरह के संदेह जताए जा रहे हैं, यह जानना उचित होगा कि मतगणना को लेकर हमारे यहां किस तरह की व्यवस्था की गई है। वोटों को गिनना वास्तव में एक पेचीदा प्रक्रिया है। इसमें न सिर्फ सख्त नियमों का पालन किया जाता है, बल्कि प्रोटोकॉल के हिसाब से तमाम एहतियाती कदम भी उठाए जाते हैं।
लोक-प्रतिनिधित्व अधिनियम के मुताबिक, मतगणना का काम रिटर्निंग ऑफिसर की देखरेख में होता है। मतगणना हॉल के अंदर उम्मीदवारों और इलेक्शन एजेंटों को ही रहने की अनुमति दी जाती है। इनके अलावा रिटर्निंग ऑफिसर/ सहायक रिटर्निंग ऑफिसर, मतगणना कर्मचारी, एजेंट, ड्यूटी पर तैनात नौकरशाह और चुनाव आयोग द्वारा अधिकृत अन्य व्यक्तियों के अलावा कोई भी हॉल के अंदर नहीं जा सकता। अंदर ‘क्या करना है’ और ‘क्या नहीं करना है’ के प्रावधान स्पष्ट हैं। सिर्फ आधिकारिक कैमरे वहां लगे रह सकते हैं और मोबाइल के इस्तेमाल की अनुमति भी सिर्फ पर्यवेक्षकों को होती है। अधिकृत पास वाले मीडियाकर्मी भी सामान्य फोटोग्राफी के लिए अपने कैमरे ले जा सकते हैं। मतगणना का पूरा काम अधिकृत कैमरों के सामने होता है और उसके कैसेट भविष्य के लिए सीलबंद करके रख लिए जाते हैं।
हॉल में 14 काउंटिंग टेबल लगाए जाते हैं। उम्मीदवार और उनके एजेंट पूरी गिनती प्रक्रिया पर नजर रखने के लिए वहां बैठते हैं। प्रत्येक टेबल को जालीदार तार से घेर दिया जाता है, ताकि एजेंट/ उम्मीदवार/ प्रतिनिधि की पहुंच में ईवीएम न आ सके, हालांकि इसे भी सुनिश्चित किया जाता है कि वे मतों की गिनती साफ-साफ देख सकें। हर टेबल पर मतगणना करने वाले कर्मियों या माइक्रो ऑब्जर्वर को एक बॉल पेन, फॉर्म 17-सी का पार्ट- 2, ईवीएम की सील खोलने के लिए पेपर काटने वाला चाकू और तयशुदा फॉर्मेट के पेपर दिए जाते हैं, ताकि वे उम्मीदवारों को प्राप्त मत व नोटा वोट दर्ज कर सकें। मतगणना हॉल में आम लोगों को संबोधित करने वाला उपकरण और ब्लैक बोर्ड भी होता है। मतगणना कर्मचारी और एजेंट यह भी देखते और सुनिश्चित करते हैं कि ईवीएम की कंट्रोल यूनिट (सीयू) से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है और उस पर लगी सील बरकरार है। अगर इसमें कुछ गड़बड़ी पाई जाती है, तो इसकी जानकारी तुरंत आयोग तक पहुंचाई जाती है।
सबसे पहले डाक से आए मतपत्रों की गिनती होती है। कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स, 1961 के नियम 54-ए के तहत यह प्रावधान किया गया है। पोस्टल बैलेट की गिनती प्रारंभ होने के आधे घंटे के बाद से ईवीएम वोटों की गिनती शुरू की जा सकती है। ऐसी अनिवार्यता नहीं है कि जब तक पोस्टल बैलेट की गिनती पूरी नहीं होगी, ईवीएम में दर्ज मतों को नहीं गिना जाएगा। यह सुनिश्चित होने के बाद कि पोलिंग एजेंट के हस्ताक्षर के साथ सीलबंद ईवीएम सुरक्षित है, ईवीएम की सील तोड़ी जाती है। फिर मशीनों को ऑन किया जाता है। ‘रिजल्ट’ बटन दबाते ही ईवीएम स्क्रीन पर परिणाम दिखने लगते हैं। हर मशीन की एक खास आईडी होती है। रिजल्ट के समय यह आईडी भी दिखती है। ईवीएम की कंट्रोल यूनिट पर ‘टोटल’ बटन दबाते ही कुल गिरे मत मशीन की स्क्रिन पर चमकने लगते हैं। इसके बाद ईवीएम प्रत्याशी-दर-प्रत्याशी नतीजा बताती है। यहां हासिल वोटों का मिलान फॉर्म 17 के साथ किया जाता है, क्योंकि इस फॉर्म में मतदान-केंद्रों पर गिरे कुल मतों की संख्या दर्ज होती है।
मतगणना के सभी दौर की समाप्ति (लगभग 20 राउंड) और नतीजा तैयार होने के बाद यह अनिवार्य है कि रिटर्निंग ऑफिसर दो मिनट के लिए यह प्रक्रिया रोके। इस दौरान उम्मीदवार या एजेंट पोस्टल बैलेट या कुछ राउंड के सभी मतों को फिर से गिनने की गुजारिश कर सकते हैं। हां, उन्हें इसके लिए रिटर्निंग ऑफिसर को एक लिखित आवेदन देना होगा, और यह अधिकारी के विवेक पर निर्भर होता है कि वह आवेदन को स्वीकार करेगा या नकार देगा। इसके बाद वीवीपैट की बारी आती है। हालांकि वीवीपैट की चर्चा से पहले यह स्पष्ट कर दूं कि वास्तविक मतदान से पहले हर ईवीएम में 50 के करीब ‘मॉक पोल’ (अभ्यास वोटिंग) होता है। यह सुनिश्चित होने के बाद कि मशीनें ठीक से काम कर रही हैं, इसके आंकड़े मिटा दिए जाते हैं, और फिर असली वोटिंग शुरू की जाती है।
इस साल पहली बार आम चुनाव में वीवीपैट (वोटर वेरीफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल) का इस्तेमाल किया गया है। इसीलिए मतगणना के दौरान ईवीएम और वीवीपैट का मिलान किया जाएगा। अगर दोनों आंकड़े नहीं मिलते, तो इसकी जांच होगी कि किस हद तक आंकड़ों में अंतर है। अगर वीवीपैट में दर्ज वोट मॉक पोल में गिराए गए मतों से अधिक निकलते हैं, तो वीवीपैट स्लिप की गिनती की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में पांच वीवीपैट मशीनों को गिना जाना चाहिए। सवाल यह है कि अगर वीवीपैट की गिनती ईवीएम से मेल नहीं खाती, तो क्या होगा? मेरी राय में यदि किसी मशीन में आंकड़े मेल नहीं खाएंगे, तो दूसरी तमाम मशीनों पर संदेह बढ़ेगा और पहले से ही गरम इस चुनाव में राजनीतिक पारा और चढ़ जाएगा।
फिलहाल नियम यह है कि यदि ईवीएम और वीवीपैट में अंतर आता है, तो वीवीपैट को तवज्जो दी जाएगी। 22 विपक्षी दलों ने भी इसी बाबत दो मांगें की थीं- पहली, पांच वीवीपैट मशीनों को पहले गिना जाना चाहिए, और दूसरी, यदि किसी एक मशीने के आंकड़े भी मेल नहीं खाते, तो उस विधानसभा क्षेत्र की सभी वीवीपैट पर्चियों का मिलान किया जाना चाहिए। आखिरकार सर्वोच्च न्यायालय ने भी ‘बेहतर मतदाता विश्वास और चुनाव प्रक्रिया की विश्वसनीयता’ की बात कही ही है। वैसे, संभव है कि मिलान न होने की खबरें न आएं, क्योंकि 1,500 मशीनों का अनुभव कुछ यही कहता है। फिर भी, विपक्षी दलों की दूसरी मांग स्वीकार की जानी चाहिए, क्योंकि वीवीपैट की शुरुआत के पीछे मूल उद्देश्य यही है कि मतदाताओं के तमाम संदेह दूर हों। लोकतंत्र में जनता का भरोसा सबसे जरूरी है। चुनाव आयोग को हर मुमकिन यही कोशिश करनी चाहिए कि मतदाताओं का यह विश्वास कतई न डिगे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)